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Wednesday, August 05, 2020

स्तनपान कराने वाली महिलाओं को पोषण से जुड़ी इन 5 बातों का रखना चाहिए ध्यान!

1 से 7 अगस्त के बीच हर साल विश्व स्तनपान सप्ताह (World Breastfeeding Week) मनाया जाता है. स्तनपान के लिए स्वस्थ पोषक तत्वों की निरंतर खुराक की जरूरत होती है जो दूध की आपूर्ति को बढ़ावा देते हैं और मां और बच्चे की स्वास्थ्य स्थिति को बढ़ाने में मदद करते हैं. यहां कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश दिए.

  • स्तनपान कराने वाली महिलाओं को प्रति दिन 500 कैलोरी की जरूरत होती है.
  • स्तनपान करने वाले शिशुओं में प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है.
  • बच्चे को पिलाती हैं दूध तो इन 5 बातों को गांठ बांध लें.
प्रोटीन का सेवन बच्चे के विकास के लिए जरूरी है

3. आयरन युक्त खाद्य पदार्थ

माताओं और बच्चे में लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण के लिए आयरन की आवश्यकता होती है. आयरन रक्त में ऑक्सीजन ले जाने में मदद करता है और इसकी कमी से थकान और ऊर्जा के स्तर में कमी हो सकती है. शिशु के मस्तिष्क और शरीर को विकसित होने के लिए लोहे और ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है. लोहे का सबसे अच्छा स्रोत दुबला मांस है. हरी पत्तेदार सब्जियां, पकी हुई फलियां, और मटर भी आयरन के अच्छे स्रोत हैं. अन्य खाद्य स्रोतों में शामिल हैं- काजू, बेक्ड आलू, कद्दू के बीज, साबुत अनाज और फ्लैक्ससीड्स. सब्जियों से अधिक लोहे को अवशोषित करने के लिए, विटामिन सी से भरपूर खाद्य पदार्थ खाएं जैसे कि खट्टे फल, टमाटर या ब्रोकली. चाय और कॉफी आयरन के अवशोषण को कम करते हैं, इसलिए इसका सेवन सीमित होना चाहिए.

4. कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थ

कैल्शियम जीवन भर एक खनिज है, लेकिन नर्सिंग करते समय, एक महिला हड्डियों के द्रव्यमान का 3-5% खो सकती है और यह खनिज सभी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है. स्तनपान कराने वाली मां के लिए प्रति दिन लगभग 1000 मिलीग्राम कैल्शियम की आदर्श सिफारिश है. कैल्शियम बच्चे की हड्डी, दांत और मांसपेशियों के विकास के लिए महत्वपूर्ण है और यह माताओं के लिए हड्डियों से संबंधित विकारों जैसे ऑस्टियोपोरोसिस के भविष्य के जोखिम को रोकता है. कैल्शियम के आहार स्रोतों में शामिल हैं- दूध, घी, छाछ, दही, और पनीर जैसे डेयरी उत्पाद. यह गहरे हरे रंग की पत्तेदार सब्जियों, सोया उत्पादों, तिल के बीज, सूरजमुखी के बीज, क्विनोआ, रागी, छोले, और कुछ दालों में भी पाया जाता है.

5. गैलेक्टागोग्स

स्तन के दूध की आपूर्ति को बढ़ावा देने के लिए उपयोग की जाने वाली किसी भी जड़ी-बूटी, भोजन या दवा को गैलेक्टागॉग के रूप में जाना जाता है. कुछ प्रकार की प्राकृतिक जड़ी बूटियों का उपयोग प्राचीन काल से किया जा रहा है ताकि महिलाओं को अपने दूध की आपूर्ति को बढ़ावा देने में मदद मिल सके. प्राकृतिक गलाकाटोग्यूज़ में शामिल हैं- साबुत अनाज जैसे जई और जौ, अजवाईन के बीज, दूध थीस्ल, डिल हर्ब, गहरे हरे पत्ते वाली सब्जियां, सौंफ के बीज, लहसुन, मेथी के बीज, छोले, अदरक, पपीता, नट्स, और बीज.

