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Tuesday, May 12, 2020

स्‍तनपान के मुख्‍य संदेश

स्‍तनपान के मुख्‍य संदेश

स्‍तनपान की सूचना प्रसारित करना और उसपर कार्रवाई करना महत्‍वपूर्ण क्‍यों है ?

जिन शिशुओं को स्‍तनपान करवाया गया हो, वे उन शिशुओं की अपेक्षा कम बीमार होते हैं और कुपोषित भी जिनको अन्‍य पेय और खाद्य पदार्थ दिये गये हों। यदि सभी शिशुओं को उनके शुरुआती छह महीनों में केवल मां का दूध दिया गया होता, तो अनुमानित प्रत्‍येक वर्ष 15 लाख बच्चों की जिंदगी बचा ली गई होती और लाखों अन्‍य का स्‍वास्थ्‍य और विकास भी बहुत अच्‍छा रहता।

स्‍तनपान के विकल्‍प का इस्‍तेमाल करना जैसे नवजात फॉर्मूला या पशुओं का दूध बच्चों के स्‍वास्‍थ्‍य को प्रभावित कर सकता है। यह खासकर उन मामलों में होता है जब माता-पिता पर्याप्‍त वैकल्पिक व्‍यवस्‍था नहीं कर सकते जो महंगी होती हैं या फिर उनमें मिलाने के लिए हमेशा साफ पानी का इस्‍तेमाल नहीं करते।

लगभग हरेक मां सफलतापूर्वक स्‍तनपान करवा सकती है। जिन माताओं को स्‍तनपान करवाने में आत्‍मविश्‍वास की कमी लगती है, उन्‍हें बच्चे के पिता का व्‍यावहारिक सहयोग और परिवार के अन्‍य सदस्‍यों, दोस्‍तों और रिश्‍तेदारों के प्रोत्‍साहन की जरूरत होती है। स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता, महिला संस्‍थाएं, जन संचार माध्‍यम और कर्मचारी भी सहयोग उपलब्‍ध करवा सकते हैं।

स्‍तनपान के फायदों की सूचना तक प्रत्‍येक की पहुंच होनी चाहिए और इस सूचना को उपलब्‍ध करवाना प्रत्‍येक सरकार का कर्त्‍तव्‍य है।

स्‍तनपान मुख्‍य संदेश-१

केवल मां का दूध ही ऐसा खाद्य और पेय है जो शिशु के लिए शुरूआती छह महीनों में आवश्‍यक होता है। सामान्‍यतौर पर इस दौरान कोई अन्‍य खाद्य या पेय पदार्थ यहां तक कि पानी की भी आवश्‍यकता नहीं होती।

मां का दूध छोटे बच्‍चे के लिए सर्वोत्‍तम भोजन होता है जिसे वह ले सकता है। पशु का दूध, नवजात फॉर्मूला, पाउडर का दूध, चाय, मीठे पेय, पानी और ब्रेकफास्‍ट में लिए जाने वाले खाद्य मां के दूध की अपेक्षा कम पौष्टिक होते हैं।

मां का दूध बच्‍चे को आसानी से पच जाता है। यह सर्वोत्तम वृद्धि व विकास और बीमारियों के विरुद्ध प्रतिरक्षा प्रदान करता है।

गर्म और सूखे मौसम में भी मां के दूध से नवजात शिशु के लिए द्रव्‍य की जरूरत पूरी होती है। पानी और अन्‍य पेय पदार्थ शुरुआती छह महीनों के दौरान आवश्‍यक नहीं होते। शिशु को मां के दूध की अपेक्षा कोई भी अन्‍य खाद्य या पेय पदार्थ देना हैजा और अन्‍य बीमारियों के खतरे को बढ़ाता है।

मां के दूध के बदले में जो चीजें दी जाती हैं और जो पर्याप्‍त पोषक भी हों, वे अत्‍यन्‍त महंगी हैं। उदाहरण के लिए, एक साल में एक शिशु के खाने के लिए 40 किलो (लगभग 80 टिन) नवजात फॉर्मूले की आवश्‍यकता होती है। स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ताओं को उन सभी मां को जो मां के दूध के बदले अन्‍य चीजों के इस्‍तेमाल के बारे में सोच रही हों, उन चीजों की कीमतों के बारे में सूचना दे देनी चाहिए।

यदि नियमित वजन माप यह दिखाता है कि छह महीनों के लिए मां का दूध लेने वाला शिशु ठीक तरीके से वृद्धि नहीं कर रहा, तो:

बच्‍चे को थोड़े-थोड़े अंतराल पर अधिक बार स्‍तनपान की जरूरत हो सकती है। 24 घंटे के दौरान कम से कम 12 बार स्‍तनपान करवाना जरूरी हो सकता है। बच्‍चे को कम से कम 15 मिनट तक स्‍तनपान करवाना चाहिए।

  • बच्‍चे को मुंह के भीतर दूध लेने के लिए मां से सहायता की जरूरत हो सकती है।
  • बच्‍चा बीमार हो तो उसे प्रशिक्षित स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता के पास ले जाना चाहिए।
  • पानी और अन्‍य द्रव्‍य मां के दूध को लेने की मात्रा को कम कर सकते हैं।
  • मां को अन्‍य द्रव्‍य नहीं देने चाहिए और केवल स्‍तनपान ही करवाना चाहिए।

छह महीने से अधिक के किसी भी नवजात शिशु को अन्‍य खाद्य और पेयों की भी जरूरत होती है। जब तक बच्‍चा 2 साल या उससे अधिक का न हो जाए तब तक स्‍तनपान निरंतर करवाते रहना चाहिए।

स्‍तनपान मुख्‍य संदेश-२

एक खतरा यह रहता है कि एच.आई.वी संक्रमित महिला स्‍तनपान के जरिए अपने बच्चे को भी संक्रमित कर सकती हैं। जो महिला इससे संक्रमित हों या जिन्‍हें इससे संक्रमित होने की आशंका हो, उन्‍हें प्रशिक्षित स्‍वास्‍थ्‍य कर्मचारी से बच्‍चे को संक्रमित होने के खतरे को कम करने के लिए जाँच, काउंसलिंग और परामर्श लेनी चाहिए।

एच.आई.वी संक्रमण को दूर रखने के बारे में जानना प्रत्‍येक के लिए महत्‍वपूर्ण है। गर्भवती महिलाएं और नई माताओं को इस बारे में जागरूक रहना चाहिए कि यदि वे एच.आई.वी से संक्रमित हैं तो वे गर्भावस्‍था के दौरान अपने नवजात शिशु या जन्‍म के समय या स्‍तनपान के जरिये उसे संक्रमित कर सकती हैं।

संक्रमण को फैलाने के खतने से बचने का सबसे अच्‍छा तरीका इससे संक्रमित होने से बचना ही है। अनजान लोगों से यौन सम्‍बन्‍ध नहीं बनाकर एच.आई.वी के प्रसार के खतरे को कम किया जा सकता है, यदि संक्रमित साथी एक-दूसरे के साथ ही सम्‍बन्‍ध बनाएं, या यदि लोग सुरक्षित सम्‍बन्‍ध बनाएं- सावधानी के साथ या गर्भनिरोधक का इस्‍तेमाल कर सम्‍बन्‍ध बनाये तो इस बीमारी से बचा जा सकता है।

गर्भवती महिला और नई माताएं जो इससे संक्रमित हों या जिन्‍हें इससे संक्रमित होने की आशंका हो, उन्‍हें प्रशिक्षित स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता से जाँच, काउंसलिंग के लिए सलाह-मशविरा करना चाहिए।

स्‍तनपान मुख्‍य संदेश-३

नवजात शिशुओं को उनकी मां के पास रखना चाहिए और जन्‍म के एक घंटे के भीतर स्‍तनपान शुरू करवाना चाहिए।

एक नवजात शिशु को जितना संभव हो सके उतना मां के शरीर के सम्‍पर्क में रखना चाहिए। एक कमरे में या बिस्‍तर पर मां और शिशु के लिए एक साथ रहना सबसे अच्‍छा होता है। शिशु जितनी बार चाहे, उतनी बार उसे स्‍तनपान करवाना चाहिए।

