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Monday, May 18, 2020

ऐसे पहचाने स्वदेशी प्रोडक्ट

लोकल से वोकल होने के लिए, ऐसे पहचाने स्वदेशी प्रोडक्ट -आत्मनिर्भर भारत अभियान

क्या होते हैं स्वदेशी प्रोडक्ट आइए जान लेते हैं विस्तार पूर्वक [स्वदेशी प्रोडक्ट्स इन इंडिया]स्वदेशी प्रोडक्ट्स लिस्ट,स्वदेशी सामानों की सूची 2020,कैसे पहचाने स्वदेशी प्रोडक्ट 

बीते मंगलवार के दिन रात 8:00 बजे देश के प्रधानमंत्री मोदी जी ने देश को संबोधित करते हुए कोरोनावायरस की वजह से भारत जिस आर्थिक संकट में है उसके बारे में विस्तारपूर्वक बात की। जिस तरह उन्होंने अपने शब्दों में बताया कि हमें इस महामारी को अपने देश से बाहर निकालना है और अपनी एकता को दिखाते हुए इसे भी हमें हराना होगा। उन्होंने आत्मनिर्भरता अभियान का आवाहन करते हुए स्वदेशी प्रोडक्ट को अपनाने की सलाह भारत की जनता को दी। भारत की जनता के समक्ष सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिरकार स्वदेशी प्रोडक्ट होते क्या है? हमारे देश में तो इतने सारे प्रोडक्ट बनते हैं कि यह पहचान बना की स्वदेशी प्रोडक्ट कौन से हैं और विदेशी कौन से बेहद मुश्किल है। आप किसी मुश्किल का समाधान लेकर आज हम इस पोस्ट को आपके लिए लेकर आए हैं जिसमें हम आपको बताएंगे कि हमारे स्वदेशी प्रोडक्ट होते क्या है और कौन से प्रोडक्ट स्वदेशी हैं।

क्या होती हैं स्वदेशी वस्तुएं?

स्वदेश शब्द में ही स्वदेशी का अर्थ छुपा हुआ है मतलब अपने देश का सामान अथवा अपने देश में निर्मित वस्तुएं। तो इसी प्रकार से बात करें स्वदेशी वस्तुओं के बारे में तुम मुख्य रूप से स्वदेशी वस्तुएं उन्हें कहा जाता है जिनका उत्पादन हमारे खुद के ही देश में होता है और उसी देश में उनका प्रयोग भी किया जाए। जैसे कि आप जानते हैं भारत में बहुत बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां लगी हुई है जहां पर बड़े पैमाने पर बहुत सारे प्रोडक्ट बनाए जाते हैं वे सभी प्रोडक्ट हमारे स्वदेशी प्रोडक्ट कहलाते हैं।

स्वदेशी उत्पाद के फायदे

यदि भारत का प्रत्येक नागरिक स्वदेशी वस्तुओं का ही इस्तेमाल करें तो भारत देश को बहुत ज्यादा फायदे प्राप्त हो सकते हैं जिन्हें विस्तार पूर्वक निम्नलिखित विकल्पों में बताया गया है:-

  • भारत में बनी वस्तुओं के इस्तेमाल से भारत में कमाया गया पैसा भारत में ही सामान खरीदने में लगाया जा सकता है जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को एक वृहद रूप से मजबूती मिलेगी।
  • भारत में ऐसे बहुत से कारीगर हैं जिनके द्वारा बेहद कमाल के उत्पाद बनाए जाते हैं परंतु विदेशी वस्तुओं की इस्तेमाल की वजह से उनके उस उत्पाद का मूल्य गिर जाता है यदि हम उनके बनाए हुए उत्पादों का इस्तेमाल करने लगेंगे तो ऐसे मजदूरों को भी आत्मनिर्भर होकर बेहतर जिंदगी जीने का हक प्राप्त हो सकेगा।
  • इस तालाबंदी के समय में जैसा कि आप देख ही पा रहे हैं कि बड़े से बड़े व्यापार ठप पड़े हैं क्योंकि हम आज भी विदेशी वस्तुओं पर निर्भर है। यदि हम सॉरी की वस्तुएं अपनाते हैं तो उन व्यापारो को दोबारा से आरंभ करने में हम सहायता प्रदान कर सकते हैं। हमारे देश में मौजूद बड़े-बड़े व्यवस्थाएं हमारे देश की अर्थव्यवस्था के मजबूत स्तंभ हैं अधिक मजबूती प्रदान करने का काम प्रत्येक भारतीय नागरिक का ही है।
  • हमारे देश के गांव में कई प्रकार की कलाएं छुपी हुई है जिनका सम्मान आज के समय में विदेशों में बहुत ज्यादा होने लगा है क्योंकि भारत देश के नागरिक ऐसी कलाओं को अधिक महत्व नहीं देते हैं। एक यही कारण है कि भारत का एक मजदूर आज के समय में भी भूखा है क्योंकि उसका रोजगार तो विदेश से ही चलता था और जब विदेश का ही आवागमन देश में बंद हो गया है तो उसका काम ठप हो गया है। यदि हम अपने देश के कारीगरों की कला का सम्मान करने लगे तो शायद हमारे देश का कोई भी व्यक्ति कभी भूखा नहीं मरेगा।
  • प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार के दिन देश को संबोधित करते हुए स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने पर इसीलिए जोर दिया क्योंकि वह अपनी अर्थव्यवस्था को गिरते हुए देख रहे हैं। आज के समय में हमें और आपको क्या चाहिए एक ऐसी टेक्नोलॉजी जो तुरंत हमारी सभी जरूरतों को पूरा कर दें। हालांकि स्वदेशी टेक्नोलॉजी थोड़ी धीमी तो है परंतु टिकाऊ है इस बात की जानकारी तो आपको होगी कि चाइना का माल कितना समय तक आपके पास देख पाता है जबकि भारत का कोई भी प्रोडक्ट आपके पास लंबे समय तक बना रहता है एक यही कारण है कि हमारे देश में बनी प्रत्येक वस्तु हमारे लिए बेहद लाभदायक है जिससे हम अपने देश को विकास की ओर भी ले जाते हैं और विदेशों में बनी वस्तुओं का बहिष्कार भी कर पाते हैं।

स्वदेशी वस्तुओं की पहचान कैसे करें?

दोस्तों जब हम कोई वस्तु खरीदते हैं तो हमें इस चीज का भान नहीं होता है कि वह हमारे देश में बनी है या फिर कोई विदेशी वस्तु है। तो चलिए जान लेते हैं कि आप कैसे पहचानेंगे की कोई वस्तु जो आप खरीदना चाहते हैं या खरीद रहे हैं वह हमारे देश की है अथवा विदेशी?

तो सबसे पहले बता दें कि जिस प्रकार आप खाने की वस्तुएं खरीदते हैं और खरीदने से पहले यह जानते हैं कि वह शाकाहारी है या मांसाहारी? उसके लिए आप उस पैकेट पर बने हुए निशान को देखते हैं कि वह लाल है अथवा हरा? लाल निशान का अर्थ होता है कि वह मांसाहारी वस्तु है और हरे निशान का अर्थ होता है कि वह पूरी तरह से शाकाहारी है। ठीक इसी प्रकार स्वदेशी और विदेशी वस्तुओं की जानकारी भी आप आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।

कोई वस्तु स्वदेशी है या विदेशी जानने के लिए आपको सबसे पहले उस वक्त ऊपर छपे हुए पहले तीन नंबर देखने होंगे। उस पर एक बार कोड दिया होता है और बारकोड में आपको कई सारे अंक दिए होते हैं उनमें से आपको सबसे पहले तीन अंक देखने होंगे और उनके बाद कुछ इस प्रकार लिखा होता है।

विभिन्न देशों के बारकोड इस प्रकार है - 

01) 890 : भारत

02) 00-13 : संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा

03) 30-37: फ्रांस

04) 40-44: जर्मनी V. 45, 49: जापान

05) 46: रूस

06) 471: ताइवान

07) 479: श्रीलंका

08) 480: फिलीपींस

09) 486: जॉर्जिया

10) 489: हांगकांग

11) 49: जापान

12) 50: यूनाइटेड किंगडम

13) 690-692: चीन

14) 70: नॉर्वे

15) 73: स्वीडन

16) 76: स्विट्जरलैंड

17) 888: सिंगापुर

18) 789: ब्राजील

19) 93: ऑस्ट्रेलिया

ऊपर दिए गए सभी बारकोड भारत के एवं अन्य बाहर के  विभिन्न देशों के हैं जिनकी पहचान आप किसी भी वस्तु पर छपे हुए बारकोड पर देखकर पहचान सकते हैं कि वे किस देश में निर्मित वस्तुए हैं। यह उन वस्तुओं को जांचने का बेहद आसान तरीका है कि हमारे देश की बनी वस्तुएं स्वदेशी कौन सी है और विदेशी वस्तु कौन सी है?

चलिए अब एक छोटी सी सूची देख लेते हैं जिनमें हम आपको बताएंगे कि कौन सी वस्तु है हमारे देश में बनी हुई है और कौन सी वस्तुएं पूरी तरह से विदेशी है:-

  • स्वदेशी/भारतीय कोल्ड ड्रिंक्स:- कलीमार्क बोवोंटो, रूह अफजा, शरबत, बादाम शेक, दूध, लस्सी, दही, छाछ, जूस, नींबू पानी, नारियल पानी, जलजीरा, ठंडाई, फ्रूटी आदि।
  • विदेशी कोल्ड ड्रिंक:- कोका कोला, फेंटा, कोका कोला (कोक, फैंटा, स्प्राइट, थम्सअप, लिम्का, गोल्डपत), पेप्सी (लेहर, 7up, मिरिंडा, स्लाइस)
  • स्वदेशी / भारतीय साबुन:– हिमालय, मूसल चप्पल, सिनथोल, संतूर, मेडिमिक्स, नीम, गोदरेज, पतंजलि (केश कांति), विप्रो, पार्क एवेन्यू, स्वातीक, अयूर हर्बल, केश निखार, हेयर एंड केयर, डाबर वाटिका, बजाज, नाइल।
  • विदेशी साबुन:- पामोलिव, एचयूएल (लक्स, क्लिनिक, सनसिल्क, रेवलॉन, लक्मे), प्रॉक्टर एंड गैंबल (पेंटेंट, मेडिकेयर), पॉन्ड्स, ओल्ड स्पाइस, शॉवर टू शॉवर, हेड एंड शोल्डर, जॉनसन बेबी, विवेल।
  • स्वदेशी / भारतीय टूथपेस्ट: -नीम, बबूल, विस्को, डबूर, विको बजरदंती, एमडीएच, बैद्यनाथ, गुरुकुल फार्मेसी, विकल्प, एंकर, मेस्वाक, बबूल, वादा, पतंजलि (दंत कांति, दंत मंजन)।
  • विदेशी टूथपेस्ट:– कोलगेट, हिंदुस्तान यूनिलीवर (एचयूएल) (क्लोजअप, पेप्सोडेंट, सिबाका), एक्वाफ्रेश, एमवे, क्वांटम, ओरल-बी, फोरहान्स।
  • स्वदेशी / इंडियन टूथब्रश:– अजय, वादा, अजंता, रॉयल, क्लासिक, डॉ। स्ट्रॉक, मोनेट।
  • विदेशी टूथब्रश:-कोलगेट, क्लोजअप, पेप्सोडेंट, ओरल-बी, एक्वाफ्रेश, सिबाका
  • स्वदेशी / भारतीय चाय और कॉफी:– दिव्या पेया (पतंजलि), टाटा, ब्रह्मपुत्र, आसम, गिरनार, भारतीय कैफे, एमआर, एवीटी चाय, नरसस कॉफी, लियो कॉफी
  • विदेशी चाय: लिपटन (टाइगर, ग्रीन लेबल, येलो लेबल, चीयर्स), ब्रुकबॉन्ड (रेड लेबल, ताज महल), गॉडफ्रे फिलिप्स, पोलसन, गुडरिक, सनराइज, नेस्ले, नेस्कैफ़।
  • स्वदेशी / भारतीय ब्लेड: पुखराज, गैलेंट, सुपरमैक्स, लेजर, एस्क्वायर, सिल्वर प्रिंस, प्रीमियम।
  • विदेशी ब्लेड : जिलेट, 70 cc, विल्मन, विलेट।
  • स्वदेशी / भारतीय शेविंग क्रीम: पार्क एवेन्यू, प्रीमियम, इमामी, बलसारा, गोदरेज, निविया।
  • विदेशी शेविंग क्रीम: पुराना मसाला, पामोलिव, पॉन्ड्स, गिलट, डेनिम।
  • स्वदेशी / भारतीय शैम्पू: हिमालय, निरमा, मखमली
  • विदेशी शैम्पू: क्लिनिक सभी स्पष्ट, सनसिल्क, सिर और कंधे, पैंटीन
  • स्वदेशी / भारतीय टैल्कम पाउडर: संतूर, गोकुल, सिनथोल, बोरोप्लस, कैविन केर उत्पाद
  • विदेशी टैल्कम पाउडर: तालाब, पुराना मसाला, जॉनसन, शावर
  • स्वदेशी / भारतीय दूध: अमूल,  अमूल्या, मदर डेयरी
  • फॉरेन मिल्क: अनिकस्प्रे, मिल्काना, एवरीडे मिल्क, मिल्कमिड
  • स्वदेशी / भारतीय मोबाइल कनेक्शन: आइडिया, एयरटेल, रिलायंस, बीएसएनएल
  • फॉरेन मोबाइल कनेक्शन: वोडाफोन
  • स्वदेशी / भारतीय वस्त्र या कपड़े: रेमंड, सियाराम, बॉम्बे डाइंग, एस। कुमार्स, मफतलाल, गार्डन वरली, अमेरिकन स्वान, गिन्नी एंड जॉनी, ग्लोबस, मैडम, मोंटे कार्लो फैशन लिमिटेड, रिलायंस रिटेल, RmKV,
  • स्वदेशी / भारतीय मोबाइल: माइक्रोमैक्स, कार्बन, लावा
  • विदेशी मोबाइल: सैमसंग, एप्पल, एचटीएचसी, सोनी
  • स्वदेशी / भारतीय बाइक: हीरो, बजाज, टीवीएस बाइक और ऑटो RICKSHAWS
  • विदेशी बाइक: होंडा, यामाहा
  • स्वदेशी / भारतीय जूते: परागन, लखानी, चावड़ा, खादिम, वीकेसी प्राइड, लूनर फुटवियर
  • विदेशी जूते: नाइके, रीबॉक, एडिडास, कन्वर्स
  • स्वदेशी / भारतीय जीन्स और टी-शर्ट: स्पाईकर, के-लाउंज
  • विदेशी जींस और टी-शर्ट: ली, लेवी की, हमें पोलो, पेपे, बेनेटन
  • स्वदेशी / भारतीय वस्त्र: कैम्ब्रिज, पार्क एवेन्यू, बॉम्बे डाइंग, रूफ एंड टफ, ट्रिगर जीन्स, लखानी, श्रीलेथर्स, खादिम, खादी, एक्शन
  • फॉरेन गार्मेंट्स : रेंजर, नाइके, ड्यूक, एडिडास, न्यूपोर्ट, प्यूमा, रीबॉक
  • स्वदेशी / भारतीय घड़ियाँ: टाइटन, एचएमटी, मैक्सिमा, प्रेस्टीज, अजंता, फास्टट्रैक।
  • विदेशी घड़ियाँ: बॉम एंड मर्सीर, बेवीगारी, चोपार्ड, डायर, फ्रेंकमुलर, गिजर-पेर्रेगाक्स, हबलोत, जैक्वेटरोज, लियोनहाटोट, लिआड्रो, लॉन्गाइन्स, मॉन्टलबैंक, मोकाडो, पियागेट, राडो, स्वारोवस्की, टैगहुएर, यूलिस नॉर्ड्स, यूलिस नार्डस Seeko।
  • स्वदेशी / भारतीय बाल खाद्य: शहद, उबले हुए चावल, फलों का रस। अमूल, सागर, तपन, मिल्क केयर, इत्यादि
  • विदेशी बाल खाद्य: नेस्ले (लैक्टोजन, सेरेलाक, नेस्टाम, एलपीएफ, मिल्कमिड, एवरीडे, गाल्को), ग्लेकोस्मिथक्लाइन (फारेक्स)
  • स्वदेशी / भारतीय नमक: टाटा, अंकुर, सैंधा नमक (पतंजलि), लो सोडियम और आयरन -45 अंकुर, टाटा, सूर्य, तारा।
  • विदेशी नमक: अन्नपूर्णा, कैप्टन कुक (HUL- हिंदुस्तान यूनिलीवर), किसान (ब्रुकबोंड), पिल्सबरी।
  • स्वदेशी / भारतीय आइसक्रीम: घर का बना आइसक्रीम / कूलफी, अमूल, वडीलाल, अरुण आइसक्रीम, दूध खाना, आदि
  • विदेशी आइसक्रीम: दीवारें, गुणवत्ता, कैडबरी, डोलप्स, बेसकिन और रॉबिन्स।
  • स्वदेशी / भारतीय बिस्कुट: पारले, सनफीस्ट, ब्रिटानिया, टाइगर, इंदाना, अमूल, रावलगाँव, बेकेमेंस, क्रीमिका, शारिला, पतंजलि (आंवला कैंडी, बेल कैंडी, अरोमा बिस्किट)।
  • विदेशी बिस्कुट: कैडबरी (बॉर्नविटा, 5 स्टार), लिप्टन, हॉर्लिक्स, नुट्रिन, एक्लेयर्स।
  • स्वदेशी / भारतीय केचप और जेम: घर का बना सॉस / केचप, इंदाना, प्रिया, रसना, पतंजलि (फल जेम, सेब जेम, मिक्स जेम)।
  • विदेशी केचप और जैम: नेस्ले, ब्रुकबोंड (किशन), ब्राउन और पालसन
  • स्वदेशी / भारतीय स्नैक्स: बिकानो नमकीन, हल्दीराम, घर का बना चिप्स, बीकाजी, आइन, आदि
  • विदेशी स्नैक्स: अंकल चिप्स, पेप्सी (रफ़ल, स्वाद), फनमंच, आदि।
  • स्वदेशी / भारतीय जल: घर का उबला शुद्ध पानी, गंगा, हिमालय, रेल नीर, बिसलेरी।
  • विदेशी जल: एक्वाफिना, किनले, बेइली, शुद्ध जीवन, इवियन।
  • स्वदेशी / भारतीय टॉनिक: पतंजलि (बादाम पाक, च्यवनप्राश, अमृत रसायण, नट्रामुल)
  • विदेशी टॉनिक: बूस्ट, पॉल्सन , बॉर्नविटा, हॉर्लिक्स, शिकायत, स्पर्ट , प्रोटीन।
  • स्वदेशी / इंडियन ऑयल: परम घी, अमूल, हस्तनिर्मित गाय घी, पतंजलि (सरसो का तेल)
  • विदेशी तेल: नेस्ले, आईटीसी, हिंदुस्तान यूनिलीवर (एचयूएल)
  • स्वदेशी / भारतीय डिटर्जेंट: Tata Shudh, Nima, Care, Sahara, Swastik, Vimal, Hipolin, Fena, Sasa, TSeries, Dr Det, Ghadi, Genteel, Ujala, Ranipal, Nirma, Chamko, Dip
  • विदेशी डिटर्जेंट : HUL (Surf) रिन, सनलाइट, व्हील, ओके, विम), एरियल, चेक, हेंको, क्वांटम, एमवे, रिविल, वूलवॉश, रॉबिन ब्लू, टीनपाल, स्काईलार्क
  • स्वदेशी / भारतीय ब्यूटी प्रोडक्ट्स:- नीम, बोरोसिल, अयूर इमामी, विको, बोरोप्लस, बोरोलीन, हिमानी गोल्ड, नाइल, लैवेंडर, हेयर एंड केयर, हेडेन्स, सिंथोल, ग्लोरी, वेलवेट (बेबी)।
  • विदेशी सौंदर्य प्रसाधन: एचयूएल (फेयर एंड लवली, लक्मे, लिरिल, डेनिम, रेवलॉन), प्रॉक्टर एंड गैंबल (क्लियरसिल, क्लियरटोन), पॉन्ड्स, ओल्ड स्पाइस, डेटॉल, चार्ली, जॉनसन बेबी।
  • स्वदेशी / भारतीय पेन: कैमल, किंग्सन, शार्प, सेलो, एंबेसडर, लिन, मोंटेक्स, स्टीक, संगीता, लक्सर।
  • विदेशी पेन: पार्कर, निकल्सन, रोटोमैक, स्विसएयर, ऐड जेल, राइडर, मित्सुबिशी, फ्लेयर, यूनीबैल, पायलट, रोलगॉल्ड।
  • स्वदेशी / भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स: वोल्टास, वीडियोकॉन, बीपीएल, ओनिडा, आईएफबी, ऑस्कर, सलोरा, ईटीएंडटी, टी-सीरीज़, नेल्को, वेस्टन, अपट्रॉन, केलट्रॉन, कॉस्मिक, टीवीएस, गोदरेज, ब्राउन, बजाज, उषा, पोलर, एंकर , सूर्या, ओरियन्ट, सिननी, टुल्लू, क्रॉम्पटन, लोयड्स, ब्लू स्टार, वोल्टास, कूल होम, खेतान, एवररेडी, जी
  • फॉरेन इलेक्ट्रॉनिक्स: सैमसंग, एलजी, सोनी, हिटाची, हायर।
  • स्वदेशी / भारतीय कंप्यूटर और टैबलेट: HCL, MICROMAX, SPICE, Reliance, Carbonn, Amar PC, चिराग
  • विदेशी कंप्यूटर और टैबलेट: HP, Compaq, Dell, Microsoft, IPAD, Samsung, Motorola, Sony, LG
  • स्वदेशी / भारतीय ऑनलाइन शॉपिंग: Flipkart, IndiaPlaza, YeBhi, Myntra, Naaptol, SnapDeal, HomeShop18, bookmyShow, makemytrip, yatra, via, ibibo, cleartrip।
  • विदेशी ऑनलाइन शॉपिंग: eBay, jabong, अमेज़ॅन, एक्सपीडिया।
  • स्वदेशी /भारतीय कार: टाटा, महिंद्रा, हिंदुस्तान मोटर्स, मारुति
  • विदेशी कार: सुजुकी, हुंडई, शेवरले, फोर्ड, निसान