Tuesday, May 12, 2020

बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास एवं गर्भावस्था के दौरान भोजन

बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास

बच्चे के विकास की गति
  • विकास की  गति जन्म  लेने के बाद शरू हो जाती है
  • उम्र के अनुसार ही शरीर और दिमाग का विकास होता है
  • बच्चे के विकास की  शुरुआत तो माँ के पेट से होने लगता है, गर्भ टिकने के बाद शुरू के तीन महीनों में बच्चे का तेजी से विकास होता है।
  • जन्म  से लेकर तीन साल तक बच्चे का विकास होता है
  • बच्चे के विकास पर ध्यान देने के लिए जरूरी है की  हर महीने उसका वजन लिया जाय ।
  • वजन अगर बढ़ रहा है तो ठीक है अगर नहीं तो उसके खान-पान पर अधिक ध्यान देने की  जरूरत पड़ेगी।
  • विकास की  गति का अपना ढंग है।

हम देखें के विकास की  यह गति कैसे होती है

एक

औसत उम्र एक महीना

शारीरिक विकास थोड़ी देर के लिए पेट के बल बैठता है और सिर उपर की  ओर उठता है

मानसिक विकास की सी तरफ ऑंखें घुमा कर देखता है, थोड़ा-थोड़ा मुस्कुराता है

 

 

दो  महीना

हाथ पैर थोड़ा-थोड़ा हिलाता है

मुस्कुराता है अपनी माँ को पहचानता है

 

 

तीन  महीना

अपना सिर उपर की ओर उठा पता है

की सी खास चीज को देख कर हिलने डुलने लगता है बोलने की कोशिश हुंकारी भरता है

 

दो

औसत उम्र पांच से छ महीना

शारीरिक विकास करवट लेता है सिर की घुमाता है सहारा पाकर बैठना पेट के बल घिसकना

भाषा का विकास जोर जोर से आवाज निकालता है

सामाजिक विकास परिवार के सदस्यों को पहचानना नये व्यक्ति को देख कर रोना

तीन

औसत उम्र छ से नवां महीना

शारीरिक विकास बिना समझे बैठ पाता है घुटने के बल चलता है दो तीन दांत निकल आते हैं

भाषा का विकास बिना समझे कुछ जाने शब्दों को बोलता है उसके सामने बोलने से वह भी कह शब्द निकाल देता है

सामाजिक विकास पहचान और बिना जाने पहचान व्यक्तियों में फरक करना

 

नवां से बारह महीना

खड़ा हो पाता है पांच-छ दांत निकल आती है चलने की कोशिश करना

बोलने की कोशिश में गति

चीजों को गौर से देखना

 

बारह से अठारह महीना

बिना सहारे के चल पाता है बारह से अठारह दांत निकल आती हैं

बोलने पर समझना जैसे माँ, दूध, बाबा, दीदी

चीजों को हाथों से पकड़ता है कोई उससे चीजें चीन नहीं सकता

 

डेढ़ से दो साल

दौड़ सकता है सोलह–अठारह दांत निकल आती है

कई बार शब्द बोल पाता है। छोटे-छोटे वाक्य भी

बच्चों का ध्यान अपनी तरफ ही ज्यादा रहता है खेलने के लिए साथी खिलौना

 

दो से तीन साल

खेलना-कूदना सीढ़ियां चढ़ लेना

बातचीत कर लेना पूरा वाक्य बोल पाता है

दूसरों के साथ खेलना चीजों को समझने कई कोशिश करना

 

ध्यान दें: सभी बच्चों का विकास एक समान नहीं होता है। उपर दी गयी बातें सामान्य है, एक तरह से विकास गति को जानने में मदद मिलेगा।

बच्चों के विकास पर ध्यान दिए जाने वाले बिंदु

बच्चों के विकास के लिए नीचे दी गयी बातों पर ध्यान देना होता है

(क) खान – पान

  • जब बच्चा माँ के पेट में पल रहा होता है तो अपना भोजन माँ के शरीर से पाता है
  • माँ के लिए जरूरी है की  वह सेहत ठीक रखने वाली पौष्टिक आहार ले, नहीं तो बीमार बच्चा पैदा होगा जिसका वजन भी कम होगा।
  • हमारी सामाजिक रीतियाँ इतनी बुरी है की  महिलाओं, की शोरियों ओर लड़की यों को सही भोजन नहीं मिलता है, इसलिए हमारे बच्चे-लड़के-लड़की यां और बीमार रहते हैं।
  • अच्छे भोजन की  कमी से की शोरियों और महिलाओं में खून की कमी रहती है
  • जरूरी है की  लड़का-लड़की में भेद भाव न रखा जाय सबको बराबर ढंग से पौष्टिक भोजन मिले ताकी  परिवार के सभी लोग स्वस्थ्य रहें।
  • गर्भावस्था में तो महिलाएं सही भोजन मिलना चाहिए ताकी  वह स्वस्थ्य बच्चा पैदा कर सके।
  • बच्चे का जन्म  के तुरत बाद स्तनपान कराना चाहिए। माँ के स्तनों में खूब दूध आए इसके लिए जरूरी है की  माँ का भोजन सही हो
  • बच्चे का स्वस्थ्य माँ के भोजन पर ही टिका रहता है।