जन्‍म के बाद बच्चे को जल्‍द से जल्‍द स्‍तनपान शुरू करवाने से दूध की मात्रा बढ़ती है। यह मां के गर्भाशय को संकुचित होने में मदद करता है, जो अधिक रक्‍तस्राव या संक्रमण के खतरे को कम कर देता है।

कोलोस्‍ट्रोम, गाढ़ा-पीला दूध, जो बच्‍चे के जन्‍म के शुरूआती कुछ दिनों में मां के स्‍तन से निकलता है, नवजात शिशु के लिए सर्वोत्‍तम होता है। यह अत्‍यधिक पौष्टिक होता है और शिशु की संक्रमणों से रक्षा करता है। कभी-कभी माताओं को अपने शिशुओं को कोलेस्‍ट्रोम न देने की सलाह दी जाती है। यह सलाह गलत है।

मां के दूध की सप्‍लाई के बढ़ने का इंतजार करते समय शिशु को किसी अन्‍य खाद्य या पेय पदार्थ की जरूरत नहीं होती।

यदि महिला अस्‍पताल या क्‍लीनिक में बच्चे को जन्‍म देती है तो उसे एक दिन के चौबीसों घंटे एक ही कमरे में बच्‍चे को अपने पास रखने की अपेक्षा करने का अधिकार होता है, और यदि वह स्‍तनपान करवा रही हो तो शिशु को काई फॉर्मूला या पानी देने की आवश्‍यकता नहीं होगी।

स्‍तनपान मुख्‍य संदेश-४

थोड़े-थोड़े समय पर स्‍तनपान करवाने से अधिक दूध बन सकता है। लगभग प्रत्‍येक मां सफलतापूर्वक स्‍तनपान करवा सकती है।

अधिकतर नई माताओं को स्‍तनपान शुरू करवाने में मदद या प्रोत्‍साहन की जरूरत होती है। अन्य महिलाएं जो सफलतापूर्वक स्‍तनपान करवा चुकी हों या परिवार के सदस्य, दोस्‍त या महिलाओं के स्‍तनपान सहयोग समूह की सदस्‍य माता को अनिश्चितता और कठिनाइयों को रोकने में मदद कर सकती हैं।

मां अपने शिशु को कैसे पकड़े और शिशु मुंह में स्‍तन को कैसे रखे बहुत महत्वपूर्ण है। सही अवस्‍था में शिशु को पकड़ना शिशु के लिए स्‍तन को अपने मुंह में लेने और चूसने को आरामदायक बनाता है।

स्‍तनपान के लिए शिशु के सही अवस्‍था में होने के कुछ संकेत:

  • शिशु का पूरा शरीर मां की तरफ मुड़ा हुआ हो।
  • शिशु माता के नजदीक हो।
  • शिशु आरामदायक अवस्‍था में और खुश हो।

गलत तरीके से शिशु को पकड़ना कुछ मुश्किलों का कारण बन सकता है जैसे:

  • निप्‍पल में दर्द होना और फट जाना।
  • पर्याप्‍त दूध न होना।
  • पीने से इनकार।

शिशु के अच्‍छी तरह से दूध पीने के संकेत:

  • शिशु का मुंह चौड़ाई में खुला हुआ हो।
  • शिशु की ठोढ़ी मां के स्‍तन के सम्‍पर्क में हो।
  • मां के निप्‍पल के चारों ओर वाली अधिकतर काली जगह शिशु के मुंह से नीचे की तुलना में ऊपर अधिक नजर आए।
  • शिशु द्वारा की जा रही चूषण क्रिया लम्‍बी और गहरी हो।
  • माता अपने निप्‍पल में कोई दर्द महसूस न करे।

लगभग प्रत्‍येक मां पर्याप्‍त दूध दे सकती है जब:

  • वह स्‍तनपान पूरा करवाती हो।
  • शिशु सही अवस्‍था में हो और निप्‍पल उसके मुंह में सही तरीके से हो।
  • शिशु जितनी बार चाहे और जितनी देर तक चाहे, रात में भी उतनी देर तक स्‍तनपान करवाती हो।

 

जन्‍म से ही शिशु जब भी चाहे उसे स्‍तनपान करवाना चाहिए। यदि नवजात शिशु स्‍तनपान करवाने के बाद तीन घंटे से अधिक की नींद लेता हो, तो उसे जगाकर दूध पिलाया जा सकता है।

  • शिशु का रोना यह संकेत नहीं करता कि उसे अन्‍य खाद्य या पेय पदार्थ की जरूरत है। इसका सामान्‍य सा अर्थ यह है कि शिशु और अधिक आपको पकड़े और आपके साथ लिपटे रहना चाहता है। कुछ शिशु को आराम के लिए स्‍तन चूसने की जरूरत होती है। अधिक चूसना अधिक दूध पैदा करेगा।
  • जिन मां को डर होता है कि वे पर्याप्‍त दूध नहीं दे पाएंगी, अक्‍सर जीवन के शुरुआती कुछ म‍हीनों में अपने शिशुओं को अन्‍य खाद्य या पेय पदार्थ देती हैं। लेकिन, इसका कारण शिशु द्वारा कम चूसना होता है, जिससे कम दूध बनता है। मां का दूध अधिक बनेगा यदि वह शिशु को अन्‍य खाद्य या पेय नहीं देगी और स्‍तनपान ही करवाएगी।
  • पेसिफियर्स, विकल्‍प या बोतल स्‍तनपान कर चुके शिशु को नहीं दिया जाना चाहिए क्‍योंकि उनको चूसने का तरीका स्‍तन से दूध पीने से काफी अलग होता है। पेसिफियर्स और बोतल का इस्‍तेमाल मां के दूध के कम बनने का कारण हो सकता है और शिशु स्‍तनपान कम कर सकता या छोड़ सकता है।
  • माताओं को निश्चिंत होने की आवश्‍यकता है कि वे अपने छोटे बच्‍चे को अपना दूध पूरी तरह पिला सकें। उन्‍हें बच्‍चे के पिता, उनके परिवारों, पड़ोसियों, दोस्‍तों और स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ताओं, कर्मचारियों और महिला संस्‍थाओं के सहयोग और प्रोत्‍साहन की जरूरत होती है।
  • स्‍तनपान एक महिला को आराम करने का अवसर उपलब्‍ध करवा सकता है। पिता और परिवार के अन्य सदस्‍य महिला द्वारा स्‍तनपान करवाने के दौरान उसे आराम करने के लिए प्रोत्‍साहित कर मदद कर सकते हैं। वे यह भी सुनिश्चित कर सकते हैं कि मां को पर्याप्‍त भोजन और घर के कामों में सहायता मिले।

 

स्‍तनपान मुख्‍य संदेश-५

स्‍तनपान शिशुओं और छोटे बच्‍चों को गंभीर बीमारियों से लड़ने में मदद करता है। यह मां और बच्‍चे के बीच एक विशिष्‍ट सम्‍बन्‍ध भी बनाता है।

मां का दूध बच्‍चे का 'पहला टीकाकरण' है। यह हैजा, कान और छाती के संक्रमण तथा अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है। जब शिशु को शुरुआती महीनों में केवल मां का दूध दिया जाए और दूसरे वर्ष या उससे अधिक समय तक स्‍तनपान जारी रहे तो यह प्रतिरोधक क्षमता गजब की होती है। अन्‍य कोई पेय और खाद्य पदार्थ ऐसी प्रतिरोधक क्षमता उपलब्‍ध नहीं करवा सकता।

आमतौर पर स्‍तनपान कर रहे शिशु, उन शिशुओं की अपेक्षा जो बोतल के भरोसे छोड़ दिये गये हैं अधिक ध्‍यान प्राप्‍त करते हैं। देखभाल नवजात की वृद्धि और विकास तथा उसे अधिक सुरक्षित महसूस करवाने में मदद करता है।