ऊपर दी गई सूची के अनुसार यदि आप स्वदेश में बने उत्पाद का अधिक उपयोग करेंगे और विदेशी उत्पाद का बहिष्कार करने लगेंगे तो शायद हमारे देश की अर्थव्यवस्था जो इस तालाबंदी के दौरान डगमगाने लगी है फिर से खड़ी होकर सुदृढ़ बन सकती है। देश के नेताओं के साथ-साथ सबसे महत्वपूर्ण योगदान देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में भारतीय नागरिकों का ही है जो प्रत्येक नागरिक को निभाना अवश्य चाहिए। अपने योगदान को निभाते हुए आपको सिर्फ एक ही बात दिमाग में रखनी है “स्वदेशी ही है सही।”

Sunday, May 17, 2020

कोरोना वायरस से लड़ने के लिए बढ़ाएं इम्युनिटी

कोरोना वायरस से लड़ने के लिए इम्युनिटी कैसे बढ़ाएं?

जैसा की हम सभी जानते हैं आजकल कोरोना वायरस इतनी तेज़ी से फ़ैल रहा है, ऐसे में जरूरी है कि आप अपने आपको इससे बचा कर रखें और सावधानी बरतें। कोरोना वायरस से बचने के लिए जरूरी सावधानी के साथ साथ आवश्यक है आपकी इम्युनिटी भी अच्छी हो। क्या आप जानते हैं कि हमारे शरीर को रोगों से लड़ने की शक्ति कहाँ से मिलती है? तो आज हम आपको यहाँ बताएंगे की हमारा शरीर किस तरह बीमारियों और इन्फेक्शन से लड़ता है और कौन इसे शक्ति प्रदान करता है। इसका जबाव है – इम्युनिटी (Immunity Meaning in Hindi), जिसे प्रतिरक्षा भी कहा जाता हैै। यह इम्युनिटी ही होती है जो हर तरह के संक्रमण से लड़ती है, फेफड़ों में होने वाली धूल को साफ करती है और कैंसर की कोशिकाओं को मारती है।
यदि आपकी इम्युनिटी सही होगी तो आप कोरोना वायरस के साथ साथ अन्य रोगों और गंभीर बिमारियों से भी लड़ पायेंगे। आइये जानते हैं इम्युनिटी क्या और कितने तरह की होती है। जानिये इम्युनिटी कैसे बढ़ाया जा सकता है और किन किन कारणों से हमारे शरीर की इम्युनिटी कम हो सकती है।

इम्युनिटी क्या है – Immunity Meaning in Hindi

इम्युनिटी को हिंदी में रोग प्रतिरोधक क्षमता या प्रतिरक्षा कहा जाता है। प्रतिरक्षा के बारे में सबसे पहले रूसी वैज्ञानिक द्वितीय मेनिकिकोव और फ्रांसीसी सूक्ष्म जीवविज्ञानी लुई पाश्चर ने बताया था। शुरुआत में प्रतिरक्षा को केवल इन्फेक्शन या संक्रामक बीमारियों के लिए जीव की प्रतिरक्षा के रूप में माना जाता था पर बाद में पता चला की यह हमारे शरीर को सभी तरह की बिमारियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करती है और साथ ही यह बीमारियों से लड़ने के लिए शरीर की सेल्स को भी बदल देती है। उदाहरण के लिए यदि आपकी इम्युनिटी अच्छी है तो आप कैंसर जैसी घातक बीमारी से भी लड़ सकते हैं।

इम्युनिटी के प्रकार

प्रतिरक्षा दो प्रकार की होती है- इनेट और एडेटिव इम्युनिटी (Immunity Meaning in Hindi)

  1. इनेट इम्युनिटी: यह व्यक्ति को रोगों के प्रति सुरक्षा देती है परन्तु यह दीर्घकालिक नहीं होती।
  2. एडेटिव इम्युनिटी: यह व्यक्ति को रोगों के प्रति सुरक्षा देती है साथ ही यह विशिष्ट रोगजनकों के खिलाफ दीर्घकालिक सुरक्षा भी देती है।

“सभी जानवरों, पौधों और कवकों में इनेट इम्युनिटी होती है। जबकि Vertebrates में एडेटिव इम्युनिटी होती है।”

इम्युनिटी कम होने के कारण

क्या आपने कभी सोचा है की कुछ लोग दूसरों की तुलना में ज्यादा बीमार क्यों होते हैं? इसका उत्तर है शायद उनकी बॉडी में उतनी क्षमता नहीं होती कि जर्म्स और वायरस से लड़ सके, जिसका मतलब यह है कि आपकी इम्युनिटी या रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम या उनका इम्यून सीटें कमजोर है। इसके कम होने के बहुत सारे कारण हो सकते हैं जो नीचे दिए गए हैं-

Immunity Meaning in Hindi , Meaning of Immunity in Hindi

तनाव: लगभग हम सभी ने हमारे जीवन में किसी न किसी बिंदु पर तनाव जरूर महसूस किया होगा। सिरदर्द, छाती में दर्द, बेचैनी और समग्र तनाव महसूस करने से तनाव की पहचान होती है। ये सभी कारक मिलकर हमारे इम्यून सिस्टम को और कठिन मेहनत करने के लिए मजबूर करते हैं जिससे हमारा शरीर बिमारियों से लड़ सके। परन्तु कभी कभी हमारा इम्यून सिस्टम इनसे लड़ नहीं पता और Low Immunity का कारण बनता है।

व्यायाम न करना: हमारा इम्यून सिस्टम हमारे शरीर के लिए और हमारी लाइफ स्टाइल के अनुसार हमेशा फिट हो यह हर बार जरुरी नहीं होता एक अध्ययन बताता है की नियमित रूप से एक्सरसाइज करने से न्यूट्रोफिल्स को कार्य करने में सहायता करता है, न्यूट्रोफिल्स वो सेल्स होती हैं जो अवांछित और कभी-कभी खतरनाक सूक्ष्मजीवों को मारने के लिए काम करती हैं। ये सूक्ष्मजीव स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। इस प्रकार एक्सरसाइज न करना Low Immunity or (Immunity Meaning in Hindi) का कारण बन सकता है।

सही नींद न लेना: क्या आप जानते हैं कि जब आप सो रहे होते हैं तब भी आपकी ब्लड सेल्स जो इन्फेक्शन से लड़ती हैं, वो उस समय भी इन्फेक्शन को आपकी बॉडी से दूर रखने के लिए कार्य कर रही होती हैं। इसलिए कम नींद और थकान भी Low Immunity का कारण हो सकती है।

अनुचित पोषण: अनुमान यह है कि कम डाइट और व्यायाम की कमी साथ मिलकर, हर साल 310,000 और 580,000 अमेरिकियों की हत्या के लिए जिम्मेदार होती है। इसलिए जरूरी है की संतुलित भोजन करें जिसमे सभी विटामिन, खनिज, पोषक तत्व, एंटीऑक्सीडेंट्स और अभी जरूरी तत्व उपस्थित हों। वहीं फैटी जंक फूड्स को खाने से बचना चाहिए क्योंकि इनमे पॉलीअनसैचुरेटेड फैट्स होते हैं जो इम्यून सिस्टम को काम करने से रोकते हैं।

इम्युनिटी बढ़ाने के उपाय

इम्युनिटी को बढ़ाने के लिए आप निम्नलिखित डाइट्स और उपायों को कर सकते है जो इस प्रकार हैं-

  • नियमित रूप से व्यायाम करें: नियमित व्यायाम हमारे ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ा कर हमारी इम्युनिटी को बढ़ता है

Immunity Meaning in Hindi , Meaning of Immunity in Hindi

  • विटामिन डी वाले खाद्य पदार्थों का उपभोग करें: विटामिन डी का सेवन स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हो सकता है, खासकर जब हमारे शरीर को कोल्डऔर फ्लू सहित श्वसन संक्रमण के खिलाफ लड़ना हो ।

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  • अतिरिक्त दवा खाने से बचें: अत्यधिक दवाएं का सेवन आपकी इम्यून सिस्टम में बाधा डालती हैं और आपके लिवर, किडनी और रेस्पिरेटरी सिस्टम को कार्य करने में बाधा डालती हैं और गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती हैं। हालांकि दवाएं और एंटीबायोटिक्स शरीर को बीमारियों से ठीक करने में मदद करते हैं, पर यह शरीर की प्रतिरक्षा में सुधार करने में मदद नहीं करती है।

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  • कॉफी की जगह ग्रीन टी पियें: हालाँकि कॉफ़ी में कुछ एंटी ऑक्सीडेंट्स होते हैं पर यह हमारे शरीर में कैल्शियम के अवशोषण को रोकती है इसलिए कॉफ़ी के स्थान पर ग्रीन टी पियें यह आपके मेटाबोलिज्म को बढ़ती है और इम्युनिटी को बढ़ाने में मदद करती है।

Immunity Meaning in Hindi , Meaning of Immunity in Hindi

  • धूम्रपान और शराब पीने से बचें: धूम्रपान, तम्बाकू और शराब का ज़बान आपके इम्यून सीटें को कार्य करने में बाधा डाल सकता है। जिससे आपका शरीर कई बिमारियों से इन्फेक्टेड हो सकता है, इसलिए इन सभी का त्याग करे और अपने इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाएं।

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  • विषाक्त खाद्य पदार्थों को न खायें: रिफाइंड शुगर और प्रोसेस्ड फ़ूड का बहुत लम्बे समय तक और बहुत ज्यादा सेवन आपके इम्यून सिस्टम को कमजोर बना सकता है, जिसके कारण बीमारियां होने का खतरा बढ़ सकता है और हमारी वाइट ब्लड सेल्स जो बैक्टीरिया को मारती हैं उनकी क्षमता कम हो जाती है।

Immunity Meaning in Hindi , Meaning of Immunity in Hindi

  • स्वच्छता बनाए रखें: ज्यादातर इन्फेक्शन दूषित सतहों को छूने से और फिर उन्ही को अपने मुंह आँख नाक पर लगाने से फैलते हैं। इस इन्फेक्शन के होने की सम्भावना को कुछ अच्छी आदतों को अपनाकर दूर किया जा सकता है, जैसे – आस पास स्वछता का ध्यान रखें, खाना खाने से पहले और खाना खाने के बाद हाथों को अच्छे से धोएं, दूषित भोजन न खाएं, नाखूनों को काट कर रखें इत्यादि।

Immunity Meaning in Hindi , Meaning of Immunity in Hindi

  • पर्याप्त नींद लें: नींद की कमी प्रतिरक्षा प्रणाली को समझौता करने की लिए मजबूर करती है इसलिए आपको हर दिन पर्याप्त नींद लेनी चाहिए।

Immunity Meaning in Hindi , Meaning of Immunity in Hindi

  • दिल खोल कर हँसे: खुल कर हँसने से आपकी इम्युनिटी तो बढ़ती ही है साथ ही आपकी मेन्टल हेल्थ में भी सुधार आता है, इसलिए जब भी मौका मिले अपने दोस्तों, रिश्तेदारों के साथ मिलकर खुल कर हँसे।