(ख)  लाड-दुलार

  • अगर परिवार के सभी लोग और आस-पडोस के लोग अगर बच्चे को पूरा लाड़-प्यार देते हैं तो उसका सामाजिक विकास ठीक ढंग से होगा।
  • अगर उसे लाड़-दुलार नहीं मिलता तो वह दुखी महसूस करता है, कुछ भी उत्साह से नहीं करता है।

(ग़) सुरक्षा

  • बच्चे के सही विकास के लिए जरूरी है की  वह अपने को सुरक्षित महसूस करें
  • वह महसूस करे की  लोग उसका ध्यान रखते हैं
  • उसके पुकारने पर लोग जवाब देते है
  • उसको लगे की  लोग उससे प्यार करते हैं।

बच्चे को परिवार और समाज का एक व्यक्ति समझना

  • उसकी पसंद और नपसंद का ख्याल रखना
  • उसे दूसरे बच्चों से उंचा या नीचा नहीं समझना
  • जब वह कोई नयी चीज समझता है या करता है तो उसे शाबासी देना, उसकी तारीफ करना।
  • तारीफ करने से उसका उत्साह बढ़ता है
  • उसकी आवश्यकता को पूरा करना
  • बच्चों को स्वाभाविक रूप से काम करने देना
  • उस पर की सी तरह का दबाव न पड़े
  • उससे यह न कहना की  यह करना यह न करना
  • हाँ, खतरे में न पड़े इसका ध्यान देना
  • बच्चे का स्वाभविक विकास रहे इसके लिए जरूरी है की  बच्चा खेल-कूद में भाग लें
  • खेल –खेल में बच्चा नयी चीजें सीखता है।
  • उसे समाज का एक जवाबदेह सदस्य बनने में मदद मिलती है
  • उनका दूसरों के साथ मेल-जोल बढ़ता है
  • उसके बोलचाल और भाषा में विकास होता है।

हमारा विश्वास, हमारी परंपरा और माँ-बच्चे का स्वास्थ्य

  • सभी समाज में कुछ मान्यताएं होती हैं, कुछ संस्कार, कुछ विश्वास।
  • उनमे से कुछ अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे और हानिकारक भी।
  • यह बातें माँ और बच्चे की  देख भाल, सेहत और स्वास्थ्य पर भी लागु होती है।
  • हमारे विश्वाश,हमारे संस्कार चार तरह के होते हैं
  • वे जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है
  • वे जो न लाभदायक हैं न हानिकारक  
  • वे जो खतरनाक और हानिकारक है
  • ऐसे विश्वास जो अब तक साबित नहीं हुए हैं वे हमारे लिए लाभदायक हैं या हानिकारक
  • हमारे लिए जरूरी है कि  हम पहचाने और जाने की  कौन से विश्वास लाभदायक है।
  • हमें लोगों के साथ लाभदायक विश्वाशों के साथ काम शुरू करना है ।
  • अंध विश्वास एक दिन में खतम नहीं होता, समाज के लोगों के साथ उनपर काफी चर्चा करनी पड्ती है।

गर्भवती महिला का खान-पान

  • कुछ लोगों का विश्वास है कि  जब बच्चा पेट में पल रहा हो तो गर्भ के समय अधिक मात्रा में भोजन लेने से पेट का बच्चा बहुत बड़ा और भारी हो जाएगा जिससे प्रसव के समय कठिनाई होगी।
  • कुछ लोगों का यह बिश्वास है की  ज्यादा भोजन से पेट पर दबाव पड़ेगा इसलिए पेट में पल रहे बच्चे का विकास नहीं होगा।

सच तो यह है कि पेट में पल रहे बच्चे का विकास माँ के भोजन पर ही टिका रहता है

  • अगर माँ अधिक मात्रा में भोजन नहीं लेगी तो बच्चे का विकास नहीं होगा
  • केवल भोजन का अधिक होना ही ज्रिरी नहीं है। जरूरी है की  भोजन में अनाज के साथ-साथ दालें, मूंगफली, दूसरी तरह की  फलियाँ जैसे – सोयाबीन, दूध, दही, अंडा वगैरह भी लें।
  • भोजन अगर पोषण देने वाला नहीं होगा तो जन्म ने के समय के समय बच्चे का वजन कम होगा। वह बराबर बीमार रहेगा।

यही बात प्रसव के बाद भी लागू होगा। माँ के स्तनों में पूरा दूध बने इसके लिए जरूरी है की  माँ के भोजन में पोषण हों और उसकी मात्रा भी अधिक हो।

*कुछ और लोगों का विश्वास है कि प्रसव के बाद माँ को पानी पिलाने घाव सुखने में देर लगती है।