स्‍तनपान मुख्‍य संदेश-६

बच्चे को बोतल से दूध पिलाना बीमारी और मृत्‍यु की संभावना को बढ़ा सकता है। यदि एक महिला अपने नवजात शिशु को स्‍तनपान नहीं करवा सकती, तो बच्‍चे को मां के दूध के विकल्‍प को सामान्‍य साफ कप से देना चाहिए।

गंदी बोतलें और स्‍तनाग्र हैजा और कान के संक्रमण जैसी बीमारी का कारण बन सकते हैं। हैजा शिशुओं के लिए घातक हो सकता है। यदि बोतल को हर बार शिशु को दूध पिलाने से पहले उबले हुए पानी से साफ किया जाए और स्‍तनाग्र भी साफ हों, तो बीमारी का खतरा कम हो सकता है, लेकिन बोतल से पीने वाले शिशु स्‍तनपान कर रहे शिशुओं की अपेक्षा हैजा और अन्‍य सामान्‍य संक्रमणों के खतरे के प्रति ज्यादा अरक्षित होते हैं।

जो शिशु स्‍तनपान नहीं कर सकता उसके लिए सर्वोत्‍तम भोजन मां के स्‍तन से निकाला हुआ दूध या किसी अन्‍य स्‍वस्‍थ माता का दूध है। मां का दूध साफ और खुले कप में दिया जाना चाहिए।

यहां तक कि नवजात शिशु को भी खुले कप से पिलाया जा सकता है जो आसानी से साफ भी हो सकता है।

किसी भी शिशु के लिए जिसकी अपनी मां का दूध उपलब्‍ध नहीं है, उसके लिए किसी अन्‍य माता का दूध सर्वोत्‍तम भोजन है।

यदि मां का दूध उपलब्‍ध नहीं है, मां के दूध का एक पौष्टिक और पर्याप्‍त विकल्‍प कप द्वारा दिया जाना चाहिए। नवजात जिन्‍हें मां के दूध का विकल्‍प दिया गया हो, उन्‍हें स्‍तनपान किए हुए नवजात की अपेक्षा बीमारी और मृत्‍यु का गंभीर खतरा होता है।

शिशु को मां के दूध का विकल्‍प देना कम वृद्धि और बीमारी का कारण हो सकता है, यदि अधिक पानी या बहुत कम पानी उसमें मिलाया जाता हो या पानी साफ न हो। पानी को उबालना और फिर पानी को ठंडा करना तथा मां के दूध के विकल्‍प में सावधानीपर्वूक मिश्रित करने के लिए निर्देशों का पालन करना महत्‍वपूर्ण है।

पशु का दूध और नवजात फॉर्मूला खराब हो सकता है यदि उसे कुछ घंटों के लिए कमरे के तापमान में छोड़ दिया जाए। मां का दूध बिना खराब हुए कमरे के तापमान में आठ घंटे तक रखा जा सकता है। उसे साफ और ढके हुए बर्तन में रखें।

स्‍तनपान मुख्‍य संदेश-७

छह महीने बाद शिशु को विभिन्‍न पूरक भोजन की आवश्‍यकता होती है, लेकिन जब तक बच्‍चा 2 साल या उससे अधिक का न हो जाए तब तक स्‍तनपान निरंतर करवाते रहना चाहिए।

बच्‍चों के छह महीने के हो जाने पर हालांकि उन्‍हें पूरक भोजन की आवश्‍यकता होती है, लेकिन तब भी मां का दूध उर्जा, प्रोटीन और विटामिन ए और लौह पदार्थ जैसे अन्‍य महत्‍वपूर्ण पोषक तत्‍वों का एक महत्‍वपूर्ण स्रोत होता है। बच्‍चा जब तक स्‍तनपान करता रहता है, तब तक मां का दूध बीमारियों से लड़ने में उसकी सहायता करता है।

छह महीने से लेकर 1 वर्ष तक अन्‍य भोजन देने से पहले स्‍तनपान करवाया जाना चाहिए ताकि बच्‍चा प्रत्‍येक दिन पहले मां के दूध की पर्याप्‍त मात्रा प्राप्‍त कर लें। बच्‍चे के भोजन में छिलके समेत पकाई हुई और कुचली हुई सब्जियां, अनाज, दालें और फल, कुछ तेल के साथ मछली, अण्‍डे, मुर्गा, मीट या विटामिन और खनिज पदार्थ उपलब्ध करवाने वाले डेयरी के उत्‍पाद शामिल होने चाहिए। दूसरे वर्ष में स्‍तनपान, भोजन के बाद और अलग समय पर भी करवाया जाना चाहिए। मां जब तक बच्‍चा और वह चाहे, तब तक स्‍तनपान करवाना जारी रख सकती है।

पूरक भोजन के लिए सामान्‍य निर्देश:

6 महीने से 12 महीनों तक:

  • स्‍तनपान थोड़े-थोड़े अंतराल पर और एक दिन में अन्‍य भोजन तीन से पांच बार तक दें।

12 से 24 महीनों तक :

  • स्‍तनपान थोड़े-थोड़े अंतराल पर और परिवार के लिए बनने वाले भोजन को दिन में पांच बार दें।

24 महीनों से बाद के लिए :

  • यदि मां और बच्‍चा दोनों चाहते हैं, तो स्‍तनपान करवाना जारी रखें और बच्चे को परिवार के लिए बनने वाले भोजन को दिन में पांच बार दें।
  • जब बच्‍चे घुटनों के बल चलना, पैरों पर चलना, खेलना और मां के दूध की अपेक्षा अन्‍य खाद्य पदार्थ खाना शुरू करते हैं तो वे जल्‍दी-जल्‍दी बीमार हो जाते हैं। एक बीमार बच्‍चे को पर्याप्‍त मात्रा में मां का दूध चाहिए होता है। जब बच्‍चे की अन्‍य भोजन लेने की इच्‍छा नहीं करती, मां का दूध पौष्टिक, आसानी से पचने वाला भोजन होता है। जो बच्‍चा परेशान है, स्‍तनपान उस बच्‍चे को आराम दे सकता है।

स्‍तनपान मुख्‍य संदेश-८

घर से दूर एक कामकाजी महिला अपने बच्‍चे को स्‍तनपान करवाना जारी रख सकती है यदि वह जब संभव हो और जब वह शिशु के साथ हो, तब स्‍तनपान करवा सकती है।

यदि मां काम के घंटों के दौरान अपने शिशु के साथ नहीं रह सकती, तो उसे जब वे साथ हो तो बीच-बीच में स्‍तनपान करवाना चाहिए। थोड़े-थोड़े अंतराल पर स्‍तनपान करवाने से दूध अच्‍छी तरह बनता रहेगा।

यदि कोई महिला कार्यस्‍थल पर स्‍तनपान नहीं करवा सकती, तो उसे दिन में दो-तीन बार अपने दूध को किसी साफ बर्तन में निकाल लेना चाहिए। मां के दूध को कमरे के तापमान पर बिना खराब हुए आठ घंटों तक रखा जा सकता है। निकाला हुआ दूध बच्‍चे को साफ कप में दिया जा सकता है।

मां के दूध का वैकल्पिक पेय पदार्थ नहीं देना चाहिए।

परिवार और समुदाय मालिक को बिना वेतन काटे मातृ अवकाश, क्रैश, और समय तथा जहां महिलाएं स्‍तनपान करवा सकें या अपने दूध को निकाल कर सुरक्षित रख सकें, ऐसे स्‍थान उपलब्‍ध करवाने के लिए प्रोत्‍साहित कर सकते हैं।

स्‍तनपान मुख्‍य संदेश-९

स्‍तनपान एक महिला को कम से कम छह महीनों के लिए गर्भव‍ती न होने की 98 फीसदी सुरक्षा प्रदान करता है- लेकिन यह केवल तब, जब उसका मासिक-धर्म दोबारा शुरू न हुआ हो, यदि शिशु सुबह-शाम स्‍तनपान कर रहा हो, और यदि शिशु को अन्‍य कोई खाद्य और पेय पदार्थ या वैकल्पिक पेय न दिया गया हो।