Immunity Meaning in Hindi , Meaning of Immunity in Hindi

  • प्रतिरक्षा बूस्टिंग फूड्स का उपभोग करें: अपनी समग्र प्रतिरक्षा में सुधार के लिए तरबूज, गेहूं, दही, पालक, मीठे आलू, ब्रोकोली, लहसुन, अदरक, अनार का रस इत्यादि जैसे प्रतिरक्षा बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों का उपभोग करें। तरबूज में Glutathione, एंटीऑक्सिडेंट होता है जो प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद करता है। प्रतिरक्षा में वृद्धि के लिए गेहूं की जर्म भी खपत की जा सकती है। यह एंटीऑक्सिडेंट्स, बी विटामिन और जस्ता का एक बड़ा स्रोत है। गेहूं की जर्म में प्रोटीन, फाइबर और कुछ स्वस्थ वसा का एक बड़ा संयोजन भी होता है।

हमारे शरीर को प्रतिरक्षा की बहुत आवश्यकता होती है, तभी यह विभिन्न प्रकार के रोगों और इन्फेक्शन से लड़ सकता है, इसलिए जरुरी है कि अपने शरीर का ध्यान रखें, हेल्दी डाइट लें और अपने इम्यून सिस्टम और इम्युनिटी का ख्याल रखें।

Sunday, May 17, 2020

होम क्वारंटाइन के दौरान आप क्या-क्या करें एवं सावधानियां बरतें

होम क्वारंटाइन के दौरान आप क्या-क्या करें एवं सावधानियां बरतें, डॉक्टर से टेली/वीडियो परामर्श लें

दुनिया भर में दुसरे देशों के साथ साथ भारत में भी कोरोना वायरस (coronavirus in Hindi) का खतरा और इसका प्रसार बढ़ता जा रहा है। कोरोना वायरस या COVID -19 के तेजी से प्रसार के कारण आज हमारा पहले की तुलना में घर से बाहर निकलना और अधिक समय घर पर बिताना अत्यंत आवश्यक हो गया है। इस कोरोना वायरस (Coronavirus in Hindi) जैसी महामारी से बचने का सबसे उत्तम उपाय है स्वयं को और अपने प्रियजनों को इससे बचाना। इसके लिए आवश्यक है बाहर जाने से बचें और लोगों के संपर्क में न आएं। इसके अलावा आप अपने आपको होम क्वारंटाइन यानि संगरोध कर सकते हैं।

क्वारंटाइन का मतलब (Coronavirus Quarantine Meaning in Hindi)

आइये पहले जानते हैं क्वारंटाइन यानि संगरोध का मतलब क्या होता है:

क्वारंटाइन यानि संगरोध एक व्यक्ति के लिए अकेले रहने की स्थिति या स्थान होता है जो संक्रामक रोगों के संपर्क में आ सकता है। अलगाव यानि आइसोलेशन की अवधि इस संभावना को कम करती है कि कोई व्यक्ति किसी दूसरों को अपनी बीमारी को स्थानांतरित कर सके।

क्वारंटाइन यानि संगरोध केवल बीमार लोगों के लिए ही नहीं होता यह उन लोगो के लिए भी हो सकता है जो लोग स्वस्थ दिखाई देते हैं, क्योंकि वे ये जाने बिना की वो किसी रोग के वाहक हैं रोग को दूसरे लोगों में फैला सकते हैं। यही कारण है कि जो व्यक्ति स्वस्थ दिखाई देते हैं, उनको भी क्वारंटाइन यानि संगरोध किया जा सकता है, परन्तु यह इस पर भी निर्भर करता है कि वे कहाँ से आ रहे हैं।

जैसा की हम ऊपर बता चुके है की क्वारंटाइन क्या होता है और माननीय प्रधानमंत्री जी के भाषण के बाद हर जगह जैसे सोशल मीडिया और हमारे सगे सम्बन्धी भी इसी विषय में बात कर रहे हैं, हम आपको बताएंगे की इस सम्बन्ध में कौन सी बातें ध्यान रखने योग्य हैं और आपके लिए महत्वपूर्ण हो सकती हैं:

  1. होम क्वारंटाइन का अभ्यास किसे करना चाहिए?
  2. क्या उपाय किए जा सकते हैं ?

यहाँ यह बात ध्यान रखने योग्य है की आपको क्वारंटाइन , सोशल डिस्टन्सिंग यानी घुलना मिलना और आइसोलेशन (अलगाव ) में क्या अंतर होता है यह पता हो। आइये जानते हैं पहले इन तीनो का मतलब क्या होता है

Coronavirus in Hindi

#सोशल डिस्टेंसिंग

कोरोना वायरस (Coronavirus in Hindi) के संक्रामक रोगों के प्रसार को कम करने के लिए एक दूसरे से बातचीत के दौरान अन्य लोगों से शारीरिक दूरी बनाये रखना। बड़े सार्वजनिक समारोहों और बैठकों को रद्द करें और मॉल, स्कूलों और अन्य सार्वजनिक स्थानों को बंद करना सामाजिक दूरी के उदाहरण हैं।

#क्वारंटाइन

जब एक व्यक्ति जो अस्वस्थ होता है या उसमे कोरोनोवायरस के लक्षण (Coronavirus symptoms in Hindi) दिखाई देते हैं, तो अन्य संक्रमित लोगों के संपर्क से खुद को अलग करने का निर्णय लेता है, इसे कॉरंटाइन या संगरोध के रूप में जाना जाता है। ऐसे व्यक्ति आमतौर पर कुछ दिनों के लिए अपने आपको अपने घर से बाहर जाने से सीमित कर देते हैं। कॉरंटाइन उन व्यक्तियों के लिए अत्यधिक सुझाव दिया जाता है जो कोरोनोवायरस (Coronavirus in Hindi) को अनुबंधित करने के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं और उन्हें अन्य संक्रमित व्यक्तियों के संपर्क में आने की आवश्यकता होती है।

#आइसोलेशन (अलगाव)

जिन व्यक्तियों में COVID-19 या कोरोना वायरस के होने का पता चलता है, उनके लिए आइसोलेशन की आवश्यकता होती है। इसका सीधा सा मतलब है कि जो लोग संक्रामक बीमारी से ग्रसित हैं उनसे स्वस्थ व्यक्तियों से दूर रखना जिससे यह संक्रमण अधिक न फैले। अस्वस्थ व्यक्तियों के लिए घर पर, अस्पताल में, या स्वास्थ्य सुविधा पर, विशेष रूप से संक्रमित रोगियों की देखभाल के लिए सुसज्जित किया जा सकता है।

हम आपको ऊपर बता चुके हैं की सोशल डिस्टन्सिंग, आइसोलेशन और क्वारंटाइन में क्या अंतर होता है, आइये जानते हैं किसको होम क्वारंटाइन (Coronavirus quarantine guidelines in india) करना चाहिए और कितने समय के लिए यह होना चाहिए ?

किसको होम क्वारंटाइन करना चाहिए? Coronavirus quarantine guidelines in india

होम क्वारंटाइन एक ऐसा उपाय है जो कोरोनावायरस के एक संदिग्ध या पुष्टि मामले के सभी ‘संपर्कों’ पर लागू होता है। CDC ने 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों और उन लोगों को सलाह दी है जिनकी इम्यूनोकॉम्प्रोमाइज्ड (बिगड़ा हुआ प्रतिरक्षा प्रणाली) हैं जो अधिमानतः घर पर रहते हैं। इनके अलावा:

  • COVID-19 से प्रभावित व्यक्ति के साथ एक ही घर में रहने वाला कोई भी व्यक्ति
  • कोई भी व्यक्ति जो आवश्यक सुरक्षात्मक गियर पहने बिना एक कोरोना वायरस के मरीज के साथ सीधे शारीरिक संपर्क रखता है
  • कोई भी व्यक्ति जो किसी ऐसे व्यक्ति के साथ बंद वातावरण में था, जिसने COVID-19 के लिए सकारात्मक परीक्षण किया है
  • कोई भी व्यक्ति जिसका COVID-19 रोगी के साथ हवाई यात्रा सहित 1 मीटर की दूरी पर सीधा संपर्क रहा हो
  • होम क्वारंटाइन अवधि एक पुष्टि मामले के साथ संपर्क से 14 दिनों के लिए है या इससे पहले अगर एक संदिग्ध मामला (जिसमें सूचकांक व्यक्ति एक संपर्क है) प्रयोगशाला परीक्षण पर नकारात्मक निकलता है।

होम क्वारंटाइन के नियम : Home quarantine guidelines in India

होम क्वारंटाइन के लिए निम्न उपायों का पालन करना चाहिए

  • एक अच्छी तरह हवादार सिंगल-रूम में रहें, बेहतर होगा की बाथरूम कमरे में ही हो
  • यदि कमरा साझा किया जा रहा है, तो व्यक्ति के साथ हर समय 1 मीटर की दूरी बनाए रखें
  • जो लोग स्पर्शोन्मुख या अस्वस्थ हैं, उनके लिए यह सुनिश्चित करें कि आपका ‘घर से काम’ सेट-अप एक अच्छी तरह से रोशनी और कमरे में एक आरामदायक जगह में व्यवस्थित किया गया है जिसमें आप अलग हैं।
  • घर के बड़े लोगों, गर्भवती महिलाओं और बच्चों से दूर रहें
  • क्वारंटाइन के तहत व्यक्ति को घर के अन्य कमरों / आम क्षेत्रों में आना जाना प्रतिबंधित करना चाहिए
  • क्वारंटाइन के तहत व्यक्ति को घर पर और जरूरत पड़ने पर बाहर निकलते समय भी मास्क का उपयोग करना चाहिए

जैसा की हमने ऊपर बताया की क्वारंटाइन की अवधि 2 सप्ताह की होती है इसके लिए होम क्वारंटाइन के दौरान आप निम्नलिखित सामान को स्टॉक-अप कर सकते हैं:

  • भोजन की वस्तुएं
  • दवाएं और प्राथमिक चिकित्सा किट
  • अन्य जरूरी सामान जैसे तौलिये, सफाई के उत्पाद
  • स्नान और स्वच्छता उत्पाद

देखभाल करने वालों के लिए निर्देश:

यदि आप रोगी का ध्यान रख रहें हैं तो निम्न निर्देशों का पालन करें

  • हमेशा मरीज के साथ शारीरिक संपर्क में रहने के दौरान एक सर्जिकल मास्क और दस्ताने पहनें
  • इस्तेमाल किए गए मास्क और दस्ताने तुरंत फेंक दें और सुनिश्चित करें कि उनका दोबारा इस्तेमाल न करें
  • कीटाणु से ग्रसित व्यक्ति के कपड़े, तौलिया, बर्तन आदि को अलग से धोएं
  • किसी भी आगंतुक को संगरोध व्यक्ति के संपर्क में आने की अनुमति न दें
  • किसी भी आगंतुक को तब तक अनुमति न दें, जब तक कि मरीज घर से बाहर न हो जाए
  • वायरस के प्रसार से बचने के लिए बेडरूम, बाथरूम, चादर और कंबल की नियमित रूप से सफाई करें
  • सामान्य सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों का पालन किया जाना चाहिए
  • कम से कम 20 सेकंड के लिए अपने हाथों को साबुन और गर्म पानी से नियमित रूप से धोएं
  • जब आप साबुन और पानी का उपयोग नहीं करते हैं तो 70% अल्कोहल-आधारित सैनिटाइज़र का उपयोग करें

ध्यान रखने योग्य बातें

  • कोरोना वायरस श्वसन बूंदों के माध्यम से फैलता है आतः बाहर जाने के समय किसी भी चीज को न छुएं और अपने आँख, नाक और मुँह का न छुएं।
  • बाहर से आने के तुरंत बाद अपने हाथ और मुँह धोएं और हाथ धोते समय कम से कम २० सेकंड तक साबुन हाथ में रखें।
  • छींक आने पर मुंह को टिस्सु पेपर या मुड़ी हुई कोहनी के साथ कवर करें।

याद रखें, कोरोनोवायरस संक्रमण के तेजी से प्रसार को नियंत्रित करने के लिए घरेलू संगरोध एक उपाय है। यदि आपके होम संगरोध के दौरान, आप लक्षण विकसित करते हैं या अस्वस्थ महसूस करते हैं, तो कृपया अपने स्वास्थ्य सेवा प्रदाता को फोन करें और यदि आवश्यक हो, तो डॉक्टर से परामर्श करें।

होम क्वारंटाइन अवधि एक पुष्टि मामले के साथ संपर्क से 14 दिनों के लिए है या इससे पहले अगर एक संदिग्ध मामला (जिसमें सूचकांक व्यक्ति एक संपर्क है) प्रयोगशाला परीक्षण पर नकारात्मक निकलता है।

यदि आप कोरोनावायरस के संदिग्ध हैं या इसकी पुष्टि हो चुकी है तो आपको क्वारंटाइन करने की आवश्यकता है।
Sunday, May 17, 2020

कोरोनावायरस से जुडी ये बातें, जानिए क्या सच है या झूठ

कोरोनावायरस से जुडी ये बातें, जानिए क्या सच है या झूठ : Coronavirus what Myths And Facts


कोरोना वायरस को Covid-19 क्यू कहा जाता है? 

CO - Corona
VI - Virus
D - Disease
19 - 2019

कोरोनावायरस रोग (COVID-19) इतनी तेजी से सारे संसार में फैल चुका है कि इस पर काबू पाना अत्यन्त कठिन हो चुका है। अलग अलग देशों की सरकारें इस दिशा में भरसक प्रयास कर रह हैं और सभी देशों के डॉक्टर्स और वैज्ञानिक इसके इलाज की खोज में लगे हुए हैं। लोग डरे हुए है और जिस कारण इसके बारे में प्रसारित किसी भी जानकारी पर वे आँख मूँद कर विश्वास कर रहे हैं। ऐसे में यह जानना बहुत महत्वपूर्ण है कि कोरोना वायरस से जुडी कौन सी बात सच है और कौन सी नहीं।

आज हम आपको और आपके परिवार को स्वस्थ और सुरक्षित रखने में मदद करने के लिए जानकारी को स्पष्ट करने में मदद करेंगे। नीचे दी गयी समस्त जानकारी WHO यानि world Health organization द्वारा प्रसारित की गयी है और सहयोगी डॉक्टरों द्वारा सत्यापित की गयी है।

सबसे पहले हम आपको बताएंगे की आपके द्वारा सुनी गयी बातों में क्या सच है और क्या झूठ?

कोरोना वायरस से जुड़े सच और झूठ

1. COVID-19 को ठीक करने के लिए टीका उपलब्ध है: झूठ
सच: अभी तक कोरोनावायरस का कोई टीका उपलब्ध नहीं है। वैज्ञानिकों ने पहले से ही एक पर काम करना शुरू कर दिया है, लेकिन इसके लिए वैक्सीन बनाने में जो मानव में सुरक्षित और प्रभावी है, इसमें कई महीने लगेंगे।

2. आप ब्लीच के साथ गरारा करके, एसिटिक एसिड या स्टेरॉयड लेने या आवश्यक तेलों, नमक पानी, इथेनॉल या अन्य पदार्थों का उपयोग करके स्वयं को COVID -19 से बचा सकते हैं: झूठ

सच: इनमें से कोई भी अनुशंसा आपको COVID-19 से नहीं बचा सकती है, और इनमें से कुछ आपके लिए खतरनाक हो सकते हैं। कोरोनावायरस (और अन्य वायरस) से खुद को बचाने के सर्वोत्तम तरीकों में निम्न शामिल हैं:

  • साबुन और गर्म पानी का उपयोग करते हुए, अपने हाथों को बार-बार और अच्छी तरह से धोना।
  • बीमार, छींकने या खांसने वाले लोगों के साथ निकट संपर्क से
    बचें।
  • इसके अलावा, बीमार होने पर घर में रहकर अपने कीटाणुओं को फैलने से बचा सकते हैं।

3. कोरोनावायरस को जानबूझकर लोगों द्वारा फैलाया गया है: झूठ
सच: समय के साथ-साथ नये नये वायरस फ़ैल सकते हैं। कभी-कभी, एक बीमारी का प्रकोप तब होता है जब किसी जानवर जैसे कि सुअर, चमगादड़ या पक्षी से वायरस आम होता है और इंसानों में फ़ैल जाता है। इसी संभावना से कोरोनोवायरस का जन्म हुआ।

4. क्या चीन से आने वाले उत्पादों को ऑर्डर करना या खरीदना किसी व्यक्ति को बीमार कर सकता है: झूठ
सच: शोधकर्ता नए कोरोनावायरस के बारे में अधिक जानने के लिए अध्ययन कर रहे हैं जैसे कि यह लोगों को कैसे संक्रमित करता है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस तरह के अधिकांश वायरस किसी प्रकार की सतहों पर बहुत लंबे समय तक जीवित नहीं रहते हैं, इसलिए यह संभावना नहीं है कि आपको एक पैकेज से COVID ​​-19 हो सकता है जो कि कई दिनों या हफ्तों पहले भेजा गया था। यह बीमारी संक्रमित व्यक्ति की छींक या खांसी से होने वाली बूंदों से सबसे अधिक फैलती है, इस सम्बन्ध में अधिक जानकारी डेली निकल कर आ रही है।