यह सब खतरनाक अन्धविश्वास है

  • माँ को पानी नहीं मिलने पर उसे तकलीफ होती है
  • पानी की  कमी से स्तनों में दूध नहीं बनता
  • चाहिए तो यह की  माँ का पानी के साथ दूसरी तरल चीजें भी पिलानी चाहिए जैसे फलों और सब्जियों का जूस (रस), दूध छाछ इत्यदि।
  • कुछ लोगों का विश्वास है की  बच्चे को खीस (कोलेस्ताम) पिलाने बच्चा बीमार हो जाएगा।
  • खीस प्रसव के बाद स्तनों से पीला, चिपचिपा बहाव होता है।
  • सच तो यह है कि खीस अमृत समान है। यह बच्चों को बहुत सारी बीमारियों से बचाता है।
  • हर माँ का प्रसव के तुरत बाद अपना स्तन बच्चे के मुंह से लगा दें ताकी  वह जी भर कर खीस पीए और रोगों से बचें।
  • हमारे समाज में अन्न प्राशन का रिवाज है।  यह बहुत अच्छा रिवाज है।  अक्सरहां पांच से सात महीने पर पूजा-पाठ के साथ बच्चे को अन्न खिलाया जाता है।
  • लेकिन कभी-कभी काफी लोग एक दिन अनाज खिलाने के बाद एक साल या उससे ज्यादा समय तक कुछ नहीं खिलते हैं, केवल दूध देते हैं।
  • उनका विश्वास है कि छोटा बच्चा अनाज नहीं पचा पाएगा
  • सच तो यह कि बच्चे के चार महीना को होते ही पतला दाल, उबला आलू या दूसरी सब्जी को मसल कर खिलाना चाहिए।
  • धीरे-धीरे छ महीने पर उसे खिचड़ी जैसी चीज खिलानी चाहिए
  • हाँ दूध तो दो साल तक नियमित रूप से पिलानी चाहिए, केवल माँ का दूध-बोतल या डिब्बा का दूध नहीं।
  • यदि बाहर के दूध पिलाने की आवश्यकता पढ़े तब गाय या बकरी का दूध पिलाना चाहिए।

दस्त के समय खाना और पानी देने से दस्त बन्द हो जाएगा

  • सच तो यह है कि  दस्त में शरीर में पानी की  कमी होती है उसे पूरा करने हेतु ओ.आर.एस. का घोल पिलाएं।  हल्का खाना दें।
  • कहीं-कहीं अपच या पेट की  गड़बड़ी की  हालत में माँ बच्चे को स्तन पान नहीं करती-यह गलत विचार है

सच तो यह है कि  स्तनपान के जरिए बच्चे माँ की  बीमारी से प्रभावित नहीं होते।

-बीमारी की  अवस्था में सावधानी से स्तन पान कराएं

  • बुखार के दौरान शिशु को नहलाया नहीं जाता – यह भी हानिकारक अंध विश्वास है

बुखार से शिशु के शरीर का तापमान बढ़ जाता है, सिर धोने और भींगे कपड़े से बदन पोंछने से बुखार कम होता है।

यदि बुखार में कंपकपी हो टब शरीर पर पानी देना ठीक नहीं है। हानि हो सकती है।

बुखार होने पर कमरा की  खिड़की को खोल कर रखें

  • बुखार होने पर खाने पर रोक नहीं लगाना चाहिए आसानी से पचने वाला भोजन – रोटी, दाल, फल, दूध दिया जाना चाहिए।  भोजन कमजोरी को कम करेगा।

शिशुओं का वजन नहीं कराने का रिवाज गलत है

- यह मानना भी गलत है की  वजन कराने से शिशु का बढ़ना रुक जाएगा।

- सच तो यह है की  समय-समय पर शिशु का वजन कराना आवश्यक है।

- इससे शिशु के बढ़ने या कमजोर होने की  जानकारी मिलती है।

- यदि वजन घटता है तब डाक्टर से सलाह लें

- रोग होने पर झाड-फूंक कराने या ताबीज बांधने के विश्वास का कोई माने नहीं है।

- झाड-फूंक कराने या ताबीज बांधने के साथ पर रोग का इलाज आवश्यक है

- रोग होने पर डाक्टर की  सलाह के अनुसार परहेज कराएं तथा दवा खिलाएं। बच्चे को पीलिया होने पर गले में काठ की  माला पहनाना भी एक विश्वास या अंध विश्वास है।

- सच तो यह है की  लीवर की  गडबडी से पीलिया रोग होता है।  एस रोग में काठ की  माला पहलाने से कोई लाभ नहीं होता।