जब तक बच्‍चा स्‍तनपान करता रहेगा, माता के मासिक धर्म की दोबारा शरुआत में उतना ही वक्‍त लगेगा। यदि मां 24 घंटे में आठ बार से कम बार स्‍तनपान करवाती है या अन्‍य खाद्य या पेय देती है, या पेसिफियर या वैकल्पिक पेय देती है, तो बच्‍चा कम मात्रा में दूध प्राप्‍त करेगा जो मां के मासिक धर्म को जल्‍द शुरुआत का कारण हो सकता है। यह संभव है कि उसके मासिक-चक्र के वापस आने से पहले ही वह फिर गर्भवती हो जाए। इसका खतरा जन्‍म के छह महीनों के बाद बढ़ता है।

एक महिला जो अगला बच्‍चा देरी से करने की इच्‍छा रखती है, उसे परिवार नियोजन का कोई अन्‍य तरीका चुनना चाहिए अगर निम्‍न में से कुछ भी हो गया हो:

  • उसके मासिक धर्म की दोबारा शुरुआत हो गई हो।
  • उसका बच्‍चा अन्‍य खाद्य या पेय ले रहा हो या पेसिफियर या वैकल्पिक पेय का इस्‍तेमाल कर रहा हो।
  • उसका बच्‍चा छह महीने का हो गया हो।

जब तक बच्‍चा दो साल या उससे अधिक का न हो जाए, तब तक महिला को दोबारा गर्भवती होने से बचना चाहिए, यह मां और बच्‍चे दोनों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए अच्‍छा है। सभी नये माता-पिता को स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता या प्रशिक्षित दाई द्वारा परिवार नियोजन की सलाह लेनी चाहिए।

गर्भावस्‍था को रोकने के अधिकतर उपाय मां के दूध की गुणवत्‍ता पर कोई प्रभाव नहीं डालते। हालांकि, कुछ ओस्‍ट्रेजन सहित कुछ गर्भनिरोधक गोलियां मां के दूध की मात्रा को घटा सकती हैं। प्रशिक्षित स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता स्‍तनपान करवा रही महिला के लिए सबसे अच्‍छी गर्भ-निरोधक के तरीके की सलाह उपलब्‍ध करवा सकता है।

Friday, May 08, 2020

गर्भधारण, प्रसव और प्रसव बाद माँ-बच्चे का स्वस्थ्य

गर्भधारण, प्रसव और प्रसव बाद माँ-बच्चे का स्वास्थ्य
माहवारी
  • ज्यादातर लड़कीयों को ग्यारह – सोलह साल के बीच मासिक धर्म शुरू हो जाता है
  • मासिक धर्म शुरू होने का मतलब है की वह लड़की अब माँ बन सकती है
  • मासिक धर्म सामान्य तौर पर करीब अठाईस दिनों के बाद आता है
  • यह अवधि बैएस दिनों या पैंतीस दिनों की भी हो सकती है|
  • मासिक धरम में खून का बहाव तीन से छ दिनों तक रहता है|  करीब आधा कप खून का बहाव होता है|

मासिक धरम कैसे होता है

  • मासिक धरम एक चक्र है
  • गर्भाशय के अन्दर गर्भधारण के लिए अंडा आकर गर्भाशय की दीवार से चिपक जाता है|
  • अगर यह गर्भधारण करने लायक होता है तो विकसित होकर नौ महीने में बच्चा बन जाता है
  • और अगर गर्भ धरण नहीं करता है तो दीवार पर जमें खून और बिना गर्भ धरण की ए अंडा सहित बेकार होकर योनी के रास्ते बाहर आ जाता है|
  • यह अंडा तीन – चार दिनों बाद खतम हो जाता है
  • यह एक सामान्य तरीका है जो लड़की यों और महिलाओं में हर महीने होता है|
  • मासिक धर्म के दौरान अलग-अलग तरह के हार्मोन्स अलग-अलग तरह के बदलाव लाते हैं
  • यह बदलाव दिमाग द्वारा गर्भाशय और अंडाशय में होते हैं|

अंडाशय पर असर डालने वाले हार्मोन्स

  • हार्मोन्स के कारण ही अंडाशय में अंड या विंव विकसित होते हैं
  • बहुत सारे अंडे बनते हैं लेकी न एक ही गर्भाशय तक पहुंचता है| इसे अन्दोगर्ग यानि बच्चा बनाने लायक होता है|
  • यह क्रिया मासिक धरम शुरू होने के चौदह दिनों पहले होता है
  • जब अंडा विकसित होता है तो संभोग के दौरान लड़की या महिला गर्भ धारण कर सकती है|
  • अंडा के विकसित होने के समय कुछ लडकी यां या महिलाओं में पेट के नीचे दर्द होता है|  हालांकी यह दर्द बहुत देर तक नहीं रहता है|

गर्भाशय में हार्मोन्स का असर

  • हार्मोन्स के कारण दीवार पर जमने वाली परत मोटी हो जाती है
  • खून की नालियां भी मोटी और दोहरी हो जाती हैं
  • दीवारें मोटी होने से गर्भाशय इस लायक हो जाता है की बच्चा ठीक से पले, बढे|
  • अगर गर्भ नहीं होता है तो खून की नालियां और शिराएँ अपनी जगह से हटने लगती है और योनी से खून निकलता है जिसे महावारी या मासिक धरम कहते हैं|

मासिक धरम के समय अपनी देखभाल

  • सफाई रखना, साफ पैड या कपड़े का इस्तेमाल
  • खूब सोना
  • सेहतमंद भोजन
  • रोज नहाना
  • घर का काम करते रहना
  • मासिक धरम कोई गन्दी प्रक्रिया नहीं है, पूरी सफाई की जरूरत होती है|

मासिक धरम के समय बदलाव

भावनात्मक                           शारीरिक

- चिडचिडापन                               - पेट के निचले भाग में असुविधा होना

- जल्दी उत्तेजना में आना                     - सूजन या दर्द

- ढीला पड़ जाना                            - स्तनों पर सूजन या दरद

- दुखी रहना                                - ऐसा लगना की वजन बढ़ गया है

- कमजोरी                                  - चक्कर

- थकावट                                  - सिर का दरद

- भोजन अच्छा न लगना                     - पीठ और कमर का दरद

- उल्टी जैसा महसूस

मेनोपॉज (मासिक धरम बन्द होने के बाद)

  • मेनोपॉज जीवन का वह समय है जब स्त्रियों में मासिक धरम बन्द हो जाता है
  • मेनोपॉज के बाद स्त्री गर्भवती नहीं हो सकती है
  • सामान्य रूप से मेनोपॉज चालीस-पचास की आयु के बीच होता है
  • पूरी तरह बन्द होने के पहले मासिक धरम कभी जल्दी और कभी देर से आता है
  • वह नियमित नही रहता है
  • मेनोपॉज के दौरान या बाद में यौन संबंध में की सी तरह के रोक की जरूरत नहीं है
  • हाँ गर्भ ठहर सकता है, अगर बच्चे की जरूरत नहीं है तो गर्भ निरोधक अपनाएं
  • मासिक धरम बन्द होने के बाद एक साल तक गर्भ निरोधक अपनाने की जरूरत पड्ती है| उसके बाद नहीं
  • मेनोपॉज के समय स्त्रियों में वेचैने होती है
  • चिंता लगने लगती है
  • उदास रहती है
  • गर्मी लगती है
  • दुखी रहती है
  • बदन में दरद रहता है- कभी यहाँ, कभी वहां
  • मेनोपॉज खतम होने के बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है
  • अगर इन दिनों योनी से ज्यादा खून भे, काफी दिनों तक बढ़ता रहे और साथ में पीड़ा भी हो तो डाक्टर की सलाह लें
  • मेनोपॉज के बाद हड्डियां कमजोर हो जाती है, जल्दी ही टूट सकती है|  सावधानी बरतें|

गर्भ का ठहरना

जब स्त्री का अंड और पुरुष का शुक्राणु आपस में मिलते हैं तो गर्भ ठहरता है गर्भ को पूरी तरह विकसित होने में अड़तीस-चालीस हफ्ते लगते हैं|