5. फेस मास्क आपको COVID-19 से बचा सकता है: झूठ
सच: कुछ प्रकार के मास्क (जैसे कि एन 95) और ऐसे ही कुछ मॉडल आपके डॉक्टर या नर्स के लिए सही होते हैं क्योंकि वे संक्रमित मरीजों की देखभाल करते हैं।
यदि आपको कोई सांस की बीमारी नहीं है तो आप हल्के डिस्पोजेबल सर्जिकल मास्क न पहने क्योंकि वे कसकर फिट नहीं होते हैं, और छोटे संक्रमित बूंदों को नाक, मुंह या आंखों में प्रवेश करने से रोक नहीं पाएंगे। इसके अलावा, जिन लोगों के हाथों में वायरस होता है, वे यदि मास्क के ऊपर से अपना चेहरा छूते हैं, तो वे संक्रमित हो सकते हैं।
सांस की बीमारी वाले लोग इन मास्क को पहन सकते हैं ताकि दूसरों को संक्रमित करने की संभावना कम हो सके।

 6. COVID-19 वायरस गर्म और वातावरण वाले क्षेत्रों में नहीं फैलता है : झूठ
सच: WHO के अनुसार अभी तक इस बात की कोई पुष्टि नहीं हुई है और अब तक के मामलों से भी पता चलता है कि, COVID-19 वायरस गर्म मौसम वाले या गरम वातावरण में भी फ़ैल सकता है। यदि आप कोरोना वायरस से स्वयं को बचाना चाहते हैं तो इसका सबसे अच्छा तरीका है अपने हाथों को बार-बार पानी और साबुन से अच्छी तरह से साफ करना। ऐसा करने से आप अपने हाथों पर लगे वायरस को खत्म कर सकते हैं और इसके संक्रमण से बच सकते हैं, इसके अलावा अपनी आंखों, मुंह और नाक को छूने से बचे।

7. गर्म पानी से स्नान करने से कोरोनावायरस से बचा जा सकता है: झूठ
सच: गर्म पानी से स्नान करने से आप COVID-19 को होने से नहीं रोक पाएंगे। आपके नहाने या शॉवर के तापमान को अगर नकार दिया जाये फिर भी आपके शरीर का सामान्य तापमान लगभग 36.5 ° C से 37 ° C तक रहता है। दरअसल, बेहद गर्म पानी से नहाना हानिकारक हो सकता है, क्योंकि यह आपको जला सकता है। COVID-19 से खुद को बचाने का सबसे अच्छा तरीका है अक्सर अपने हाथों की सफाई करना। ऐसा करने से आप अपने हाथों पर लगने वाले वायरस को खत्म कर सकते हैं और संक्रमण से बच सकते हैं।

8. हैंड ड्रायर कोरोनोवायरस को मारने में प्रभावी हैं: झूठ
सच: नहीं, 2019-nCoV को मारने में हैंड ड्रायर्स कारगर नहीं हैं। कोरोनावायरस के खिलाफ खुद को बचाने के लिए, आपको अक्सर अपने हाथों को अल्कोहल-युक्त सेनेटाइजर से साफ करना चाहिए या उन्हें साबुन और पानी (कम से कम 20 सेकण्ड तक साबुन हाथों में रखें) से धोना चाहिए। एक बार जब आपके हाथ साफ हो जाते हैं, तो आपको कागज़ के तौलिये या गर्म हवा के ड्रायर का उपयोग करके उन्हें अच्छी तरह से सुखाना चाहिए।

9. थर्मल स्कैनर का प्रयोग करके कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों का पता लगाया जा सकता है: झूठ
सच: थर्मल स्कैनर्स सम्भवतः केवल उन लोगों का पता लगाने में सक्षम हैं, जिन्हे कोरोनोवायरस के संक्रमण के कारण तेज़ बुखार है। हालांकि, यह उन लोगों का पता नहीं लगा सकते जो इससे संक्रमित हैं क्योंकि संक्रमित लोगों के बीमार होने और बुखार आने से पहले कम से कम 2 से 10 दिन लगते हैं। यही कारण है की बाहर से आने वाले लोगों को होम क्वारंटीन की सलाह दे जाती है।

10. शरीर पर अल्कोहोल या क्लोरीन का छिड़काव कोरोनावायरस को मार सकता है: झूठ
सच: नहीं, ऐसा नहीं है। आपके शरीर पर अल्कोहोल या क्लोरीन का छिड़काव करने से या अल्कोहोल का सेवन करने से आपके शरीर में पहले से मौजूद वायरस नहीं फैलेंगे। इस प्रकार का छिड़काव कपड़े या आपके आंख, मुंह इत्यादि के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है।

11. क्या कोरोनोवायरस केवल बूढ़े लोगों को ही प्रभावित करता हैं: झूठ
सच: कोरोनोवायरस (2019-nCoV) से सभी उम्र के लोग संक्रमित हो सकते हैं। बूढ़े लोग, और पहले से मौजूद चिकित्सा स्थितियों (जैसे अस्थमा, मधुमेह, हृदय रोग) के लोग वायरस से गंभीर रूप से बीमार होने के लिए अधिक कमजोर दिखाई देते हैं।

डब्ल्यूएचओ सभी उम्र के लोगों को सलाह देता है कि वे खुद को वायरस से बचाने के लिए कदम उठाएं, उदाहरण के लिए अच्छे हाथ की स्वच्छता और अच्छे श्वसन स्वच्छता का पालन करके।

आइये जानते हैं कोरोना वायरस कौनसी सतह पर कितने समय तक जीवित रह सकता है?

एक नए विश्लेषण में पाया गया कि कोरोना वायरस हवा में 3 घंटे तक, तांबे पर 4 घंटे तक, कार्डबोर्ड पर 24 घंटे और प्लास्टिक और स्टेनलेस स्टील पर 72 घंटे तक बना रह सकता है। यह अध्ययन मूल रूप से 11 मार्च को प्रीप्रिंट डेटाबेस मेडरिक्स में प्रकाशित किया गया था, और अब द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में 17 मार्च को एक संशोधित संस्करण प्रकाशित किया गया था।

सुरक्षित रहें सतर्क रहें!

कोरोना वायरस से जुडी अन्य जानकारी के लिए शैल वेब टेक से जुड़े रहिये।

Thursday, May 14, 2020

बाल विकास एवं शुरुआती स्वास्थ्य

बाल विकास एवं शुरुआती स्वास्थ्य

बच्चों में विकासात्मक मील के पत्थर-एक परिचय

बच्चों का विकास एक जटिल एवं सतत प्रक्रिया है। उन्हें एक खास आयु में कार्य-विशेष करने में सक्षम होना चाहिए। ये विकासात्मक मील के पत्थर कहलाते हैं। एक माता या पिता होने के नाते, यह समझना महत्वपूर्ण है कि कोई भी दो बच्चे समान रूप से विकसित नहीं होते। इसलिये, इस बारे में चिंता करना व्यर्थ है कि पड़‍ोस का बच्चा यह या वह कर सकता है, लेकिन उसका बच्चा नहीं। विभिन्न गतिविधियों के लिए दर्ज़ की गई आयु पर, बच्चे को कुछ समय तक ध्यान से देखना चाहिए।

यदि कुछ महीने बाद भी वह कोई विशेष गतिविधि प्रदर्शित नहीं करता हो, तो बाल-रोग विशेषज्ञ से परामर्श लिया जाना चाहिए। यह इस तथ्य को ध्यान में रखता है कि बच्चा अलग तरीके से व्यवहार कर रहा है क्योंकि वह बीमार या व्यथित है। कभी-कभी बच्चा कुछ क्षेत्रों में समान आयु के अन्य बच्चों की तुलना में अधिक धीमी गति से विकसित हो सकता है जबकि उसकी अन्य गतिविधियां दूसरे बच्चे से आगे हो सकती हैं। जबकि बच्चा चलना सीखने के लिए तैयार नहीं हो, तब उसे चलना सीखने के लिए विवश करने पर कोई नतीज़ा नहीं निकलेगा।

विकासात्मक विलम्ब के लिए त्वरित परख

  • 2 महीने मित्रवत मुस्कान
  • 4 महीने गर्दन सीधी रखने में सक्षम
  • 8 महीने बगैर सहारे के बैठना
  • 12 महीने खड़ा होना

जन्म से 6 हफ्तों तक

  • बच्चा पीठ के बल लेटकर सिर एक ओर घुमाकर रखता है
  • अचानक आवाज़ उसे चौंकाती है जिससे उसका शरीर कड़क हो जाता है
  • मुट्ठियां भिंच जाती हैं
  • बच्चा पीठ के बल लेटकर सिर एक ओर घुमाकर रखता है
  • अचानक आवाज़ उसे चौंकाती है जिससे उसका शरीर कड़क हो जाता है
  • मुट्ठियां भिंच जाती हैं
  • बच्चा उसकी हथेली पर कोई चीज़ हल्के से छुआने पर उसे कसकर पकड़ लेता है;
  • यह पकड़ की प्रतिक्रिया

6 से 12 हफ्ते

  • अपना सिर अच्छे तरीके से स्थिर रखना सीखता है
  • वस्तुओं पर अपनी निगाह स्थिर रख सकता है

3 महीने

  • पीठ के बल लेटे-लेटे बच्चा अपना प्रत्येक हाथ एवं पैर समान तरीके से, अच्छे से हिलाता है। हरकतें झटकेदार नहीं होतीं या अ-समन्वित तरीके से नहीं होतीं हैं।
  • बच्चा माता को पहचानता है एवं उसकी आवाज़ पर प्रतिक्रिया देता है ।
  • बच्चे के हाथ अक्सर खुले होते हैं ।
  • जब बच्चे को सीधा पकड़कर रखा जाए तो वह एक क्षण से अधिक समय के लिए अपने सिर का वज़न सम्भाल सकता है।

6 महीने

  • बच्चा अपने हाथों को साथ में मिलाकर खेलता है ।
  • बच्चा उसके आसपास की जाने वाली आवाज़ें सुनकर उनकी दिशा में अपना सिर घुमाता है ।
  • बच्चा पेट से पीठ के बल या पीठ से पेट के बल पलटी मार सकता है।
  • बच्चा थोड़ी देर के लिए सहारा लेकर बैठ सकता है।
  • जब बच्चे को सीधा पकड़ा जाए तो वह अपने पैरों पर कुछ वज़न ले सकता है।
  • जब पेट के बल लेटा हो, तो बच्चा उसका वज़न तने हुए हाथों पर ले सकता है।

9 महीने

  • बच्चा सहारे के बगैर एवं बगैर अपने शरीर को अपने हाथों से पकड़े बैठ सकता है ।
  • बच्चा रेंग सकता है या अपने हाथों तथा घुटनों के बल चल सकता है।

12 महीने

  • बच्चा खड़ा हो सकता है।
  • बच्चा मामा जैसे शब्द बोलना शुरू कर देता है।
  • बच्चा फर्नीचर आदि को पकड़कर चलने में सक्षम होता है।

18 महीने

  • बच्चा बगैर मदद के ग्लास पकड़ सकता है एवं बगैर गिराए उससे पी सकता है ।
  • बच्चा बगैर गिरे या लड़खड़ाए एक बड़े कक्ष में इधर से उधर तक बगैर सहारे के चल सकता है।
  • बच्चा कुछ शब्द बोल सकता है।
  • बच्चा अपने आप खा सकता है।

2 वर्ष

  • बच्चा पजामे जैसे कुछ कपड़े उतार सकता है।
  • बच्चा बगैर गिरे दौड़ सकता है ।
  • बच्चा तस्वीरों की पुस्तक की तस्वीरों में रुचि दर्शाता है ।
  • बच्चा जो कहना चाहता है वह कह सकता है ।
  • बच्चा अन्यों द्वारा कहे गए शब्द दोहराना शुरु कर देता है ।
  • बच्चा उसके शरीर के कुछ हिस्सों की ओर इंगित करने में सक्षम होता है।

3 वर्ष

  • बच्चा कन्धे के ऊपर से गेन्द फेंक सकता है (कन्धे के समानांतर या नीचे से नहीं।
  • "बच्चा तुम लड़का हो या लड़की? जैसे आसान प्रश्नों के उत्तर दे सकता है।
  • बच्चा वस्तुएं उठाकर इधर-उधर रखने में मदद करता है।
  • बच्चा कम से कम एक रंग का नाम ले सकता है।

4 वर्ष

  • बच्चा एक ट्राइसिकल को पैडल से चला सकता है।
  • बच्चा पुस्तकों या पत्रिकाओं में तस्वीरों के नाम बता सकता है।

5 वर्ष

  • बच्चा अपने कुछ कपड़ों के बटन बन्द कर सकता है ।
  • बच्चा कम से कम तीन रंगों के नाम बता सकता है।
  • बच्चा एक के बाद दूसरे कदम के इस्तेमाल से सीढ़ियां उतर सकता है।
  • बच्चा अपने पैर दूर-दूर रखकर उछल सकता है। 
Tuesday, May 12, 2020

बच्चों को होने वाली आम बीमारियॉं

बच्चों को होने वाली आम बीमारियॉं
बच्चों की बीमारियॉं

बच्चों को बीमारीयॉ का होना काफी आम बात है| इस अध्याय में साधारण या आम बीमारीयों का वर्णन दिया है|

भारत की जनसंख्या का 40 प्रतिशत 14 साल से कम के बच्चों का है। उसमें हर सौ बच्चो में से लगभग 12 बच्चे असल में 5 साल से कम उम्र के हैं। बीमारी और मौत छोटी उम्र के साथ ज्यादा हावी रहते हैं। 100 जवित पैदा हुए बच्चों में से 5 की म़त्यु अपनी उम्र का एक साल पूरा करने से पहले ही हो जाती हैं। बच्चों की यह मृत्यु दर विकसित देशों की मृत्यु दर से काफी ज़्यादा है। विकसित देशों में यह दर एक प्रतिशत से भी कम है। भारतीय बच्चों की लंबाई और वजन के पैटर्न को और उनकी बीमारियों को देखें तो हमें पता चलता है कि उनका स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं है। करीब 40 प्रतिशत भारतीय बच्चों की वृद्धि ठीक नहीं हुई होती और वो कुपोषित होते हैं।

भारत में बच्चों के खराब स्वास्थ्य और मौतों का कारण रहन सहन के खस्ता हालात ही है। इन हालातों के कारण ही कुपोषण, संक्रमण रोग और दुर्घटनाओं की स्थितियॉं निर्मित होती हैं। भारत के अधिकांश समुदायों में लडकीयॉ के लिये जन्म से ही और भी ज़्यादा मुश्किल परिस्थितियॉं हैं। गर्भ में लडकी का पता चलते ही उसे गर्भपात कर निकाल देना और लडकी को जन्म के तुरन्त बाद ही खतम कर देना या बाहर कुडेदान पर फेंक देना भी यहॉं काफी समस्या है। कुपोषण, बीमारी, देखभाल का अभाव और मौतें भी बच्चियों के मामले में ज़्यादा देखने को मिलते हैं। इसी कारण से भारत में लिंग अनुपात यानी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं या लड़कों में मुकाबले लड़कियों की संख्या कम है।

बच्चों में बड़े स्तर पर बीमारियॉं होने के बावजूद यहॉं बच्चों के स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है। ग्रामीण इलाकों के अधिकांश स्वास्थ्य कार्यकर्ता और निजी चिकित्साकर्मी बच्चों की स्वास्थ्य सेवाओं के लिए प्रशिक्षित नहीं हैं। खास बच्चों की देखभाल के लिए चलाए गए आंगनवाड़ी कार्यक्रम भी पूरक पोषण और टीकाकरण तक ही सीमित रहते हैं। इसके अलावा कई कई बच्चे घरों में ही पैदा होते हैं और नवजात शिशुओं की ठीक देखभाल भी नहीं होती है। भारत में ३० प्रतिशत बच्चों का जन्म के समय वजन कम होता है और उन्हें जिऩ्दा रहने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। इस अध्याय से आपको बच्चों के स्वास्थ्य की देखभाल के बारे में समझने में मदद मिलेगी।

बच्चों की बीमारियो की एक सूची

* पाचन तंत्र

दांत निकलने की परेशानियॉं, मुखपाक, उल्टि व अमाश्यशोथ, दस्त, पेचिश, पेट में दर्द, पीलिया, क़मि, मोतीझरा, दोहद, कब्ज़ और दुर्घटना से ज़हर चला जाना।

* श्वसन तंत्र

जुकाम खॉंसी, टॉन्सिल या कंठशालूक का शोथ, गला खराब होना (गलदाह), वायुविविर शोथ, श्वसनिका शोथ, निमोनिया, तपेदिक, क़मि परजीवी से होने वाली खॉंसी, दमा।

* त्वचा

छाले, संक्रमण वाले घाव, एक्ज़ीमा, जूंएं, पामा (स्कैबीज़), दद्रु कृमि।

* आँखे

दुखती आँख, कोर्निया में अल्सर, रतौंधी, देखने में मुश्किल और कानापन।

* कान

बाहरी कान का संक्रमण, बाहरी कान में फंफूद, कान में मोम जमना, मध्यकर्ण का संक्रमण और बहरापन।