- बीमारी के इलाज कराने पर ही बीमारी दूर होगी। विभिन्न प्रकार की  बिमारियों में शिशु के शरीर को दागना एक हानिकारक अंध विश्वास है।  जिसका पालन ठीक नहीं है।

- कुछ जगहों में एक प्रकार की  पत्ती को पीस कर शरीर के विभिन्न स्थानों पर लगाया जाता है जिससे चमड़ा जल जाता है।

इससे शिशु को कष्ट के सिवाय लाभ नहीं होता है। कुछ लोगों का मानना है की  कुछ खाने के पदार्थ गरम तथा कुछ ठंढा होता है। बीमारी में दोनों प्रकार चीजों से शिशु को रोका जाता है। यह गलत मानना है।

- आम खाने से फोड़े नहीं होते हैं

- दही को ठंडा मानते हैं।  और खाने से परहेज करते है – बात ऐसी नहीं है।  दही का सम्बन्ध सर्दी जुकाम से नहीं रहता है।

- विटामिन सी के ली खट्टे फल या फलों का रस का सेवन करना आवश्यक है इन सब को खाने से रोकना नहीं चाहिए।

- सावधानी इस बात की  रहे की  खाने में अधिक तेल/घी, मिर्च एवं मसाले का व्यवहार नहीं हो।  आहार पोष्टिक तथा शीघ्र पचने वाला हो।  ध्यान रहे संस्कार एवं विश्वास का प्रभाव जीवन पर पड़ता है।  हमारा व्यवहार बदल जाता है।  अंध विश्वाश को दूर करने का प्रयास होना चाहिए।

संतान यदि बेटा-बेटी दोनों है तब

  • बेटी को भी बेटा की  तरह प्यार दें।
  • दोनों के खान-पान में भेद भाव नहीं करें।
  • दोनों को शिक्षा का समान अवसर प्रदान करें। 
Tuesday, May 12, 2020

स्‍तनपान के मुख्‍य संदेश

स्‍तनपान के मुख्‍य संदेश

स्‍तनपान की सूचना प्रसारित करना और उसपर कार्रवाई करना महत्‍वपूर्ण क्‍यों है ?

जिन शिशुओं को स्‍तनपान करवाया गया हो, वे उन शिशुओं की अपेक्षा कम बीमार होते हैं और कुपोषित भी जिनको अन्‍य पेय और खाद्य पदार्थ दिये गये हों। यदि सभी शिशुओं को उनके शुरुआती छह महीनों में केवल मां का दूध दिया गया होता, तो अनुमानित प्रत्‍येक वर्ष 15 लाख बच्चों की जिंदगी बचा ली गई होती और लाखों अन्‍य का स्‍वास्थ्‍य और विकास भी बहुत अच्‍छा रहता।

स्‍तनपान के विकल्‍प का इस्‍तेमाल करना जैसे नवजात फॉर्मूला या पशुओं का दूध बच्चों के स्‍वास्‍थ्‍य को प्रभावित कर सकता है। यह खासकर उन मामलों में होता है जब माता-पिता पर्याप्‍त वैकल्पिक व्‍यवस्‍था नहीं कर सकते जो महंगी होती हैं या फिर उनमें मिलाने के लिए हमेशा साफ पानी का इस्‍तेमाल नहीं करते।

लगभग हरेक मां सफलतापूर्वक स्‍तनपान करवा सकती है। जिन माताओं को स्‍तनपान करवाने में आत्‍मविश्‍वास की कमी लगती है, उन्‍हें बच्चे के पिता का व्‍यावहारिक सहयोग और परिवार के अन्‍य सदस्‍यों, दोस्‍तों और रिश्‍तेदारों के प्रोत्‍साहन की जरूरत होती है। स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता, महिला संस्‍थाएं, जन संचार माध्‍यम और कर्मचारी भी सहयोग उपलब्‍ध करवा सकते हैं।

स्‍तनपान के फायदों की सूचना तक प्रत्‍येक की पहुंच होनी चाहिए और इस सूचना को उपलब्‍ध करवाना प्रत्‍येक सरकार का कर्त्‍तव्‍य है।

स्‍तनपान मुख्‍य संदेश-१

केवल मां का दूध ही ऐसा खाद्य और पेय है जो शिशु के लिए शुरूआती छह महीनों में आवश्‍यक होता है। सामान्‍यतौर पर इस दौरान कोई अन्‍य खाद्य या पेय पदार्थ यहां तक कि पानी की भी आवश्‍यकता नहीं होती।