लड़की या लड़का

  • गर्भ ठहरने के समय ही यह तय हो जाता है की लड़की होगा या लड़का
  • स्त्री के अंड कोशिका में दो एक्स गुण सूत्र होते हैं
  • पुरुष के शुक्राणु में दो गुण एक्स और बाई होते हैं
  • अगर संभोग के समय पुरुष का शुक्राणु गुण सूत्र के साथ स्त्री के अंडे से मिलता है तो लड़की पैदा होती है|
  • लेकीन पुरुष का शुक्राणु वाई लद्द गुण सूत्र के साथ स्त्री के साथ अंड से मिलता है तो लड़का पैदा होता है|
  • यह स्त्रियों के बस की बात नहीं है की वह निश्चित करे की लड़का पैदा होगा या लड़की|
  • पुरुष का शुक्राणु ही तय करता है की पैदा होने वाला बच्चा लड़का होगा या लड़की प्रकृति नए यह क्षमता केवल पुरुषों को दी है| हमरे देश में लड़का न होने पर ऑंखें को दोषी माना जाता है| यह अज्ञानता है| वह दोषी नहीं है|  यह पुरुषों के शुक्राणु में पाए जाने के सूत्र पर निर्भर करता है की लड़की पैदा होती या लड़का|

गर्भवस्था के लक्षण

  • स्त्री का मासिक धरम रुक जाता है
  • सुबह-सुबह चक्कर का आना
  • उल्टी होने जैसा महसूस करना
  • दूसरे या तीसरे महीने तकलीफ बढ़ जाती है
  • स्तर भारी होने लगता है, उसकी चमड़ी पर लाली आ जाती है और चमक बढ़ जाती है
  • बार बार पेशाब लगती है
  • पैर बड़ा हो जाता है
  • चेहरे, छाती और पेट पर गहरे रंग की झैएयाँ या धब्बे निकल आते हैं|
  • पांचवे महीने बच्चा गर्भाशय में हिलने डुलने लगता है
  • छठे महीने बच्चे के अंग सही हालत में हो जाते है|

गर्भावस्था में स्वस्थ कैसे रहें

  • यह बहुत जरूरी है की वजन बढ़ाया जाए, इसके लिए सेहतमन्द भोजन की जरूरत है|
  • आप के भोजन में पूरी मात्रा में साग-सब्जी, दाल, अंडा, मांस, मछली, दूध, घी हो|
  • गर्भावस्था के छठे महीने के बाद आपको आराम की जरूरत होगी|  रात में कम से कम आठ घंटे सोएं| दोपहर में भी दो घंटे सो लें|
  • वैसे नमक का इस्तेमाल करें जिसमें आयोडिन मिला है|  नहीं तो बच्चे के जीवन पर खतरा हो सकता है|
  • साफ-सुथरा रहें| रोज नहाएं| दांतों को साफ रखें|
  • आखिरी महीने में मैथुन न करें| छूत लग सकता है
  • कोशिश करें की कोई दवा लेने की जरूरत न पड़े कुछ दवाईयां पेट में पल रहे बच्चे को नुकसान पहुंचा सकती है|
  • डाक्टर की सलाह पर ही कोई दवा लें
  • विटामिन की गोलियां और खून में लौह तत्व, फालिक एसिड की गोलियां लेनी चाहिए|
  • आरामदेह कपड़े पहने
  • बीड़ी,हुक्का या सिगरेट न पिएं
  • शराब भी न पिएं 
  • उन बच्चों से दूर रहें जिन्हें खसरा हो गया है
  • घर का काम करते रहना चाहिए, लेकी न ध्यान रहे की थकावट न हो
  • जहरीली चीजों और रसायन से बचें
  • कीटनाशक दवाओं से भी बचें|

गर्भावस्था की छोटी-छोटी परेशानियाँ

  • चक्कर आना या उल्टियां-यह सुबह के समय अधिक महसूस होता है
  • दूसरे-तीसरे महीने असर ज्यादा होता है|
  • सुबह के समय एक आधा रोटी खा लेने से आराम मिलता| एक ही समय अधिक भोजन करने से ज्यादा जरूरत है, थोड़ी-थोड़ी देर बाद थोड़ा भोजन लेना|
  • अगर मामला खतरनाक हो तो उल्टी रोकने वाली दवा ले लेनी चाहिए|
  • अक्सरहाँ तीसरे महीने के बाद उल्टियां आना रुक जाती है|  अगर आती है और पांव में सूजन भी हो जाती है तो डाक्टरी सलाह लेनी चाहिए|
  • कभी-कभी नाभि या छाती में जलन होती है| अच्छा है की उस समय थोड़ा दूध पी लें|
  • दिन में पावों को ऊपर रख कर बैठें, नही तो सूजन हो सकती है|
  • नमक का इस्तेमाल कम कर दें
  • ज्यादा सूजन हो जाने पर डाक्टर की सलह लें
  • सूजन होने का कारण खून की कमी भी हो सकती है|  नियम से फालिक एसिड की गोलियां लें|
  • कमर के निचले हिस्से में भी दरद हो सकता है सपाट बिस्तर या चौकी पर ही सोना चाहिए|
  • खून की कमी एक आम समस्या है
  • हरी पत्तियों वाले सागों का खूब इस्तेमाल करना चाहिए
  • साथ में फलियां, दूध, अंडा के भी सेवन करना चाहिए
  • आपके स्वास्थ्य से ही बच्चे का स्वास्थ्य ठीक रहता है आप गर्भावस्था में बच्चे के स्वास्थ्य रहने के लिए भी भोजन लेती है|
  • पैरों में खून की नालियां मोटी हो जाती है, क्योंकी उस पर बच्चे का वजन पड़ता है
  • सूजन से आराम पाने के लिए पैरों में पट्टियाँ बांधे| रात के समय पट्टियाँ हटा दें
  • गर्भवस्थ में बवासीर भी एक समस्या बन जाती है| 
  • अगर बहुत दरद होता है तो टब में पानी भर दें उसमें लाल दवा (पोटेशियम पर मैगनेट) मिला दें और करीब आधा घंटा दिन में तीन बार बैठें| आराम मिलेगा|
  • कब्ज भी हो जाता है| चोकर वाली रोटियां खाएं| दिन भर खूब पानी पिएं|
  • योनि से पानी बहने लगता है| कभी-कभी यह पीला ओर बदबूदार भी होता है|  योनि वाले हिस्से को कई बार साफ पानी से धोएँ|
  • बदन में अकड़न या ऐंठन भी हो जाती है| आराम के लिए मालिस करें|

गर्भावस्था के खतरनाक लक्षण

  • योनि से थोड़ा भी खून निकले तो खतरे का लक्षण होता है
  • गर्भ गिर भी सकता है, डाक्टर से सलाह कर दवा लें
  • खून कई भारी कमी हो सकती है
  • आप कमजोर हो जाती हैं, काफी थकान लगता है|
  • तुरत इलाज कई जरूरत है, भोजन पौष्टिक चीजें लें, खून कई कमी दूर करने वाली दवाएं भी लें|
  • पावों, हाथों और चेहरे कई सूजन के साथ-साथ अगर सिर दरद और चक्कर भी आवे तो तुरत डाक्टरी इलाज करावें|
  • जरूरी है पौष्टिक भोजन, खून बढ़ाने वाली दवाइयाँ और आराम
  • स्वास्थ्य केन्द्र में हर महीने जांच करावें
  • प्रशिक्षित दाई कई सलाह लेती रहें
  • आखिरी महीने में हर हफते जांच करवाएं|

खुद जाने, जानकारियों को बांटे

  • ढंग का खाना
  • पोषण देने वाला खाना, अनाज, दालें, हरी पीली सब्जियां और पफल, अंडा दूध|
  • खून कई कमी दूर करने वाली हरी साग, पालक, मूली का पत्ता, लाल साग-चौलाई| साथ ही साथ फौलिक एसिड कई गोलियां|
  • अगर गर्भावस्था में आपका वजन बढ़ रहा है तो समझें अच्छा भोजन मिल रहा है
  • आपका वजन नौ महीने में आठ से दस की लो बढ़ना चाहिए
  • अगर अंतिम महीने में ही एक-एक बहुत वजन बढ़ जाए तो यह खतरे कई निशानी है|
  • दवाओं का बिलकुल नहीं या कम इस्तेमाल करें विटामिन और खून बढानें वाली दवाएं लेती रहें
  • हुक्का-बीड़ी, सिगरेट, शराब बिलकुल ही न लें|
  • टेटनस के टीके जरूर लें:

-          पहला टीका      - चौथे से छठे महीने के बीच

-          दूसरा टीका      -पहले टीके के चार हपते बाद

-          तीसरा टीका     - दूसरे टीके के छ महीने बाद

-          चौथा टीका       - तीसरे टीका में एक साल बाद

-          पांचवा टीका     - चौथे टीके के एक साल बाद

खतरे के लक्षण

-          पेशाब करने में जलन

-          जल्दी-जल्दी पेशाब आना

-          पेशाब के साथ खून या पीब आना

-          एकाएक वजन बढ़ना

-          हाथों और चेहरे कई सूजन

-          रक्त चाप (ब्लड प्रेशर) का बढ़ना

-          खून कई बहुत ज्यादा कमी

-          योनि से खून का बहाव

-          पेशाब में चीनी का होना

-          पेशाब में प्रोटीन

हर हालत में डाक्टरी सहायता लें

गर्भाशय (बच्चे दानी)में बच्चे कई हालत

  • हर माह यह देखें की बच्चा की तना बढ़ रहा है, नाभि से ऊपर की  तरफ की तना और नीचे की तरफ की तना बढा|

महिला को प्रसव के लिए तैयार करना

  • जैसे-जैसे बच्चा पैदा होने का समय नजदीक आए, महिला की जांच हर हपते करवाएं
  • अगर महिला इसके पहले भी बच्चा हुआ हो तो पता कर लें की इसके पहले प्रसव के समय की तना दरद हुआ था|
  • हर रोज उसे दिन में दो बार पावों को उंचा करके लेटने को कहें – एक बार में कम से कम एक घंटा|
  • उससे कहें की लेटने के बाद धीरे-धीरे गहरी साँस लें|

प्रसव के लिए तैयार

  • माँ का बच्चे को जनम देना प्रकृति की सामान्य घटना है
  • हां, कई बार कुछ समस्यांए आ जाती हैं, कुछेक खतरनाक लक्षणों पर खास ध्यान देना चाहिए| जैसे –

-          बच्चे के पैदा होने कई तारीख से तीन हपते पहले दरद शुरू हो जाए

-          प्रसव पीड़ा के पहले खून का बहाव होने लगे

-          बच्चा पैदा करने वाली महिला को लम्बी या खतरनाक बीमारी हो

-          उसकी उम्र बीस साल से कम और चालीस साल से अधिक है

-          पैंतीस साल उम्र के बाद गर्भवती हुई है

-          उसके पांच ले अधिक बच्चे हैं

-          उसकी ऊंचाई बहुत कम है

-          उसमें खून कई कमी ज्यादा है

-          पहले भी प्रसव के समय तकलीफ हो चुकी है

-          उसे हर्निया हो

-          ऐसा लगे की जुड़वाँ बच्चा होने वाला है

-          बच्चेदानी में बच्चे की स्थिति ठीक नहीं है

-          पानी की थैली फट गयी हो

-          नाव महीने पूरा करने के दो हपते बाद प्रसव की पीड़ा शुरू हुई है|

ऐसे लक्षण जो बताते हैं की प्रसव की घड़ी नजदीक है 

  • बच्चा पेट में नीचे की तरफ खसक आता है इससे में को साँस लेने में आसानी होती| बार-बार पेशाब करना पड़ता है|
  • पहला बच्चा पैदा होने के समय यह लक्षण दो हपते पहले दिखने लगता है
  • प्रसव के पहले योनि से बलगम जैसी चीज निकलती है, कभी-कभी थोड़ा खून भी बलगम के साथ निकल आता है| इसमें घबड़ाना नहीं चाहिए|
  • गर्भाशय में सिकुड़न मह्सुस होता है, खींचा-खींचा सा लगता है
  • शुरू में सिकुड़न काफी देर या कुछ मिनटों तक रहता है
  • बाद में सिकुड़न हर दस मिनट में होने लगता है, अब दरद भी शुरू हो जाता है, समझना चाहिए की प्रसव की घड़ी नजदीक है|
  • प्रसव नजदीक आने के समय पानी की थैली फट जाती है, योनि से काफी पानी निकले लगता है|
  • अगर सिकुड़ने के पहले ही पानी की थैली फट जाती है तो समझना चाहिए की प्रसव होने ही वाला है|
  • पानी का रंग सफेद होता है, यदि यह हरे रंग का हो तो समझना चाहिए की बच्चे को खतरा है|
  • ऐसी हालत में तुरत प्रसव कराना चाहिए|ज्यादा अच्छा होगा की डाक्टर की देख भाल में प्रसव हों|

प्रसव के तीन भाग होते हैं

पहला भाग

  • दरद के साथ सिकुड़न, बच्चा नीचे के तरफ सरक जाता है
  • इसकी अवधि पहले प्रसव में दस से बीस घंटे रहती है, बाद के प्रसवों में छ से दस घंटे
  • पहले प्रसव के समय जल्दीबाजी नहीं करनी चाहिए
  • बच्चे को खुद नीचे खसकने दीजिए| की सी तरह जोर जबरदस्ती न करें| नली बच्चे को नीचे सरकने के बाद ही माँ को जोर देना चाहिए|
  • माँ को चाहिए की प्रसव के पहले पेशाब पखाना कर लें|  उसे बार-बार पेशाब करना चाहिए|
  • पानी और तरल चीजें पीने के लिए दीजिए
  • अगर प्रसव की पीड़ा लम्बे समय तक खींचे तो थोड़ा जलपान कर लेना चाहिए
  • अगर उल्टियां आवे तो पानी, चाय, शरबत का दो चार घूंट ले लें
  • थोड़ी-थोड़ी देर पर चल फिर लें
  • प्रसव कराने वाली महिला या दाई को चाहिए की वह पेट, जनन वाली जगह, पिछला हिस्सा और टांगों को साबुन और गुनगुने पानी से धोएं
  • बिस्तर साफ रखें
  • ऐसे कमरे में लिटाएं जहां रौशनी हो
  • नया ब्लेड अपने पास रखें, जिससे नाल काटा जा सके
  • उबला पानी तैयार रखें
  • अगर कैंची की जरूरत हो तो उसे भी उबलते पानी में रख दें
  • पेट पर की सी तरह की मालिश न करें, की सी तरह की जोर जबरदस्ती भी न करें
  • सिकुड़न के समय धीमी पर नियमित साँस लें
  • माँ को ढाढस दें की प्रसव का दरद जरूरी है, उससे वह घबराएं नहीं

दूसरा भाग

  • पानी की थैली फूटना शुरू हो जाता है
  • सिकुड़न के समय अन्दर ही अन्दर जोड़ लगा कर बच्चे को बाहर की तरफ ढकेलती है
  • ढकेलने की जरूरी हा की फेफड़ों में पूरी हवा भरी रहे ताकी माँ को ढकेलने में आसानी हो
  • जब बच्चा धीरे-धीरे बाहर निकल रहा हो तो तकी या का सहारा लेकर बैठ जाना चाहिए|
  • जब नली के पास बच्चा का सिर दिखने लगे तो दाई को चाहिए को वह प्रसव कराने की सभी चीजें तैयार कर लें
  • एस समय माँ को अन्दर से जोर लगाने की जरूरत नहीं है
  • दाई को में के योनि के आस-पास की उंगली या हाथ लगाने की जरूरत नहीं है| इससे छूत लग सकता है|
  • हाथ लगाने के लिए हाथों में रबड़ के दस्ताने पहन लेने चाहिए|