* तंत्रिका तंत्र

मस्तिष्कावरण शोथ, मस्तिष्क शोथ, टिटेनस, पोलियो, मिर्गी और मानसिक रूप से अविकसित होना। दिल और संचरण: जन्मजात गड़बड़ियॉं और वाल्व की बीमारियॉं।

* कंकाल तंत्र

पैरों के आकार में गड़बड़ी, अन्य हड्डियों और जोड़ों के आकार में गड़बड़ियॉं, रिकेटस, हड्डियों का संक्रमण, कुपोषण के कारण पेशियों का खतम हो जाना, पेशीविकृति।

* खून

दात्र कोशिका अनीमिया, लोहे की कमी से अनीमिया, मलेरिया, कैंसर और रक्त स्त्राव संबंधित गड़बड़ियॉं।

* लसिका तंत

फाइलेरिया रोग, कैंसर, गले में गांठें और वायरस से होने वाली गांठें।

* हारमोन

मधुमेह (डायबटीज़), घेंघा रोग और वृद्धि में अवरोध।

* मूत्र तंत्र

गुर्दे का शोथ (वृक्क शोथ), अपवृक्कीय संलक्षण, मूत्राशय में संक्रमण, मूत्रमार्ग शोथ, पथरी और पेशाब रुक जाना।

* पुरुष जनन तंत्र

वृषण का पूरी तरह से नीचे न आना, वृषण का विकसित न होना और निरुद्धप्रकाश।

* महिला जनन अंग

कम विकसित डिंबग्रंथि या गर्भाशय।

* अन्य बीमारियॉं

खसरा, रूबैला, छोटी माता, कनफेड़, कुपोषण, समय से पहले जन्म, जन्म के समय वजन कम होना।

* दुर्घटनाएं

चोट, जलना, किसी कीड़े आदि द्वारा काट लिया जाना, डूब जाना, बिजली का झटका, कान या नाक में कोई बाहरी चीज़ का चला जाना या ज़हर अंदर चला जाना। यह सूची केवल एक मोटी समझ बनाने के लिए है। आप बहुत सारी बीमारियों के बारे में अन्य अध्यायों में पढेंगे। इस अध्याय में केवल कुछ खास बीमारियों के बारे में ही बात की गई है। बचपन में पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र और त्वचा की बीमारियॉं सबसे अधिक होती हैं। शरीर में कीड़े होने से भी कुपोषण बढ़ता है। बीमारी के लिए दवा दे देना ही काफी नहीं होता। बच्चों के स्वास्थ्य के लिए और उन्हें मौत से बचाने के लिए हमें बीमारियों से बचाव और शुरुआत में ही इलाज पर भी ध्यान देना चाहिए। पोषण, सफाई और टीकाकरण बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।

बचपन में होने वाला निमोनिया

निमोनिया से फेफड़े के ऊतकों पर असर होता है। इसका कारण आमतौर पर बैक्टीरिया से होने वाला संक्रमण होता है। वायरस से संक्रमण बहुत कम होता है। संक्रमण हवा से होता है। निमोनिया में फेफड़ों के किसी भाग में शोथ हो जाता है। इससे बच्चा तेज़ तेज़ सांस लेने लगता है। शोथ से खॉंसी, बुखार और अन्य लक्षण जैसे भूख मरना, उल्टी और बहुत ज़्यादा कमज़ोरी हो जाती है। स्वस्थ बच्चे को निमोनिया आमतौर पर नहीं होता। आमतौर पर कोई और बीमारी होने पर जब शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता कमज़ोर पड़ गई होती है तक निमोनिया हो जाता है। खसरे या किसी और श्वससन तंत्र की किसी वायरस से होने वाली बीमारी से ठीक हो रहे बच्चे, कुपोषित बच्चे, समय से पहले पैदा हुए बच्चे और कम वजन वाले बच्चों के निमोनिया के शिकार होने की संभावना अधिक होती है। विशिष्ट बचाव संभव नहीं है।

भारत में बाल न्यूमोनिया एक गंभीर बीमारी है| पॉंच साल से कम उम्र किसी भी बालक को यह बीमारी कभी भी हो सकती है| बुखार, खॉंसी और सॉंस तेजीसे चलना ये लक्षण होनेपर इसे न्यूमोनिया समझना चाहिये| बाल-न्यूमोनिया अक्सर जिवाणु या कभी कभी विषाणु से होता है| यह बीमारी गंभीर होते हुए भी पहचानने और इलाज के लिये सरल है| अधिक जटिल बिमारियों में अस्पतालमें ही इलाज करवाना पडता है| अब हम इस बीमारी के बारेमें थोडी जानकारी लेंगे| बीमारी की शुरुवात बुखार, सर्दी खॉंसी से होती है| बच्चे का दम फुलता है| बीमारी फेफडों में होती है| यह सब १-२ दिनोंमें होता है|

* रोगनिदान

बुखार, खॉंसी और तेज सांस ये तीन प्रमुख लक्षण है| इसमें खॉंसी सीने की गहराई से आती है| गले से नहीं| खॉंसने की आवाज से ही यह पता चलता है| इसी को भारी खॉंसी भी कहते है| शुरु में १-२ दिन हल्का-मध्यम बुखार रहता है| बुखार निरंतर रहता है|

बच्चेकी सॉंस की गती गिनकर हम सही निर्णय ले सकते है| इसके लिये घडी या मोबाईल फोन के टायमर का प्रयोग करे| एक मिनिट तक सॉंसे गिने| इसके लिये बच्चे के कमर तक कपडे उतारकर देखना पडता है| बच्चे को मॉं की गोद में या खटिया पर लेटाये| सॉंसे गिनने के लिये स्टेथास्कोप की आवश्यकता नहीं होती| छ: महिने से कम उम्र शिशु के लिये ६० से अधिक श्वसन को तेज श्वसन कहा जा सकता है| छ: महिने से २ वर्ष उम्रके बच्चों के लिये ५० से अधिक श्वसन की गति याने दम भरना है| वैसेही २ वर्ष से उपर के बालकों के लिये ४० से अधिक श्वसनदर हो तो तेज श्वसन कहते है| तेज श्वसन से बच्चे के नथुनें फूल जाते है|

*  खतरे के लक्षण

खॉंसी, बुखार व जल्द श्वसन के अलावा निम्न लक्षण गंभीरता के सूचक है|

  • बुखार से दौरे पडते है|
  • बच्चा खाने-पिने को राजी नहीं होता| स्तनपानभी नहीं करता|
  • बच्चा सुस्त हो जाता है| जादा देर जागता नहीं है|
  • सॉंस लेते समय बच्चे की पसलियॉं अंदर खींचती है|
  • सॉंस लेते समय सीने से कराहने की तथा सींटी जैसी आवाज आती है|
  • त्वचा, होंठ, नाखून व चेहरे पर नीली सी झलक दिखती है| इनमे से किसीभी लक्षण के दिखते ही तुरंत वैद्यकीय सहायता लेना चाहिये|

* प्राथमिक उपचार

न्यूमोनिया है लेकिन गंभीरता के लक्षण नहीं, ऐसे में बच्चे को प्राथमिक उपचार काफी है| इसके लिये तीन सामान्य तथा सस्ती दवाईयॉं है| ऍमॉक्सिसिलीन यह जिवाणुओं के लिये, पॅरासिटामॉल बुखार हेतू तथा श्वास नलिका खुलने हेतू कोई दवा| छोटे शिशुओं के लिये ये दवाइयॉं द्रव स्वरूप में मिलती है| थोडे बडे बच्चों के लिये पिघलनेवाली गोलियॉं चल सकती है| ये उपचार कोई स्वास्थ्य कर्मचारी भी कर सकता है| किन्तु उपचार के १-२ दिन बाद डॉक्टर से मिलना ठीक होगा| बुखार उतरने के लिये गुनगुने पानी में कपडा भिगोकर शरीर पोंछ ले| पूरा शरीर पोंछ ले| सिर्फ माथा नहीं| बच्चे का खान-पान चालू रखने की कोशिश करे|

* विशेष सूचना

  • यह बीमारी गंभीर जरुर है लेकिन इसमें इंजेक्शन या सलाईन की आवश्यकता नही होती|
  • खतरे के लक्षण दिखते ही तुरंत अस्पताल ले जाए|
  • इस बीमारी से बच्चे का पेट उडना कहते है| लेकिन यह बीमारी फेंफडों में होती है|
  • दो दिनों के इलाज से जादातर बच्चे पूर्णत: ठीक हो जाते है|

बच्चों में दस्त

बहुत से बच्चों को दस्त की बीमारी हो जाती है| पतले दस्त होते रहना, रक्तमिश्रित श्लेष्मा (आंव) गिरना एक अलग बीमारी है| दस्त रोग से ग्रसीत बच्च का शरीर शुष्क हो जाता है| इससे इन बच्चो की मृत्यू हो सकती है| दस्त केजीवाणु या विषाणू दूषित हाथों या भोजन-पानी के साथ बच्चों के पेट में पहुँचते है| इकोलाय जीवाणु तथा रोटाव्हायरस दोनो विषाणू के जरिये दस्त होता है| दस्त में घरेलू इलाज से भी हम खतरा और मृत्यू टाल सकते है| कभी कभी अस्पतालमें इलाज करवाना पडता है|

* कारण

ज़्यादातर तरह के दस्त (सभी नहीं) संक्रमण के कारण होते हैं। संक्रमण वाले दस्त के आधे मामले वायरस से हुए संक्रमण के होते हैं। प्रतिजीवाणु दवाओं से वायरस से होने वाली बीमारियॉं ठीक नहीं होतीं। वायरस के अलावा कुछ बैक्टीरिया, अमीबा, जिआर्डिया और कृमि से भी दस्त होते हैं। | इकोलाय जिवाणू तथा रोटाव्हायरस दोनो विषाणू दोनो विषाणू के जरिये अतिसार होता है|

फेफड़ों, कानों के संक्रमणों और मलेरिया से भी बच्चों में दस्त हो जाते हैं। कुपोषण से शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र कमज़ोर पड़ जाता है। ऐसे में भी बच्चे को दस्त लगने की संभावना ज़्यादा होती है। दस्त जीवाणुओं के संक्रमण के अलावा अन्य कारणों से भी लग सकते हैं। जैसे दांत निकलने के समय, खाने से होने वाली एलर्जी से या फिर अपच से।

* दस्त और निर्जलीकरण

अगर 24 घंटों में तीन या तीन से ज़्यादा पतली पानीयुक्त टट्टियॉं हों तो यह दस्त की स्थिति है। अगर इसके साथ खून और श्लेष्मा भी आए तो यह पेचिश होती है। दस्त से किसी भी और बीमारी की तुलना में अधिक बच्चे मरते हैं। इससे कुपोषण और वृद्धि में अवरोध भी हो जाता है।

दस्त होने पर असल में दस्त से हुए निर्जलीकरण (शरीर में से पानी निकल जाना) से बच्चे की मौत होती है। इसलिए निर्जलीकरण और मौत से बचाने के लिए घर में बने घोलों से पानी की कमी पूरी करने की कोशिश करनी चाहिए। दिनभर में तीन से अधिक बार पतले दस्त होना इसको हम बीमारी कह सकते है| लेकिन शुष्कता यानी पानी की कमी की जॉंच आवश्यक है| इसके लिये प्यास, सतर्कता, त्वचा, आँखे और जीभ का सूखापन तथा पेशाब की मात्रा आदि बाते जॉंचे हो| इसमे शुष्कता के इस प्रकार तय होते है|

शुष्कता में बच्चे को प्यास, आँखे दसी (डुबते हुअे सूरज की तरह ) हुई, जीभ सूख जाना, आदि लक्षण होते है| ऐसे में बच्चा रोतला और चिडचिडा हो जाता है| त्वचा चुटकी में पकडकर छोडने पर सिलवटे धीरे धीरे समाप्त होती है| बच्चा रोये तो आँखों में पानी नहीं आता| त्वचा का सूखापन जॉंचने हेतू बच्चे के पेट की त्वचा अँगुली की चिमटीमें पकडकर छोडिये| निरोगी अवस्था में त्वचाकी सिलवट पहले जैसी सपाट हो जाएगी| शुष्कता होनेपर त्वचा की सिलवटे धीरे धीरे ठीक होती है| निर्जलीकरण कितना हुआ है यह समझना उसके इलाज और संभालने के लिए ज़रूरी है। नीचे दिए गए लक्षण निर्जलीकरण की स्थिति में नहीं दिखते :

* निर्जलीकरण नहीं है-अगर

  • बच्चा प्यासा न हो।
  • जीभ गीली हो।
  • बच्चा सामान्य रूप से द्रव पदार्थ पी पा रहा हो।
  • बच्चे की त्वचा को मोड़ कर छोड़ने पर वो सिमटी हुई नहीं रहती।
  • करोटी अंतराल सामान्य हो।
  • बच्चा सचेत हो। इस तरह के बच्चे में निर्जलीकरण नहीं हुआ है। उसे खूब सारे द्रव पदार्थ देते रहें।
  • * हल्का निर्जलीकरण
  • जब बच्चे में हल्का निर्जलीकरण हो चुका हो तो नीचे दिए गए लक्षण दिखते हैं।
  • बच्चा बेचैन, चिड़चिड़ा और प्यासा हो जाता है।
  • करोटी अंतराल धंस जाता है।
  • आँखें, अंदर धंस जाती हैं, मुँह और जीभ सूख जाती है।
  • त्वचा को मोड़ कर छोड़ने पर वो धीरे धीरे सामान्य स्थिति में वापस आती है। ऐसे बच्चे को मुँह से खूब सारा द्रव पदार्थ दिए जाने की ज़रूरत होती है। इसके अलावा नमक और चीनी का घोल या ओ.आर.एस. के दो पैकेट भी दें।

 

* गंभीर निर्जलीकरण

अगर बच्चे में गंभीर निर्जलीकरण हो गया है तो:

  • बच्चा उंनींदा हो जाएगा।
  • आँखें अंदर धंस जाएंगी और जीभ बिलकुल सूख जाएगी।
  • बच्चा कुछ भी पी नहीं सकेगा।
  • त्वचा को मोड़ कर छोड़ने पर वो बहुत देर में वापस सामान्य स्थिति में आएगी।
  • जब वो रो रहा होगा तो भी आँखों में आँसू नहीं आएंगे। तीव्र शुष्कता के लक्षण अर्थात बच्चा सुस्त लगता है| शीघ्रता से जबाब नहीं देता| आँखे छॉंसी दिखाई देती है| जबान बहुत रुखी लगती है| त्वचा की सिलवटे चुटकी छोडनेपर बहुत धीरे से समाप्त होती है| बच्चा रोनेपर आँखों में पानी नही आता| पेशाब नही आती| यह खतरनाक अवस्था है| बच्चे को अंत: शिरा द्रव दिया जाना चाहिए। पर चिकित्सा केन्द्र ले जाते हुए रास्ते में ओ.आर.एस देते रहें।

दस्त का इलाज

डॉक्टर के सलाहसे जीवाणुरोधक दवाइयॉं लग सकती है|

* तीन महत्वपूर्ण बिंदू

  • दस्त में बच्चे के इलाज के लिए तीन महत्वपूर्ण बिंदू ये हैं :
  • यह तय करना कि प्रति जीवाणु दवा दी जाए या नहीं।
  • निर्जलीकरण ठीक करना
  • उपयुक्त आहार देते रहना किसी भी चिकित्सीय जांच से यह पक्की तरह से नहीं पता चल सकता कि दस्त वायरस के कारण हुआ है या बैक्टीरिया के कारण। दस्त के मामलों में से करीब आधे वायरस के संक्रमण से होते हैं और आधे बैक्टीरिया के। परन्तु कुछ महत्वपूर्ण संकेत होते हैं। अगर आपको नीचे दिए गए लक्षणों में से कोई भी दिखाई दें तो यह बैक्टीरिया से होने वाले दस्त के सूचक हैं।
  • मल में खून होना
  • बुखार
  • पेट में दर्द
  • टट्टी में से गंदी बदबू आना बैक्टीरिया से होने वाले दस्त में कोट्रीमोक्साज़ोल नामक प्रतिजीवाणु दवा से फायदा होता है। याद रहे कि अगर खूब सारी पानी जैसी टट्टी आए जिसके साथ और कोई भी लक्षण न दिखाई दें तो यह आमतौर पर वायरस वाले दस्त होते हैं। ऐसे में कोई भी प्रतिजीवाणु दवाओं की ज़रूरत नहीं होती। इस तरह के दस्त 3 से 5 दिनों में अपने आप ठीक हो जाते हैं। धैर्य रख कर ध्यान रखते रहना और शरीर में पानी की कमी को पूरा करना महत्वपूर्ण है।