मां का दूध छोटे बच्‍चे के लिए सर्वोत्‍तम भोजन होता है जिसे वह ले सकता है। पशु का दूध, नवजात फॉर्मूला, पाउडर का दूध, चाय, मीठे पेय, पानी और ब्रेकफास्‍ट में लिए जाने वाले खाद्य मां के दूध की अपेक्षा कम पौष्टिक होते हैं।

मां का दूध बच्‍चे को आसानी से पच जाता है। यह सर्वोत्तम वृद्धि व विकास और बीमारियों के विरुद्ध प्रतिरक्षा प्रदान करता है।

गर्म और सूखे मौसम में भी मां के दूध से नवजात शिशु के लिए द्रव्‍य की जरूरत पूरी होती है। पानी और अन्‍य पेय पदार्थ शुरुआती छह महीनों के दौरान आवश्‍यक नहीं होते। शिशु को मां के दूध की अपेक्षा कोई भी अन्‍य खाद्य या पेय पदार्थ देना हैजा और अन्‍य बीमारियों के खतरे को बढ़ाता है।

मां के दूध के बदले में जो चीजें दी जाती हैं और जो पर्याप्‍त पोषक भी हों, वे अत्‍यन्‍त महंगी हैं। उदाहरण के लिए, एक साल में एक शिशु के खाने के लिए 40 किलो (लगभग 80 टिन) नवजात फॉर्मूले की आवश्‍यकता होती है। स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ताओं को उन सभी मां को जो मां के दूध के बदले अन्‍य चीजों के इस्‍तेमाल के बारे में सोच रही हों, उन चीजों की कीमतों के बारे में सूचना दे देनी चाहिए।

यदि नियमित वजन माप यह दिखाता है कि छह महीनों के लिए मां का दूध लेने वाला शिशु ठीक तरीके से वृद्धि नहीं कर रहा, तो:

बच्‍चे को थोड़े-थोड़े अंतराल पर अधिक बार स्‍तनपान की जरूरत हो सकती है। 24 घंटे के दौरान कम से कम 12 बार स्‍तनपान करवाना जरूरी हो सकता है। बच्‍चे को कम से कम 15 मिनट तक स्‍तनपान करवाना चाहिए।

  • बच्‍चे को मुंह के भीतर दूध लेने के लिए मां से सहायता की जरूरत हो सकती है।
  • बच्‍चा बीमार हो तो उसे प्रशिक्षित स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता के पास ले जाना चाहिए।
  • पानी और अन्‍य द्रव्‍य मां के दूध को लेने की मात्रा को कम कर सकते हैं।
  • मां को अन्‍य द्रव्‍य नहीं देने चाहिए और केवल स्‍तनपान ही करवाना चाहिए।

छह महीने से अधिक के किसी भी नवजात शिशु को अन्‍य खाद्य और पेयों की भी जरूरत होती है। जब तक बच्‍चा 2 साल या उससे अधिक का न हो जाए तब तक स्‍तनपान निरंतर करवाते रहना चाहिए।

स्‍तनपान मुख्‍य संदेश-२

एक खतरा यह रहता है कि एच.आई.वी संक्रमित महिला स्‍तनपान के जरिए अपने बच्चे को भी संक्रमित कर सकती हैं। जो महिला इससे संक्रमित हों या जिन्‍हें इससे संक्रमित होने की आशंका हो, उन्‍हें प्रशिक्षित स्‍वास्‍थ्‍य कर्मचारी से बच्‍चे को संक्रमित होने के खतरे को कम करने के लिए जाँच, काउंसलिंग और परामर्श लेनी चाहिए।

एच.आई.वी संक्रमण को दूर रखने के बारे में जानना प्रत्‍येक के लिए महत्‍वपूर्ण है। गर्भवती महिलाएं और नई माताओं को इस बारे में जागरूक रहना चाहिए कि यदि वे एच.आई.वी से संक्रमित हैं तो वे गर्भावस्‍था के दौरान अपने नवजात शिशु या जन्‍म के समय या स्‍तनपान के जरिये उसे संक्रमित कर सकती हैं।

संक्रमण को फैलाने के खतने से बचने का सबसे अच्‍छा तरीका इससे संक्रमित होने से बचना ही है। अनजान लोगों से यौन सम्‍बन्‍ध नहीं बनाकर एच.आई.वी के प्रसार के खतरे को कम किया जा सकता है, यदि संक्रमित साथी एक-दूसरे के साथ ही सम्‍बन्‍ध बनाएं, या यदि लोग सुरक्षित सम्‍बन्‍ध बनाएं- सावधानी के साथ या गर्भनिरोधक का इस्‍तेमाल कर सम्‍बन्‍ध बनाये तो इस बीमारी से बचा जा सकता है।