प्रसव का तीसरा भाग

  • इस भाग में बच्चे की पैदाइस शुरू हो जाती है
  • आवला (प्लासेन्टा, बिजान्दसन बाहर निकलने लगता है)
  • आवला पांच मिनट से एक घंटे के बीच समय लगता है| यह अपने आप बाहर निकल आता है
  • अगर बहुत खून का बहाव हो तो डाक्टर की मदद लें
  • बच्चे के बाहर निकलने के तुरत बाद
  • बच्चे का सिर नीचा करें ताकी उसके मुंह में लगी लसलसी चीज साफ की या जा सके
  • सिर तबतक नीचा रखें जबतक बच्चा सांस लेना नहीं शुरू कर देता है
  • जबतक नाभि – नल कट न जाए, बंध न जाए तबतक बच्चे को माँ के बगल में नीचा करके लिटाएं ताकी उसे माँ का खून मिलता रहे|
  • अगर बच्चा तुरत सांस नहीं लेता है तो बच्चे के पीठ को साफ कपड़े से मलें
  • यदि फिर भी सांस नहीं लेता है तो समझना चाहिए की उसके नाक-मुंह में अभी लसलसी चीज फंसी है|
  • साफ कपड़े को अंगुली में लपेट कर मुंह नाक साफ करें
  • तुरत पैदा बच्चे को साफ कपड़े में लपेट दें, नहीं तो ठंड लग सकती है|

नाभि-नाल को कैसे काटें

  • बच्चा जब जनम लेता है तो उसके नाभि-नाल में धडकन होती है
  • यह नाल मोटी और नीले रंग की होती है
  • थोड़ा इन्तजार करना पड़ता है
  • थोड़ी देर बाद नाभि-नाल सफेद रंग की हो जाती है
  • वह धड़कना भी बन्द कर देती है
  • अब इसे दो जगहों पर साफ-सुथरे कपड़े की पट्टी से बांध देना चाहिए| जड़ों को कस कर बांधना चाहिए|
  • इसके बाद इसे गाठों के बीच से काटिए
  • काटने के लिए बिलकुल नए ब्लेड का इस्तेमाल करें
  • ब्लेड के उपर कागज हटाने के पहले अपने हाथों को गरम पानी और साबुन से धो लें|
  • अगर ब्लेड न हो तो ऐसी कैंची का इस्तेमाल करें जिसे उबले पानी में देर तक खौलाया गया है|
  • नाभि से एक-दो अंगुल हट कर नाल-नाभि को काटें
  • अगर आपने यह सावधानी नहीं बरती तो बच्चे की टेटनस हो जा सकता, वह में जा सकता है|
  • ताजी कटी नाल-नाभि को सूखा रखें| उसे खुला रखें ताकी उसे हवा लग सके और जल्दी सूख जाए|
  • ध्यान रखें की उसपर मक्खी न लगे
  • धूल-मक्खी से बचाने के लिए कपड़े में लिपटा दवाई की दूकान से खरीदी रुई रख दें
  • नए पैदा बच्चे पर मोम जैसी चीज लगी होती है
  • यह तह बच्चे को छूत से बचाती है, इसे हटाना नहीं चाहिए, हल्के साफ कपड़े हल्के हाथों से पोछना ताकी खून या कोई अन्य तरह की चीज पूंछ जाए|

नाल-नाभि काटने तथा बच्चे को पोछने का तुरत बच्चे को माँ का दूध पीने दें|  इसी समय उसे स्तन से निकला गाढ़ा पीला खीस (कोलस्ट्रम) पीने को मिलेगा|  यह खीस उसे बहुत सारी बीमारियों से बचाएगा|

आंवला या नाड़ (प्लासेन्टा) निकालना

  • आंवला बच्चे के जनम के बाद करीब पांच मिनट से एक घंटे की बीच बाहर आ जाता है|
  • लेकी न कभी-कभी काफी समय भी लग सकता है
  • निकलने के पहले गर्भाशय कड़ा हो जाता है
  • पेट का निचला भाग उठ जाता है
  • थोड़ा खून भी निकल सकता है
  • निकल आने के बाद नाड़ को अच्छी तरह देखें
  • देखें की कहीं टुटा हुआ तो नहीं है
  • कुछ भाग अन्दर रह जाने पर खून का बहाव होगा|
  • ऐसी हालत में डाक्टरी मदद लेनी पड़ेगी
  • नाल को कभी भी खींचे नहीं
  • खून के अधिक बहने पर चिंता होता है
  • तुरत डाक्टरी सहायता लें|

कठिन प्रसव में

  • सिकुड़ना होने में बाद और पानी थैली फटने के बाद भी अगर लम्बे समय तक दरद होता है तो समस्या गम्भीर हो जाती है|
  • अगर बच्चा पैदा करने वाली महिला बहुत उमर की है, या
  • पहली बार गर्भवती हुई है तो परेशानी हो सकती है
  • हो सकता है पेट में बच्चा सही स्थिति में नहीं है
  • वह चित या पट हो सकता है
  • बच्चे को मुंह नाभि की तरफ हो सकता है
  • बच्चे का सिर जरूरत से ज्यादा बड़ा हो सकता है
  • जिन महिलाओं के नितम्ब छोटे होते हैं उन्हें भी बच्चा जनने में तकलीफ होती है|
  • अगर माँ उल्टियां करती है उपर से पानी नहीं पीती तब भी गम्भीर हालत हो सकती है|
  • पेट में बच्चा उल्टा भी हो सकता है सर ऊपर और पैर नीचे
  • ऐसी सभी समस्याओं में अस्पताल की देख-रेख में प्रसव कराएं|

तुरंत पैदा हुए बच्चे की देखभाल

  • ध्यान रहे की ताजी कटी नाभि-नाल को हाथ न लगाएं| छूत लग सकती है
  • उसे साफ और सूखा रखें
  • बदन, मुंह, नाक, कान, आंख को सूखे साफ पतले कपड़े से हल्के हाथों से पोछें
  • बच्चे को साफ कपड़े में लपेट कर रखें
  • ठंड से बचाएं
  • माँ के स्तन में उसका मुंह लगा दें
  • बच्चे जैसे पखाना पेशाब करे उसका पोतड़ा बदल दें
  • बच्चे को नंगे ही रहने देना ठीक होगा, उपर से एक साफ कपड़ों से ढक दें
  • जब नाभि-नाल सूख कर गिर जाए तो बच्चे को हर रोज गुनगुने पानी और हल्के साबुन से नहाना चाहिए|
  • मच्छर-मक्खी से बचाएं| हल्के जालीदार कपड़े से ढके रखें
  • छुतहा रोगी को उसके नजदीक न जाने दें
  • धुआं-धूल से भी बच्चों को बचा कर रखें
  • माँ का अपना दूध दुनिया में सबसे अच्छा भोजन है
  • वे स्वस्थ्य और निरोग रहते हैं
  • जरूरी है बच्चे के जनम में बाद माँ के स्तन से निकला पीला-गाढ़ा खीस वह जरूर पीए
  • खीस (कोलेस्ट्राल) बच्चे को बहुत सारी बीमारियों से बचाता है|
  • माँ का दूध पीने वाला बच्चा अपने को हर तरह से सुरक्षित महसूस करता है
  • उसे ममता, स्नेह, सूख मिलता है
  • चार महीने तक बच्चे को माँ के दूध पर ही जीना चाहिए ऊपर से उसे कुछ भी नहीं चाहिए|
  • बच्चे को थोड़ी-थोड़ी पर दूध पिलाती रहें-कम निकले या ज्यादा
  • काफी मात्रा में तरल चीजें पिएं – दाल, सब्जी, फल का रस, दूध
  • खाने-पीने खूब पोषण रहना चाहिए
  • थकान से बचना चाहिए, अच्छी नींद सोना चाहिए
  • हर माँ अपने बच्चे को पूरा दूध पिला सकती है
  • जरूरत है इच्छा शक्ति की , खुद के खान-पान को ठीक से रखने की
  • बहुत मजबूती में गाय या बकरी का दूध देना चाहिए, डिब्बा वाला दूध बोतल पर बहुत सारी बीमारियां हो सकती है|

हाल में जनमें बच्चों की बीमारियां 

  • कुछ ऐसे रोग हैं जो उनमें जनम से शुरू हो जाते हैं
  • ये समस्याएं इसलिए भी हो सकती है की