बच्चे को अतिसार होने पर शुष्कता हो या नहीं, लेकिन उसे द्रवपदार्थ मुँह द्वारे दे| यह आप स्वयं कर सकते है| द्रव पदार्थोंसे बच्चे में रोग-प्रतिकारक शक्ती आती है| अपने डॉक्टर या स्वास्थ्यसेवक को इसकी जानकारी अवश्य दे|

दस्त हो किन्तु शुष्कता ना हो या कम हो तो घरेलू इलाज कर सकते है| परंतु अतिशुष्कता हो तब घर में रुके बिना तुरंत अस्पताल पहुँचे|

* निर्जलीकरण ठीक करना

बच्चों के दस्त में शरीर में पानी की कमी पूरी करना सबसे महत्वपूर्ण इलाज है। अगर निर्जलीकरण बहुत गंभीर न हो तो आप बच्चे को घर में बने घोल दे कर ही उसके शरीर में पानी की कमी की आपूर्ती कर सकते हैं। ये घोल ओ आर एस भी हो सकता है और चीनी या नमक का घोल भी।

मुँह से निर्जलीकरण के उपचार जिसे ओरल रिहाइड्रेशन थेरैपी (ओ आर टी) भी कहते हैं का प्रमुख नियम यह है कि जिस बच्चे को दस्त हो रहे हों उसे सामान्य से ज़्यादा तरल दिया जाना चाहिए।ओ आर टी के कई रूप होते हैं। ओ आर टी का मतलब है मुँह से तरल देना जिससे निर्जलीकरण रोका जा सके या उसे ठीक किया जा सके। तरल पदार्थ या तो घरों में मिलने वाले कोई भी पीने की चीज़ें हो सकते हैं या बाज़ार में पैकेटों में मिलने वाले ओरल रिहाईड्रेशन साल्ट (ओ आर एस) को पानी में मिला कर तैयार किया हुआ तरल पदार्थ। स्थानीय परिस्थितियों के हिसाब से ओ आर टी में इस्तेमाल हो सकने वाले विभिन्न तरलपपदार्थों की सूची नीचे दी गई है।

* घर के तरल पदार्थ

निर्जलीकरण रोकने के लिए दस्त की शुरुआत में अतिरिक्त तरल पदार्थ देना ज़रूरी होता है। तरल पदार्थ और आहार दोनों ही महत्वपूर्ण होते हैं। जब दस्त शुरु हों या चल रहे हों तो उस समय सामान्य से अधिक तरल पदार्थ दिए जाने चाहिए और दूध भी पिलाते रहना चाहिए। अगर ये पदार्थ शुरु में और सही तरह से दिए जाएं तो दस्त के गंभीर मामलों में से केवल 10 प्रतिशत में स्वास्थ्य कार्यकर्ता की मदद की ज़रूरत पड़ेगी। तरल पदार्थ जिनमें नमक और या र्स्टाच या चीनी और प्रोटीन हो वो अच्छे रहते हैं। ऐसे पदार्थ शरीर में द्रव और लवणों दोनों की कमी पूरी करते हैं। इनके अच्छे उदाहरण हैं सूप जिनमें नमक पड़ा हो, नमकीन चावल का पानी, नमकीन मठा या मक्की का सूप आदि।इसके अलावा बच्चों को खूब सारे ऐसे तरल पदार्थ भी दिए जाने चाहिए जिनमें नमक न हो जैसे पीने का सादा पानी, नारियल का पानी, चाय, फलों का ताज़ा रस जिसमें चीनी न मिली हो। ऐसे तरल पदार्थ न दें जिनमें चीनी हो जैसे कॉफी या कोल्ड डिंक्स।अगर बच्चा स्तनपान पर हो तो ज़रूरी है कि स्तनपान जारी रखा जाए।

* ओ आर एस घोल

ओ आर एस घोल दिए जाने की सिफारिश निर्जलीकरण के उपचार के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा की गई है। जहॉं भी सम्भव हो वहॉं घर में निर्जलीकरण से बचाव के लिए यह दिया जाना चाहिए। ओ आर एस के पैकेट में ग्लूकोस और नमक होता है। और जब इसे पानी में घोला जाता है तो यह निर्जलीकरण रोकने या उसके उपचार के लिए बेहद उपयोगी रहता है।

ज़्यादातर ओ आर एस पैकेटों को एक लिटर पानी में घोला जाना होता है। जिन पैकेटों में ट्राईसोडियम सिट्रेट की जगह सोडियम बाइकार्बोनेट होता है (2.5 ग्राम) वो भी ठीक रहते हैं। परन्तु इन्हें ज़्यादा समय तक रख पाना संभव नहीं होता। बाज़ार में मिलने वाले बहुत से पैकेटों में लवणों का अनुपात उतना नहीं होता जितना की मान्य है। किन्हीं में बहुत अधिक चीनी होती है। किन्हीं अन्य में बहुत कम नमक होता है। स्वास्थ कार्यकर्ता को सिर्फ उन्हीं पैकेटों का इस्तेमाल करना चाहिए जिनमें ऊपर दिए गई मात्राओं में सभी चीज़ें मौजूद हों।

* चीनी और नमक का घोल

ओ आर एस की जगह घर में चीनी और नमक का घोल बना कर इस्तेमाल किया जा सकता है। यह घोल 5 ग्राम नमक (5 मिली लीटर का एक चम्मच) और 20 ग्राम चीनी (5 मिली लीटर के चार चम्मच) एक लिटर पानी में डाल कर बनाया जाता है।

बालकदमा (बचपन में दमा)

आपके बच्चे को बारबार खांसी और हॉंफने की शिकायत हो लेकिन बुखार ना हो तो समझीये कि उसे बालदकमा है| बालकदमा १-५साल की उम्रतक हो सकता है| बालकदमा लंबे समयतक चलने और कम-अधिक होनेवाली बीमारी है| इसके लिये हमेशाके लिये नही लेकिन तात्कालिक उपाय है| माता-पिताको इस बीमारी व इसके इलाजकी सही जानकारी होनी चाहिये| तांकि वे बेकारकी चिन्ता, आशा-निराशा, डर तथा डॉक्टर बदलने जैसी बातोंसे दूर रहे|

* बालकदमा की वजह

अनुवंशिकता और ऍलर्जीके संयुक्त कारणोंसे बालकदमा होता है| वायूप्रदूषण से भी बालकदमा उभरता है| विषाणुजनित सर्दी-बुखारसे भी बालकदमा शुरू हो सकता है| बारीश या ठण्डे मौसममें बालकदमा अधिक होता है|

* रोगनिदान लक्षण व चिन्ह

  • बच्चेको सर्दी, छिंकोंकी तकलीफ शुरू होती है| इसके बाद सांस लेना मुश्कील होता है| सीनेमें आवाज आने लगती है|
  • सांसे उथली और तेज चलती है| नाक फूलने लगती है| बच्चा बडा हो तो छाती भरनेकी शिकायत करता है|
  • सांस छोडते हुए सींटी जैसी आवाज आती है|
  • बालकदमा बीच-बीचमें उभरता है| लेकिन इस बीच बच्चेकी तबीयत ठीक रहती है|
  • कम उम्र के बच्चे दमेकी तकलीफसे रोते है|
  • हॉंफनेसे पेट उपर-निचे होता है| तीव्र बीमारीके चलते होठों, हाथोंकी त्वचा नीलीसी दिखती है|
  • न्यूमोनियाकी तरह बालकदमा में शुरू से बुखार नही होता| लेकिन २-३ दिनों बाद बुखार हो सकता है|

* इलाज

पहली बार दमा होने पर बच्चे को तुरन्त डॉक्टरके पास ले जाएँ| डॉक्टर तुरन्त उपचार करके घर लेनेके लिये दवाई देंगे| सामान्यत: बालकदमें में इंजेक्शन या सलाईनकी आवश्यकता नही होती| श्वसनमार्गसे दवाई सही स्थान पर पहुँचती है| डॉक्टर मुँहसे लेनेकी दवाईयॉं देते है, जिसे श्वसनमार्ग खुला रखने में सहायता होती है| तात्कालिक उपचारोंमें तीन प्रकारकी दवाइयॉं है|

  • सौ डोसके फव्वारेवाला स्प्रे| इसमे से हरबार तयशुदा (निश्चित) मात्रामें दवाई निकलती है| फव्वारेका खटका दबाना और सांस लेना एकसाथ करना पडता है| बच्चों के लिये यह कठीन है| अत: स्पेसरका उपयोग किया जाता है| आपके डॉक्टर इन विषयमें आपको बतायेंगे| इस दवाका उपयोग घरमें भी कर सकते है|
  • रोटाहेलरमें दवाईके केपसुल में पावडर होती है| यह प्रकार अधिक सस्ता पडता है|
  • अस्पताल में नेब्युलायझर का प्रयोग करते है| घरमें उपचार लेना हो तो डॉक्टरको सूचित करना ठीक रहेगा|

* कुछ प्रशिक्षण

बालकदमा किस तत्त्वों के परीक्षण एलर्जीसे हुआ है इसके शोध हेतु परीक्षण करते है| छातीका क्षयरोग है या नही देखने के लिये छातीका एक्सरे आवश्यक है| बालकदमा ५ वर्षोपरान्तभी रहा हो तो फेफडोंका क्षमता परिक्षण करना पडता है| इसकेलिए पी.एफ. टेस्ट करते है|

* प्रतिबंध

ऋतुमानानुसार बालकदमा कम-अधिक हो सकता है| अत: शीत या वर्षाकाल में ध्यान रखे गरम कपडों का उपयोग अच्छा है| ऐसे बच्चों को सर्दी बुखार वाले व्यक्तियों से दूर रखे| एलर्जीके कारणों का पता लगने से बालकदमा टाला जा सकता है| वायूप्रदूषण से बालकदमा बढ रहा है| धूल प्रदूषण से ऐसे बच्चों को बचाना चाहिये| बालदमें के लक्षण, चिन्ह दिखतेही डाक्टर से मिले| अपने बच्चे की बीमारी की जानकारी बालवाडी शिक्षिका को दे| साथही प्रथमोपचार की दवाईयॉं और अपना फोन नंबर दे|

पाँच सालकी उम्रके बाद बालकदमा अक्सर बंद हो जाता है| लेकिन कुछको बादमेंभी दमा शुरू रहता है| श्वसनोपचार अर्थात अलग-अलग सरल प्राणायाम बच्चों को सिखाए| गुब्बारा फुलानेका व्यायाम भी अच्छा है| बच्चों को उनके खेल खेलने दिजिये| खेलने से श्वसनमार्ग खुला और निरोगी रहता है| लेकिन साथवाली बॅग में दवाइयॉं रखनी चाहिये| कईं विश्वस्तर के खिलाडी दमा होने पर भी सफल रहे है| बालकदमा के लिये झोला छाप डॉक्टरों की सलाह, उपचार नही ले| ये लोग अक्सर स्टेरॉइड दवाइयों का गलत उपयोग करते है|

* कनफेड़

कनफेड़ हवा में मौजूद वायरस से होने वाली बीमारी है जो 5 - 6 साल के बच्चों को पकड़ती है। इस उम्र में कनफेड़ आमतौर पर नुकसानदेह नहीं होता। इसमें गालों के पीछे की ओर स्थित लार ग्रंथियों में सूजन हो जाती है जिनमें दबाने से दर्द भी होता है। एक बार संक्रमण होने पर जीवन भर के लिए प्रतिरक्षा पैदा हो जाती है। अगर यह संक्रमण बचपन में न हो तो यह कभी कभी बड़ी उम्र में हो सकता है। व्यस्कों में कनफेड़ से डिंबवाही ग्रंथियों या वृषण पर असर हो सकता है। इसलिए बड़ी उम्र में होने वाला कनफेड़ खतरनाक होता है। कनफेड़ से होने वाले डिंबवाही ग्रंथियों या वृषण के शोथ से बन्ध्यता हो सकती है। सही उम्र में इसका टीका लगा देना ही सबसे उपयोगी तरीका है। यह एम.एम.आर. टीके के रूप में मिलता है (यानि खसरे, कनफेड़ और रूबैला) के टीके के रूप में। बच्चों में कनफेड़ के इलाज के लिए पैरासिटेमॉल दी जाती है। इससे दर्द और बुखार कम हो जाता है। व्यस्कों को कनफेड़ होने पर डॉक्टर के पास भेजा जाना ही ठीक रहता है।

* अनाज वाले घोल

कई अध्ययनों से पता चला है कि ओ आर एस घोल में 20 ग्राम ग्लूकोस की जगह 40 ग्राम पके हुए चावल का पानी इस्तेमाल करना बेहतर रहता है क्योंकि यह ज़्यादा आसानी से पच जाता है और इससे कम टट्टी आती है। मगर यह सिर्फ व्यस्कों के लिए या हैजा के शिकार बच्चों के लिए ठीक है। अगर किसी बच्चे को किसी भी और तरह के गंभीर दस्त हों तो यह ठीक नहीं रहता।अनाज वाले तरल पदार्थ जैसे चावल का पानी निर्जलीकरण से बचाव के लिए उपयोगी घरेलू उपचार है। अगर उनमें नमक पड़ा हो तो वो काफी उपयोगी रहते हैं। जिन जगहों पर अनाज के दलिए का इस्तेमाल होता है वहॉं पर इनको सामान्य आहार के रूप में देते रहना चाहिए। दलिया देना बंद न करें। ऐसा करने से बच्चे में कैलोरी की मात्रा पहुँचनी कम हो जाएगी।

* मुँह से पानी की कमी पूरी करने के दस नियम

  • ओ आर एस के पैकेटों में चीनी और नमक का ठीक अनुपात होता है। परन्तु घर में बने घोलों को बनाना और इस्तेमाल करना आसान होता है।
  • उल्टी होने पर भी ओ आर टी देना जारी रखें क्योंकि दस्त के साथ अकसर अमाश्य शोथ हो जाता है। और ओ आर एस से इसको ठीक करने में मदद मिलती है। उल्टी अकसर अमाश्य शोथ के कारण होती है।
  • जहॉं तक संभव हो साफ पानी का इस्तेमाल करें। इसे उबालने और ठंडा करने में समय बर्बाद न करें। घर में उपलब्ध आम पीने का पानी इस्तेमाल करें।
  • एक बार में 4 - 6 घंटों के लिए पर्याप्त (करीब 200 मिली लीटर) ओ आर एस बना के रख लें। इसके बाद फिर से ताज़ा ओ आर एस बनाएं। ऐसा करना इसलिए ज़रूरी है ताकि देर तक रखने से घोल में बैक्टीरिया न बढ़ जाएं।
  • ओ आर एस चम्मच से धीरे धीरे पिलाएं ताकि वो शरीर में अवशोषित हो जाए। बहुत सारा ओ आर एस देने से उल्टी हो सकती है।
  • एक साल से कम के बच्चे के लिए 24 घंटों में करीब एक लिटर ओ आर टी काफी होता है। हल्के से बीच के निर्जलीकरण में पहले 4 घंटों में करीब 75 मिली लीटर ओ आर एक प्रति किलोग्राम शरीर के वजन के हिसाब से दें।
  • हर बार की टट्टी में हुई पानी की कमी की भरपाई के लिए 100 मिली लीटर ओ आर एस दिया जाना चाहिए।
  • बच्चे को धैर्य से और थोड़ा जर्बदस्ती तरल पदार्थ दें। दस्त के कारण बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है। जब तक कि निर्जलीकरण के लक्षण ठीक न हो जाएं ओ आर एस देते रहें।
  • एक साल तक के बच्चे के लिए ओ आर एस को उतने ही पानी से हल्का करेंं। नहीं तो बारी बारी से ओ आर एस या सादा पानी बारी बारी से दें। ओ आर एस का घोल थोड़ा ज़्यादा नमकीन होता है और नवजात बच्चों के लिए हानिकारक होता है।

गंभीर निर्जलीकरण में अंत: शिरा द्रव न दिए जाने से से मौत भी हो सकती है। ऐसे में केवल ओ आर एस काफी नहीं होता।ओ आर एस से दस्त नहीं रुकते। इससे केवल निर्जलीकरण रोका जा सकता है। अगर बच्चा ठीक से दूध पी रहा है, खेल रहा है और निर्जलीकरण ठीक होता जा रहा है तो मॉं को समझाएं कि घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है।

* अधिक पानी

अधिक पानी होने से आँखें मोटी हो जाती हैं। ध्यान से देखें कि कहीं ऐसा तो नहीं हो रहा है। और तब तक ओ आर एस देना रोक दें जब तक यह चिन्ह गायब न हो जाए। अगर बच्चा पेशाब न कर रहा हो तो इससे शरीर में पानी इकट्ठा हो जाता है। अगर बच्चा ओ आर एक न ले तो अंत: शिरा द्रव या पेट में नली डाल कर आहार दिया जाना ज़रूरी हो सकता है। अगर आप को यह करना न आता हो तो बच्चे को तुरंत पास के अस्पताल ले जाएं।

* आहार देते रहना

दस्त से होने वाली सबसे आम समस्या कुपोषण की होती है। ऐेसा इसलिए क्योकि खाना आंत में इतनी देर नहीं रह पाता कि वो ठीक से अवशोषित हो सके। इसके अलावा दस्त के डर से अकसर मांएं बच्चों को दूध पिलाना बंद कर देती हैं। इस समय में आसानी से पचने वाले तरल पदार्थ देते रहने चाहिए। स्तनपान और ऊपर का दूध भी पिलाते रहना चाहिए।

* टट्टी रोकने की दवाएं न दें

दस्त में आंतों को निष्क्रिय करने या धीमा करने वाली दवाएं देना नुकसानदेह हो सकता है। एक तो इससे मल इकट्ठा हो जाता है जिसको बाहर फैंका जाना ज़रूरी होता है। पेट में ऐंठन को ठीक करने वाली दवाओं (आंतों को धीमा करने वाली) के बहुत अधिक मात्रा में दिए जाने से पेट के आधमान की समस्या हो जाती है। ऐसा आंतों के लकवे से होता है और इससे बच्चे की मौत भी हो सकती है।

* इन्जैक्शन न दें

ज़्यादातर दस्तों में इन्जैक्शन से कोई फायदा नहीं होता। उल्टा अगर दस्त पोलियो के वायरस से हुआ हो तो इन्जैक्शन से लकवा हो जाने का खतरा होता है। बैक्टीरिया से होने वाली पेचिश के केवल कुछ मामलों में इन्जैक्शन देना ज़रूरी होता है। इसका फैसला डॉक्टर को करने दें।

* आयुर्वेदानुसार दस्त में हल्का आहार

आयुर्वेदानुसार दस्त में हल्का आहार देना चाहिये| अत: मूँग, चावल, राजगीरा खिलाना अच्छा है| गाय के घी का प्रयोग करे| इससे बालकको शक्ती आती है| खीर आसानी से हजम हो जाती है| इसमे खुब सारा गुड डालिये|

* पेचिश का इलाज

अगर मल में खून या श्लेष्मा हो तो यह पेचिश है और इसके इलाज के लिए पॉंच दिन तक कोट्रीमोक्साज़ोल या नालिडिक्सिक ऐसिड दें।

* विशेष सूचना

  • विषाणू अतिसार में उल्टी और हल्का बुखार हो सकता है| अत: इसकी चिंता न करे|
  • अतिसार में आहार की दृष्टी से सामान्य शक्कर की अपेक्षा ग्लुकोज-शक्कर अधिक अच्छी है|
  • घरेलू द्रवपदार्थ सलाईन से बिलकुल कम नहीं होते| साथ ही सस्ते भी होते है|
  • सलाईन याने सिर्फ पानी| तथा शक्कर व नमक होता है| नस द्वारा सलाईन की अपेक्षा मुँहसे द्रवपदार्थ शीघ्र दे सकते है| अतिशुष्कता होनेपर ही सलाईन की आवश्यकता होती है|
  • त्वचा का सूखापन जॉंचने हेतू बच्चे के पेट की त्वचा अँगुली की चिमटीमें पकडकर छोडिये| निरोगी अवस्था में त्वचाकी सिलवट पहले जैसी सपाट हो जाएगी| शुष्कता होनेपर त्वचा की सिलवटे धीरे धीरे ठीक होती है|
  • उल्टियॉं होने पर भी १० मिनिट रुककर द्रवपदार्थ देते रहिये|
  • रक्तश्लेष्मा (आंव) हो तो जिवाणुरोधक अर्थात प्रतिजैविक दवाइयॉं देनी पडती है|
  • दस्त बडे हो या हर तीन घंटेमें एक से अधिक दस्त हो तो बिमारी की गंभीरता को समझे| ऐसे में अस्पताल जाना ठीक रहेगा|

बचपन में होने वाला तपेदिक

श्वसन तंत्र वाले अध्याय में आपको तपेदिक के बारे में और जानकारी मिलेगी। इसका भी जल्दी निदान किया जाना, चिकित्सीय मदद हासिल करना और बाद में देखभाल महत्वपूर्ण है।

* लक्षण

  • किसी बच्चे का वजन लगातार कम होता जाना (हफ्तों महीनों के अंतराल में), या वजन न बढ़ना या उसका ठीक से खाना न खाना।
  • बच्चे का लगातार बीमार रहना ।
  • खॉंसी और छाती में से आवाज़ आना।
  • सामान्य इलाज के बावजूद बुखार न जाना।
  • बच्चे का निमोनिया, काली खॉंसी या खसरे से न उबर पाना।
  • लसिका ग्रंथियों में दर्द रहित सूजन।
  • आँखों का चिरकारी रूप से लाल रहना (अजलीय नेत्रश्लेष्मा शोथ)
  • मस्तिष्क आवरण शोथ - गर्दन अकड़ना, बुखार, व्यवहार में बदलाव।
  • कूल्हे या पीठ में लगातार दर्द रहना। ध्यान रहे कि बच्चों में तपेदिक होना भी उतना हीे आम है जितना कि बड़ों में। सतर्क रहें और ऐसे कोई भी लक्षण दिखने पर बच्चे को स्वास्थ्य केन्द्र ले जाएं।

* खसरा

खसरा हवा में मौजूद वायरस से बचपन में होने वाला संक्रमण है। प्रमुख रूप से इससे श्वसन तंत्र पर असर पड़ता है पर त्वचा और श्लेष्मा झिल्ली पर भी चकत्ते उभर आते हैं। खसरे में आम जुकाम, खॉंसी, बुखार और साथ में चकत्ते होते हैं। स्वस्थ बच्चे खसरे से बिना किसी जटिलता के उबर जाते हैं। परन्तु कुपोषित बच्चों या फिर उन बच्चों में जिनकी प्रतिरक्षा क्षमता कमज़ोर है, खसरे से कई जरह की जटिलताएं होने की संभावना रहती है। कमज़ोर बच्चे खसरे से बीमार हो जाते हैं और कभी कभी मौत के शिकार भी। इसलिए टीका लगवाया जाना बहुत ही महत्वपूर्ण है।

* खसरे का मौसम

खसरा आमतौर पर महारोग की तरह हर 2 या 3 साल बाद होता है। परन्तु इसके अलावा बीच में भी खसरे के मामले देखने को मिल जाते हैं। आमतौर पर सर्दियों के अंत में और गर्मियॉं शुरु होने के बीच खसरा होने की संभावना ज़्यादा होती है। खसरे के टीके से इसकी बीमारी अब काफी कम दिखाई देती है|

* फैलना और विकृति विज्ञान

संक्रमण फेफड़ों और खून तक पहुँच जाता है। श्वसन तंत्र के ऊपरी भाग में हल्का संक्रमण होता है। यह वो समय होता है जब चकत्ते अभी उभरे नहीं होते, परन्तु इस समय में संक्रमण एक बच्चे से दूसरे में पहुँच सकता है।

* लक्षण

वायरस के शरीर में पहुँचने के करीब 8 से 10 दिनों के बाद ही चकत्ते उभरते हैं। चकत्ते खून की सूक्ष्म नलियों के आसपास में शोथ के कारण होते हैं। ये सारे असर कुपोषित बच्चों में ज़्यादा गंभीर होते हैं। कुछ बच्चों में मस्तिष्क शोथ हो जाने का खतरा भी होता है। चिकित्सीय रूप में खसरे का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण है चकत्ते होना। परन्तु गालों के अंदर सरसों जैसे सफेद चिन्ह भी खसरा होने का विश्वसनीय सूचक हैं। इन्हें कोपलिक धब्बे कहते हैं। यह खसरे का एक खास लक्षण है। कोपलिक धब्बे 1 से 2 दिनों तक रहते हैं। आप मुँह के अंदर इनकी जांच कर सकते हैं।

* बुखार और चकत्ते

बुखार 3 से 4 दिनों तक चलता है। बच्चे की नाक बहती है और आँखों में से पानी आता रहता है। उसके बाद कान के पीछे, चेहरे पर और फिर गर्दन, पेट, हाथ पैर पर चकत्ते उभरने लगते हैं। खसरे के चकत्ते लाल रंग के होते हैं। चकत्ते एक दूसरे में मिल जाते हैं। इसके विपरीत छोटी माता में होने वाले चकत्तों में पीप और द्रव होता है। कभी कभी बीमारी चकत्ते होने के बाद ठीक हो जाती है। चकत्ते 3 - 4 दिनों तक रहते हैं और उसके बाद गायब हो जाते हैं और उनकी जगह पीले काले निशान रह जाते हैं। इन जगहों पर से त्वचा निकल जाती हैं और कुछ दिनों तक निशान बने रहते हैं।

भूख न लगना खसरे का एक आम लक्षण है। भूख न लगने से कुपोषण हो जाने का खतरा हो जाता है। कभी कभी हमें लसिका ग्रंथियों में सूजन (गिल्टियॉं) दिखाई देती है। ठीक उसी तरह से जैसे कि कई और वायरस से होने वाली बीमारियों में होती है। अगर खसरे से कोई जटिलता न हो तो यह करीब एक हफ्ते में ठीक हो जाता है।

* जटिलताएं

खसरे से निमोनिया, कान का संक्रमण, तपेदिक, मस्तिष्क शोथ और कभी कभी दिल का शोथ हो जाने की संभावना होती है। कुपोषित बच्चों में खसरे से होने वाली जटिलताओं की संभावना ज़्यादा होती है। दूसरी ओर कुपोषण अपने आप में बहुत ही आम समस्या है और इससे भी बच्चे को खसरा होने का खतरा होता है। खसरे से होने वाली मौतें असल में खसरे से हुए निमोनिया से होती हैं।

* इलाज और बचाव

खसरे के वायरस से बचाव का कोई रास्ता नहीं है। पैरासिटेमॉल से बुखार कम किया जा सकता है। खसरे के कारण हो जाने वाला निमोनिया काफी खतरनाक होता है। जल्दी से जल्दी ऍमोक्सीसीलीन से इलाज शुरु कर दें। अन्य संक्रमणों से बचाव के लिए विटामिन ए भी दें। कुपोषण से बचाव के लिए आहार देते रहना ज़रूरी है। खसरे से बचाव का सबसे सही तरीका है बच्चे को खसरे को टीका लगवाना। संक्रमण से बचाव के लिए बच्चे को भीड़ वाली जगहों में ले जाने से बचें।

खसरे जैसी अन्य बीमारियॉं

कुछ और वायरस से होने वाली बीमारियॉं खसरे के हल्के हमले जैसी होती हैं। खसरे के टीके से इन बीमारियों से बचाव नहीं होता। इसलिए अगर बच्चे को ऐसी कोई बीमारी हो जाए तो खसरे के टीके के असरकारी होने के बारे में शक नहीं करिए। इन बीमारियों में कोई जटिलताएं नहीं होतीं। पैरासिटेमॉल से बुखार का इलाज किया जा सकता है।

* होम्योपैथिक और टिशु रेमेडी

होम्योपैथिक उपचार भी अपनाया जा सकता है। आरसेनिकम, बैलाडोना, ब्रायोनिआ, फैरम फॉस, कामोमिला, ड्रोसेरा, मरकरी सोल, पल्सेटिला, रूस टॉक्स, सिलीसिआ, स्ट्रेमोनिअम, सल्फर आदि में से दवा चुनें। टिशु रेमेडी के लिए काल फॉस, फैरम फॉस, काली मूर, काली सुल्फ या सिलिका में से दवा चुन सकते हैं।

* रूबैला (जर्मन मीज़ल)

यह एक हल्की बीमारी है। इसमें भी बुुखार और चकत्ते होते हैं और इस तरह से यह खसरे से मिलती जुलती है। यह भी वायरस सेे होने वाला संक्रमण है। यह संक्रमण 5 से 9 साल के बीच के बच्चों को होता है। चकत्ते होने के पहले और बाद के हफ्तों में यह बीमारी संक्रामक होती है। एक बार छूत होने से ज़िदगी भर के लिए प्रतिरक्षा पैदा हो जाती है।

* लक्षण

संक्रमण के 2 से 3 हफ्तों बाद ही लक्षण दिखाई देने शुरु होते हैं। सबसे पहले आम जुकाम होता है। कभी कभी चकत्ते ठीक से नहीं उभरते। कभी कभी ये केवल 1 से 2 दिनों तक ही रहते हैं। रूबैला के चकत्ते चेहरे, छाती और पेट पर होते हैं। एक आम लक्षण है गर्दन पर गांठें होना, ये गांठें चकत्ते होने के एक हफ्ते के अंदर होती हैं। ये गाठें चकत्ते ठीक होने के बाद 2 से 3 हफ्तों तक रह सकती हैं। गर्दन और कानोंं के पीछे की लसिका ग्रंथियॉं भी इनसे प्रभावित हो सकती हैं। कभी कभी हड्डियों और तंत्रिकाओं में दर्द भी होता है।

गर्भवती महिलाओं में रूबैल काफी खतरनाक होता है। वायरस नाड़ के द्वारा शिशु को नुकसान पहुँचा सकता है। जन्मजात शिशु को मोतियाबिंद, दिल की बीमारियॉं, बहरापन, दृष्टिपटल की बीमारियॉं, खून बहने की प्रवृति, सबलवाय, मानसिक विकास में कम, हड्डियों में गड़बड़ियॉं औश्र तंत्रिका तंत्र में गड़बड़ियॉं आदि जटिलताएं संभव हैं। इसलिए गर्भवती महिलाओं को रूबैला से बचाना बहुत ज़रूरी होता है। अगर किसी गर्भवती महिला को यह संक्रमण हो जाए तो उसे गर्भपात की सलाह दी जानी चाहिए। लेकिन अच्छा होगा की हरेक बच्चे को एम.एम.आर. का टीका लगे|

* बचाव

एम. एम. आर. टीके से रूबैला से बचाव के लिए एक अव्यव भी डाला जाता है। पर यह मंहंगा होता है और अभी तक मॉं बच्चा स्वास्थ्य कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बन पाया है।

* छोटी माता (चिकन पॉक्स)

छोटी माता भी एक वायरस से होने वाली बीमारी है जो आमतौर पर बच्चों को ही होती है। एक बार बीमारी होने से पैदा हुई प्रतिरक्षा जीवन भर रहती है। हाल में इसके लिए टीका भी बनने लगा है। बचपन में छोटी माता से कोई भी खराब असर नहीं होता और यह खसरे के मुकाबले कम परेशान करने वाला संक्रमण है।

अगर बचपन में छोटी माता न हो तो बड़ी उम्र में यह संक्रमण होने से काफी नुकसान हो सकता है। कभी कभी संक्रमण के बाद छोटी माता का वायरस तंत्रिकाओं की जड़ों में निष्क्रिय पड़ा रहता है। कभी कभी यह हर्पीज़ ज़ोस्टर के रूप में उभर आता है। यह त्वचा के ऊपर तंत्रिकाओं की जड़ों पर एक श्रंखला के रूप में उभरता है।

* लक्षण

छोटी माता का संक्रमण हवा में मौजूद एक वायरस से होता है। वायरस के शरीर में घुसने के दो हफ्तों बाद ही लक्षण उभरने शुरु होते हैं। बीमारी ठंड लगने और कंपकंपी आने से शुरु होती है जो कि 2 से 3 दिनों तक चलता है। बुखार के कम होने के बाद चकत्ते उभरते हैं। ये चकत्ते चेहरे या हाथ पैर की तुलना में छाती और पेट पर ज़्यादा होते हैं। ये दाने या चकत्ते 2 से 4 दिनों के अंदर अंदर झुंडों में निकलते हैं। शुरु में ये लाल रंग के होते हैं और फिर पीप से भर जाते हैं।

4 से 5 दिनों के अंदर अंदर निरोगण शुरु हो जाता है। दाने सूख जाते हैं उन पर पपड़ी जम जाती है और निशान भी पूरी तरह से मिट जाता है। पपड़ी जमने की स्थिति तक आते आते संक्रमण लगभग ठीक हो चुका होता है और इस स्थिति तक यह असंक्रामक भी होता है। बहुत ही कभी कभी छोटी माता से निमोनिया और मस्तिष्क शोथ हो जाते हैं। ऐसा उन बच्चों में होता है जिनका प्रतिरक्षा तंत्र कमज़ोर हो।

* इलाज

ज़्यादातर मामलों में पैरासिटेमॉल ही काफी होती है। परन्तु एसायक्लोवीर से छोटी माता और हर्पीज़ बहुत जल्दी ठीक हो जाते हैं। यह उन बच्चों में उपयोगी है जिनकी प्रतिरक्षा क्षमता कमज़ोर हो। 40 से 50 मिली ग्राम दवा दिन में 4 से 5 बार, पॉंच भागों में बांट कर 7 दिनों तक दी जानी चाहिए। इलाज काफी मंहंगा होता है। परन्तु इससे बहुत तेज़ी से फायदा होता है क्योंकि चकत्ते एकदम से ठीक हो जाते हैं। भारत में अब छोटी माता का टीका उपलब्ध है पर यह बहुत मंहंगा होता है।