-          गर्भाशय में पलने बढने के समय ही कोई खराबी आ गयी है

-          जनम लेते ही वह अच्छी तरह सांस नहीं ले पा रहा है

-          उसके नबज को महसूस न की या जा सके या

-          उसके नबज की गति एक मिनट में सौ से अधिक हो

-          सांस लेने के बाद बच्चे का बदन सफेद, नीला या पीला हो जाए

-          बच्चे की टांगों में कोई जान न हो, चुट्की काटने पर भी बच्चा कुछ महसूस नहीं करता है

-          उसके गले में घरघराहट को

-          ऐसी सभी समस्याओं में डाक्टर की देखरेख में इलाज करावें  

जन्म के बाद पैदा होने वाली समस्याएं

  • शुरू के पहले दो हफ्तों में ऐसी समस्याएं अधिक दिखती हैं
  • नाभि से पीब निकलता है या फूट कर बदबूदार बहाव होता है
  • कम तापमान या अधिक तापमान वाला बुखार आता है
  • तेज बुखार बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है
  • कम बुखार में बच्चे के बदन को ठंडे पानी से हल्के हल्के पोंछे
  • अगर की सी प्रकार का दौरा पड़ता  है तो यह हानिकारक हो सकता है| डाक्टर को दिखाएँ
  • बच्चे का जनम के बाद वजन थोड़ा घट जाता है लेकी न दो हपते में कम से कम दो सौ ग्राम वजन बढ़ना चाहिए|
  • बच्चा दूध पीने के बाद उल्टी कर देता है| पीठ को थपथपाएं| पेट से हवा निकल जाएगा| उसे आराम मिलेगा| तब उल्टियां कम हो जाएगी|
  • बच्चा माँ का दूध पीना बन्द करता है, वैसे तो उसे हर चार घंटे पर माँ इ स्तनों की खोज न करता है, लेकी न कभी-कभी ऐसा नहीं करता है|
  • वह हमेशा सोता रहता है, जगे रहने पर पलके झपकती रहती है| वह बीमार दिखता है
  • ऐसी हालत में ध्यान दें की कहीं  बच्चे को सांस लेने में तकलीफ तो नहीं हो रही है
  • नाक तो बन्द नहीं हो गया है
  • बदन का रंग तो नीला नहीं हो रहा है
  • होंठों के रंग तो नहीं बदल रहे हैं
  • उसके सर के कोमल भाग (तालु को छूकर  देखें)
  • अगर धंस गया है तो भी खतरा,अगर उभर गया है तो भी खतरा
  • यह भी ध्यान दें की कहीं बच्चे का बदन या उसके हाथों, टागों में अकडन या ऐंठन तो नहीं है|
  • वह अपने बदन और अंगों को सामान्य रूप से हिला-डुला रहा है
  • खून की जांच करावें कोई दूत तो नहीं लग गया
  • अगर हाँ, तो डाक्टरी इलाज की जरूरत है|

प्रसव के बाद माँ का स्वास्थ्य

  • बच्चे के प्रसव के बाद माँ का शरीर थोड़ा गरम हो जाता है|
  • लेकी न दूसरे दिन इसे पहले की हालत में आ जाना चाहिए
  • उसे अब अधिक पौष्टिक भोजन चाहिए, अब उसे अपने बच्चे को भोजन भी अपने शरीर में ही पैदा करना है|
  • इसके लिए अब फल,सब्जी, फलियों वाली सब्जियां पीले फल और सब्जियां मूगफली, दूध, अंडा, मुर्गी चाहिए|
  • ऐसे ही भोजन खा कर वह अपने बच्चे का सही ढंग से दूध पिला पाएगी
  • दूध और पानी
  • दूध और पनीर के सेवन ससे उसके स्तनों में अधिक दूध बन जाता है
  • प्रसव के कुछ दिनों के बाद उसे नहाना शुरू कर देना चाहिए
  • वह साफ कपड़ा पहने, नहीं तो उसका बच्चा बीमार पड़ सकता है
  • कभी-कभी प्रसव के बाद बुखार ठहर जाता है|  ऐसा दाई या की सी अन्य व्यक्ति से छूत का लगना हो सकता है|
  • योनि से खून या बदबूदार बहाव हो सकता है
  • ऐसी हालत में योनि और जनन अंगों को गुनगुने पानी में थोड़ा सिरका या पोटाशियम परमेगनेट मिलाकर धोना चाहिए|
  • अगर बुखार बना रहे तो डाक्टर की देख-रेख में इलाज कराएं
  • कुछ स्त्रियाँ मानसिक रूप से निराश हो जाती हैं, उनमे डर समा जाता है|

स्तनों की देखभाल

  • ऐसी हालत में परिवार के लोगों का स्नेह उसे चाहिए|
  • यह माँ और बच्चा दोनों के हित में है की स्तनों की देख भाल ठीक ढंग से हो
  • बच्चा के पैदा होते ही उसे स्तनपान कराना शुरू कर दें
  • शुरू में बच्चा शायद स्तनों को ठीक दंग से न चूस सके लेकी न जल्दी ही वह सीख लेगा
  • पहले दो दिन स्तनों से दूध निकलता है, उसे खीस कहते है
  • खीस पानी की तरह पतला होता है
  • माताएं समझती हा की खीस बच्चे को नुकसान पहुंचाता है, और खीस नहीं पिलाना चाहती हैं|
  • सच तो यह है की खीस अमृत समान है
  • खीस में सेहत ठीक करने वाली चीजें होती हैं
  • पहले दिन दूध पिलाने से यह फायदा है की स्तनों से ज्यादा दूध मिलेगा
  • आमतौर से स्तनों में इतना दूध बनता है जितना की बच्चे को जरूरत है
  • बच्चा जितना ज्यादा दूध पिएगा, उतना ज्यादा दूध स्तनों में बनेगा
  • अगर बच्चा बीमार पड़ता है और दूध नहीं पीता है तो स्तनों में दूध बनना बन्द हो जाता है|
  • ऐसी हालत में माँ को चाहिए की वह बच्चे को दूध पिलाती रहें|
  • अगर फिर बच्चा दूध न पीए तो माँ को चाहिए की एक-एक स्तन को बारी-बारी जड़ के पास दोनों हाथों से निचोड़ती रहे और दूध बाहर निकाल दें|
  • इस क्रिया से स्तनों में दूध बनना बन्द नहीं होगा
  • बीमार बच्चे को निचोड़ने से निकले दूध को चम्मच से पिलाएं
  • अपने स्तनों को हमेशा साफ रखें, बच्चे को दूध पिलाने के पहले धो लें|  इससे बच्चा छूत से बचेगा
  • धोते समय ध्यान रखें की चूची पर पानी न लगे, चूची से कुछ ऐसी चीजें निकलती है, जो बच्चे को रोगों से सुरक्षा दिलाता है|
  • अगर चूची में सूजन आ जाए या दरद हो तो दूध पिलाना बंद कर दें| एक दो दिन ऊपरी उबला दूध पिलाएं|

कम वजन के बच्चे की देखभाल

  • कुछ बच्चों का वजन जनमने के समय दो से पांच की लोग्राम से कम होता है
  • ऐसे बच्चों की खास देखभाल की जरूरत होती है
  • ज्यादा अच्छा होगा की ऐसे बच्चे की देखभाल अस्पताल में हो
  • सम्भव न होने पर ऐसे बच्चों को छाती से चिपका कर रखें
  • उसे जरूरत मुताबिक स्तनों से दूध पिलाती रहे
  • हर रोज बच्चे का चेहरा और निचला भाग साफ करें
  • बदन से चिपके रहने से उसको बराबर गरमी मिलते रहेगी
  • जब आप आराम करना चाहें या नहाना चाहें तो घर का कोई अन्य व्यक्ति उसे अपने से चिपका कर बैठें या लेटें
  • ऐसे बच्चे को टीके समय से लगवाएं
  • बच्चे को पिलाने वाला विटामिन और खून बढ़ाने वाली दवाइयां दें| ऐसे बच्चों के लिए खास ताकत की दवाइयां आती हैं|

नवजात की सुरक्षा