* दोहद

पीका मिट्टी खाने की इच्छा को कहते हैं। दीवारों की सफेदी, राख, चूना और चॉक आदि खाने की इच्छा भी होती है। पीका लोहे की कमी, कैलशियम या ज़िंक की कमी, कुपोषण या कभी कभी मानसिक आभाव के कारण होता है। पेट में कीड़े होना भी पीका का एक कारण हो सकता है। पीका 6 से 7 महीनों की उम्र में होता है और दो साल तक चल सकता है। गर्भवती महिलाओं को भी ऐसी इच्छा हो सकती है। पीका खुद कीड़ों के संक्रमण का ज़रिया होता है।

* इलाज

इलाज में पोषण में सुधार, बाहर से कैल्शियम लोहा आदि देना शामिल होते हैं। अगर दो साल की उम्र के बाद भी पीका चलता रहे तो डॉक्टर को दिखाएं। तब यह इन्जैक्शनों से ठीक हो सकता है।

Tuesday, May 12, 2020

बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास एवं गर्भावस्था के दौरान भोजन

बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास

बच्चे के विकास की गति
  • विकास की  गति जन्म  लेने के बाद शरू हो जाती है
  • उम्र के अनुसार ही शरीर और दिमाग का विकास होता है
  • बच्चे के विकास की  शुरुआत तो माँ के पेट से होने लगता है, गर्भ टिकने के बाद शुरू के तीन महीनों में बच्चे का तेजी से विकास होता है।
  • जन्म  से लेकर तीन साल तक बच्चे का विकास होता है
  • बच्चे के विकास पर ध्यान देने के लिए जरूरी है की  हर महीने उसका वजन लिया जाय ।
  • वजन अगर बढ़ रहा है तो ठीक है अगर नहीं तो उसके खान-पान पर अधिक ध्यान देने की  जरूरत पड़ेगी।
  • विकास की  गति का अपना ढंग है।

हम देखें के विकास की  यह गति कैसे होती है

एक

औसत उम्र एक महीना

शारीरिक विकास थोड़ी देर के लिए पेट के बल बैठता है और सिर उपर की  ओर उठता है

मानसिक विकास की सी तरफ ऑंखें घुमा कर देखता है, थोड़ा-थोड़ा मुस्कुराता है

 

 

दो  महीना

हाथ पैर थोड़ा-थोड़ा हिलाता है

मुस्कुराता है अपनी माँ को पहचानता है

 

 

तीन  महीना

अपना सिर उपर की ओर उठा पता है

की सी खास चीज को देख कर हिलने डुलने लगता है बोलने की कोशिश हुंकारी भरता है

 

दो

औसत उम्र पांच से छ महीना

शारीरिक विकास करवट लेता है सिर की घुमाता है सहारा पाकर बैठना पेट के बल घिसकना

भाषा का विकास जोर जोर से आवाज निकालता है

सामाजिक विकास परिवार के सदस्यों को पहचानना नये व्यक्ति को देख कर रोना

तीन

औसत उम्र छ से नवां महीना

शारीरिक विकास बिना समझे बैठ पाता है घुटने के बल चलता है दो तीन दांत निकल आते हैं

भाषा का विकास बिना समझे कुछ जाने शब्दों को बोलता है उसके सामने बोलने से वह भी कह शब्द निकाल देता है

सामाजिक विकास पहचान और बिना जाने पहचान व्यक्तियों में फरक करना

 

नवां से बारह महीना

खड़ा हो पाता है पांच-छ दांत निकल आती है चलने की कोशिश करना

बोलने की कोशिश में गति

चीजों को गौर से देखना

 

बारह से अठारह महीना

बिना सहारे के चल पाता है बारह से अठारह दांत निकल आती हैं

बोलने पर समझना जैसे माँ, दूध, बाबा, दीदी

चीजों को हाथों से पकड़ता है कोई उससे चीजें चीन नहीं सकता

 

डेढ़ से दो साल

दौड़ सकता है सोलह–अठारह दांत निकल आती है

कई बार शब्द बोल पाता है। छोटे-छोटे वाक्य भी

बच्चों का ध्यान अपनी तरफ ही ज्यादा रहता है खेलने के लिए साथी खिलौना

 

दो से तीन साल

खेलना-कूदना सीढ़ियां चढ़ लेना

बातचीत कर लेना पूरा वाक्य बोल पाता है

दूसरों के साथ खेलना चीजों को समझने कई कोशिश करना

 

ध्यान दें: सभी बच्चों का विकास एक समान नहीं होता है। उपर दी गयी बातें सामान्य है, एक तरह से विकास गति को जानने में मदद मिलेगा।

बच्चों के विकास पर ध्यान दिए जाने वाले बिंदु

बच्चों के विकास के लिए नीचे दी गयी बातों पर ध्यान देना होता है

(क) खान – पान

  • जब बच्चा माँ के पेट में पल रहा होता है तो अपना भोजन माँ के शरीर से पाता है
  • माँ के लिए जरूरी है की  वह सेहत ठीक रखने वाली पौष्टिक आहार ले, नहीं तो बीमार बच्चा पैदा होगा जिसका वजन भी कम होगा।
  • हमारी सामाजिक रीतियाँ इतनी बुरी है की  महिलाओं, की शोरियों ओर लड़की यों को सही भोजन नहीं मिलता है, इसलिए हमारे बच्चे-लड़के-लड़की यां और बीमार रहते हैं।
  • अच्छे भोजन की  कमी से की शोरियों और महिलाओं में खून की कमी रहती है
  • जरूरी है की  लड़का-लड़की में भेद भाव न रखा जाय सबको बराबर ढंग से पौष्टिक भोजन मिले ताकी  परिवार के सभी लोग स्वस्थ्य रहें।
  • गर्भावस्था में तो महिलाएं सही भोजन मिलना चाहिए ताकी  वह स्वस्थ्य बच्चा पैदा कर सके।
  • बच्चे का जन्म  के तुरत बाद स्तनपान कराना चाहिए। माँ के स्तनों में खूब दूध आए इसके लिए जरूरी है की  माँ का भोजन सही हो
  • बच्चे का स्वस्थ्य माँ के भोजन पर ही टिका रहता है।

(ख)  लाड-दुलार

  • अगर परिवार के सभी लोग और आस-पडोस के लोग अगर बच्चे को पूरा लाड़-प्यार देते हैं तो उसका सामाजिक विकास ठीक ढंग से होगा।
  • अगर उसे लाड़-दुलार नहीं मिलता तो वह दुखी महसूस करता है, कुछ भी उत्साह से नहीं करता है।

(ग़) सुरक्षा

  • बच्चे के सही विकास के लिए जरूरी है की  वह अपने को सुरक्षित महसूस करें
  • वह महसूस करे की  लोग उसका ध्यान रखते हैं
  • उसके पुकारने पर लोग जवाब देते है
  • उसको लगे की  लोग उससे प्यार करते हैं।

बच्चे को परिवार और समाज का एक व्यक्ति समझना

  • उसकी पसंद और नपसंद का ख्याल रखना
  • उसे दूसरे बच्चों से उंचा या नीचा नहीं समझना
  • जब वह कोई नयी चीज समझता है या करता है तो उसे शाबासी देना, उसकी तारीफ करना।
  • तारीफ करने से उसका उत्साह बढ़ता है
  • उसकी आवश्यकता को पूरा करना
  • बच्चों को स्वाभाविक रूप से काम करने देना
  • उस पर की सी तरह का दबाव न पड़े
  • उससे यह न कहना की  यह करना यह न करना
  • हाँ, खतरे में न पड़े इसका ध्यान देना
  • बच्चे का स्वाभविक विकास रहे इसके लिए जरूरी है की  बच्चा खेल-कूद में भाग लें
  • खेल –खेल में बच्चा नयी चीजें सीखता है।
  • उसे समाज का एक जवाबदेह सदस्य बनने में मदद मिलती है
  • उनका दूसरों के साथ मेल-जोल बढ़ता है
  • उसके बोलचाल और भाषा में विकास होता है।

हमारा विश्वास, हमारी परंपरा और माँ-बच्चे का स्वास्थ्य

  • सभी समाज में कुछ मान्यताएं होती हैं, कुछ संस्कार, कुछ विश्वास।
  • उनमे से कुछ अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे और हानिकारक भी।
  • यह बातें माँ और बच्चे की  देख भाल, सेहत और स्वास्थ्य पर भी लागु होती है।
  • हमारे विश्वाश,हमारे संस्कार चार तरह के होते हैं
  • वे जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है
  • वे जो न लाभदायक हैं न हानिकारक  
  • वे जो खतरनाक और हानिकारक है
  • ऐसे विश्वास जो अब तक साबित नहीं हुए हैं वे हमारे लिए लाभदायक हैं या हानिकारक
  • हमारे लिए जरूरी है कि  हम पहचाने और जाने की  कौन से विश्वास लाभदायक है।
  • हमें लोगों के साथ लाभदायक विश्वाशों के साथ काम शुरू करना है ।
  • अंध विश्वास एक दिन में खतम नहीं होता, समाज के लोगों के साथ उनपर काफी चर्चा करनी पड्ती है।

गर्भवती महिला का खान-पान

  • कुछ लोगों का विश्वास है कि  जब बच्चा पेट में पल रहा हो तो गर्भ के समय अधिक मात्रा में भोजन लेने से पेट का बच्चा बहुत बड़ा और भारी हो जाएगा जिससे प्रसव के समय कठिनाई होगी।
  • कुछ लोगों का यह बिश्वास है की  ज्यादा भोजन से पेट पर दबाव पड़ेगा इसलिए पेट में पल रहे बच्चे का विकास नहीं होगा।

सच तो यह है कि पेट में पल रहे बच्चे का विकास माँ के भोजन पर ही टिका रहता है

  • अगर माँ अधिक मात्रा में भोजन नहीं लेगी तो बच्चे का विकास नहीं होगा
  • केवल भोजन का अधिक होना ही ज्रिरी नहीं है। जरूरी है की  भोजन में अनाज के साथ-साथ दालें, मूंगफली, दूसरी तरह की  फलियाँ जैसे – सोयाबीन, दूध, दही, अंडा वगैरह भी लें।
  • भोजन अगर पोषण देने वाला नहीं होगा तो जन्म ने के समय के समय बच्चे का वजन कम होगा। वह बराबर बीमार रहेगा।

यही बात प्रसव के बाद भी लागू होगा। माँ के स्तनों में पूरा दूध बने इसके लिए जरूरी है की  माँ के भोजन में पोषण हों और उसकी मात्रा भी अधिक हो।

*कुछ और लोगों का विश्वास है कि प्रसव के बाद माँ को पानी पिलाने घाव सुखने में देर लगती है।

यह सब खतरनाक अन्धविश्वास है

  • माँ को पानी नहीं मिलने पर उसे तकलीफ होती है
  • पानी की  कमी से स्तनों में दूध नहीं बनता
  • चाहिए तो यह की  माँ का पानी के साथ दूसरी तरल चीजें भी पिलानी चाहिए जैसे फलों और सब्जियों का जूस (रस), दूध छाछ इत्यदि।
  • कुछ लोगों का विश्वास है की  बच्चे को खीस (कोलेस्ताम) पिलाने बच्चा बीमार हो जाएगा।
  • खीस प्रसव के बाद स्तनों से पीला, चिपचिपा बहाव होता है।
  • सच तो यह है कि खीस अमृत समान है। यह बच्चों को बहुत सारी बीमारियों से बचाता है।
  • हर माँ का प्रसव के तुरत बाद अपना स्तन बच्चे के मुंह से लगा दें ताकी  वह जी भर कर खीस पीए और रोगों से बचें।
  • हमारे समाज में अन्न प्राशन का रिवाज है।  यह बहुत अच्छा रिवाज है।  अक्सरहां पांच से सात महीने पर पूजा-पाठ के साथ बच्चे को अन्न खिलाया जाता है।
  • लेकिन कभी-कभी काफी लोग एक दिन अनाज खिलाने के बाद एक साल या उससे ज्यादा समय तक कुछ नहीं खिलते हैं, केवल दूध देते हैं।
  • उनका विश्वास है कि छोटा बच्चा अनाज नहीं पचा पाएगा
  • सच तो यह कि बच्चे के चार महीना को होते ही पतला दाल, उबला आलू या दूसरी सब्जी को मसल कर खिलाना चाहिए।
  • धीरे-धीरे छ महीने पर उसे खिचड़ी जैसी चीज खिलानी चाहिए
  • हाँ दूध तो दो साल तक नियमित रूप से पिलानी चाहिए, केवल माँ का दूध-बोतल या डिब्बा का दूध नहीं।
  • यदि बाहर के दूध पिलाने की आवश्यकता पढ़े तब गाय या बकरी का दूध पिलाना चाहिए।

दस्त के समय खाना और पानी देने से दस्त बन्द हो जाएगा

  • सच तो यह है कि  दस्त में शरीर में पानी की  कमी होती है उसे पूरा करने हेतु ओ.आर.एस. का घोल पिलाएं।  हल्का खाना दें।
  • कहीं-कहीं अपच या पेट की  गड़बड़ी की  हालत में माँ बच्चे को स्तन पान नहीं करती-यह गलत विचार है

सच तो यह है कि  स्तनपान के जरिए बच्चे माँ की  बीमारी से प्रभावित नहीं होते।

-बीमारी की  अवस्था में सावधानी से स्तन पान कराएं

  • बुखार के दौरान शिशु को नहलाया नहीं जाता – यह भी हानिकारक अंध विश्वास है

बुखार से शिशु के शरीर का तापमान बढ़ जाता है, सिर धोने और भींगे कपड़े से बदन पोंछने से बुखार कम होता है।

यदि बुखार में कंपकपी हो टब शरीर पर पानी देना ठीक नहीं है। हानि हो सकती है।

बुखार होने पर कमरा की  खिड़की को खोल कर रखें

  • बुखार होने पर खाने पर रोक नहीं लगाना चाहिए आसानी से पचने वाला भोजन – रोटी, दाल, फल, दूध दिया जाना चाहिए।  भोजन कमजोरी को कम करेगा।

शिशुओं का वजन नहीं कराने का रिवाज गलत है

- यह मानना भी गलत है की  वजन कराने से शिशु का बढ़ना रुक जाएगा।

- सच तो यह है की  समय-समय पर शिशु का वजन कराना आवश्यक है।

- इससे शिशु के बढ़ने या कमजोर होने की  जानकारी मिलती है।

- यदि वजन घटता है तब डाक्टर से सलाह लें

- रोग होने पर झाड-फूंक कराने या ताबीज बांधने के विश्वास का कोई माने नहीं है।

- झाड-फूंक कराने या ताबीज बांधने के साथ पर रोग का इलाज आवश्यक है

- रोग होने पर डाक्टर की  सलाह के अनुसार परहेज कराएं तथा दवा खिलाएं। बच्चे को पीलिया होने पर गले में काठ की  माला पहनाना भी एक विश्वास या अंध विश्वास है।

- सच तो यह है की  लीवर की  गडबडी से पीलिया रोग होता है।  एस रोग में काठ की  माला पहलाने से कोई लाभ नहीं होता।

- बीमारी के इलाज कराने पर ही बीमारी दूर होगी। विभिन्न प्रकार की  बिमारियों में शिशु के शरीर को दागना एक हानिकारक अंध विश्वास है।  जिसका पालन ठीक नहीं है।

- कुछ जगहों में एक प्रकार की  पत्ती को पीस कर शरीर के विभिन्न स्थानों पर लगाया जाता है जिससे चमड़ा जल जाता है।

इससे शिशु को कष्ट के सिवाय लाभ नहीं होता है। कुछ लोगों का मानना है की  कुछ खाने के पदार्थ गरम तथा कुछ ठंढा होता है। बीमारी में दोनों प्रकार चीजों से शिशु को रोका जाता है। यह गलत मानना है।

- आम खाने से फोड़े नहीं होते हैं

- दही को ठंडा मानते हैं।  और खाने से परहेज करते है – बात ऐसी नहीं है।  दही का सम्बन्ध सर्दी जुकाम से नहीं रहता है।

- विटामिन सी के ली खट्टे फल या फलों का रस का सेवन करना आवश्यक है इन सब को खाने से रोकना नहीं चाहिए।

- सावधानी इस बात की  रहे की  खाने में अधिक तेल/घी, मिर्च एवं मसाले का व्यवहार नहीं हो।  आहार पोष्टिक तथा शीघ्र पचने वाला हो।  ध्यान रहे संस्कार एवं विश्वास का प्रभाव जीवन पर पड़ता है।  हमारा व्यवहार बदल जाता है।  अंध विश्वाश को दूर करने का प्रयास होना चाहिए।

संतान यदि बेटा-बेटी दोनों है तब

  • बेटी को भी बेटा की  तरह प्यार दें।
  • दोनों के खान-पान में भेद भाव नहीं करें।
  • दोनों को शिक्षा का समान अवसर प्रदान करें।