गर्भवती महिला और नई माताएं जो इससे संक्रमित हों या जिन्‍हें इससे संक्रमित होने की आशंका हो, उन्‍हें प्रशिक्षित स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता से जाँच, काउंसलिंग के लिए सलाह-मशविरा करना चाहिए।

स्‍तनपान मुख्‍य संदेश-३

नवजात शिशुओं को उनकी मां के पास रखना चाहिए और जन्‍म के एक घंटे के भीतर स्‍तनपान शुरू करवाना चाहिए।

एक नवजात शिशु को जितना संभव हो सके उतना मां के शरीर के सम्‍पर्क में रखना चाहिए। एक कमरे में या बिस्‍तर पर मां और शिशु के लिए एक साथ रहना सबसे अच्‍छा होता है। शिशु जितनी बार चाहे, उतनी बार उसे स्‍तनपान करवाना चाहिए।

जन्‍म के बाद बच्चे को जल्‍द से जल्‍द स्‍तनपान शुरू करवाने से दूध की मात्रा बढ़ती है। यह मां के गर्भाशय को संकुचित होने में मदद करता है, जो अधिक रक्‍तस्राव या संक्रमण के खतरे को कम कर देता है।

कोलोस्‍ट्रोम, गाढ़ा-पीला दूध, जो बच्‍चे के जन्‍म के शुरूआती कुछ दिनों में मां के स्‍तन से निकलता है, नवजात शिशु के लिए सर्वोत्‍तम होता है। यह अत्‍यधिक पौष्टिक होता है और शिशु की संक्रमणों से रक्षा करता है। कभी-कभी माताओं को अपने शिशुओं को कोलेस्‍ट्रोम न देने की सलाह दी जाती है। यह सलाह गलत है।

मां के दूध की सप्‍लाई के बढ़ने का इंतजार करते समय शिशु को किसी अन्‍य खाद्य या पेय पदार्थ की जरूरत नहीं होती।

यदि महिला अस्‍पताल या क्‍लीनिक में बच्चे को जन्‍म देती है तो उसे एक दिन के चौबीसों घंटे एक ही कमरे में बच्‍चे को अपने पास रखने की अपेक्षा करने का अधिकार होता है, और यदि वह स्‍तनपान करवा रही हो तो शिशु को काई फॉर्मूला या पानी देने की आवश्‍यकता नहीं होगी।

स्‍तनपान मुख्‍य संदेश-४

थोड़े-थोड़े समय पर स्‍तनपान करवाने से अधिक दूध बन सकता है। लगभग प्रत्‍येक मां सफलतापूर्वक स्‍तनपान करवा सकती है।

अधिकतर नई माताओं को स्‍तनपान शुरू करवाने में मदद या प्रोत्‍साहन की जरूरत होती है। अन्य महिलाएं जो सफलतापूर्वक स्‍तनपान करवा चुकी हों या परिवार के सदस्य, दोस्‍त या महिलाओं के स्‍तनपान सहयोग समूह की सदस्‍य माता को अनिश्चितता और कठिनाइयों को रोकने में मदद कर सकती हैं।

मां अपने शिशु को कैसे पकड़े और शिशु मुंह में स्‍तन को कैसे रखे बहुत महत्वपूर्ण है। सही अवस्‍था में शिशु को पकड़ना शिशु के लिए स्‍तन को अपने मुंह में लेने और चूसने को आरामदायक बनाता है।

स्‍तनपान के लिए शिशु के सही अवस्‍था में होने के कुछ संकेत:

  • शिशु का पूरा शरीर मां की तरफ मुड़ा हुआ हो।
  • शिशु माता के नजदीक हो।
  • शिशु आरामदायक अवस्‍था में और खुश हो।

गलत तरीके से शिशु को पकड़ना कुछ मुश्किलों का कारण बन सकता है जैसे:

  • निप्‍पल में दर्द होना और फट जाना।
  • पर्याप्‍त दूध न होना।
  • पीने से इनकार।

शिशु के अच्‍छी तरह से दूध पीने के संकेत:

  • शिशु का मुंह चौड़ाई में खुला हुआ हो।
  • शिशु की ठोढ़ी मां के स्‍तन के सम्‍पर्क में हो।
  • मां के निप्‍पल के चारों ओर वाली अधिकतर काली जगह शिशु के मुंह से नीचे की तुलना में ऊपर अधिक नजर आए।
  • शिशु द्वारा की जा रही चूषण क्रिया लम्‍बी और गहरी हो।
  • माता अपने निप्‍पल में कोई दर्द महसूस न करे।

लगभग प्रत्‍येक मां पर्याप्‍त दूध दे सकती है जब:

  • वह स्‍तनपान पूरा करवाती हो।
  • शिशु सही अवस्‍था में हो और निप्‍पल उसके मुंह में सही तरीके से हो।
  • शिशु जितनी बार चाहे और जितनी देर तक चाहे, रात में भी उतनी देर तक स्‍तनपान करवाती हो।

 

जन्‍म से ही शिशु जब भी चाहे उसे स्‍तनपान करवाना चाहिए। यदि नवजात शिशु स्‍तनपान करवाने के बाद तीन घंटे से अधिक की नींद लेता हो, तो उसे जगाकर दूध पिलाया जा सकता है।

  • शिशु का रोना यह संकेत नहीं करता कि उसे अन्‍य खाद्य या पेय पदार्थ की जरूरत है। इसका सामान्‍य सा अर्थ यह है कि शिशु और अधिक आपको पकड़े और आपके साथ लिपटे रहना चाहता है। कुछ शिशु को आराम के लिए स्‍तन चूसने की जरूरत होती है। अधिक चूसना अधिक दूध पैदा करेगा।
  • जिन मां को डर होता है कि वे पर्याप्‍त दूध नहीं दे पाएंगी, अक्‍सर जीवन के शुरुआती कुछ म‍हीनों में अपने शिशुओं को अन्‍य खाद्य या पेय पदार्थ देती हैं। लेकिन, इसका कारण शिशु द्वारा कम चूसना होता है, जिससे कम दूध बनता है। मां का दूध अधिक बनेगा यदि वह शिशु को अन्‍य खाद्य या पेय नहीं देगी और स्‍तनपान ही करवाएगी।
  • पेसिफियर्स, विकल्‍प या बोतल स्‍तनपान कर चुके शिशु को नहीं दिया जाना चाहिए क्‍योंकि उनको चूसने का तरीका स्‍तन से दूध पीने से काफी अलग होता है। पेसिफियर्स और बोतल का इस्‍तेमाल मां के दूध के कम बनने का कारण हो सकता है और शिशु स्‍तनपान कम कर सकता या छोड़ सकता है।
  • माताओं को निश्चिंत होने की आवश्‍यकता है कि वे अपने छोटे बच्‍चे को अपना दूध पूरी तरह पिला सकें। उन्‍हें बच्‍चे के पिता, उनके परिवारों, पड़ोसियों, दोस्‍तों और स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ताओं, कर्मचारियों और महिला संस्‍थाओं के सहयोग और प्रोत्‍साहन की जरूरत होती है।
  • स्‍तनपान एक महिला को आराम करने का अवसर उपलब्‍ध करवा सकता है। पिता और परिवार के अन्य सदस्‍य महिला द्वारा स्‍तनपान करवाने के दौरान उसे आराम करने के लिए प्रोत्‍साहित कर मदद कर सकते हैं। वे यह भी सुनिश्चित कर सकते हैं कि मां को पर्याप्‍त भोजन और घर के कामों में सहायता मिले।

 

स्‍तनपान मुख्‍य संदेश-५

स्‍तनपान शिशुओं और छोटे बच्‍चों को गंभीर बीमारियों से लड़ने में मदद करता है। यह मां और बच्‍चे के बीच एक विशिष्‍ट सम्‍बन्‍ध भी बनाता है।

मां का दूध बच्‍चे का 'पहला टीकाकरण' है। यह हैजा, कान और छाती के संक्रमण तथा अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है। जब शिशु को शुरुआती महीनों में केवल मां का दूध दिया जाए और दूसरे वर्ष या उससे अधिक समय तक स्‍तनपान जारी रहे तो यह प्रतिरोधक क्षमता गजब की होती है। अन्‍य कोई पेय और खाद्य पदार्थ ऐसी प्रतिरोधक क्षमता उपलब्‍ध नहीं करवा सकता।

आमतौर पर स्‍तनपान कर रहे शिशु, उन शिशुओं की अपेक्षा जो बोतल के भरोसे छोड़ दिये गये हैं अधिक ध्‍यान प्राप्‍त करते हैं। देखभाल नवजात की वृद्धि और विकास तथा उसे अधिक सुरक्षित महसूस करवाने में मदद करता है।

स्‍तनपान मुख्‍य संदेश-६

बच्चे को बोतल से दूध पिलाना बीमारी और मृत्‍यु की संभावना को बढ़ा सकता है। यदि एक महिला अपने नवजात शिशु को स्‍तनपान नहीं करवा सकती, तो बच्‍चे को मां के दूध के विकल्‍प को सामान्‍य साफ कप से देना चाहिए।

गंदी बोतलें और स्‍तनाग्र हैजा और कान के संक्रमण जैसी बीमारी का कारण बन सकते हैं। हैजा शिशुओं के लिए घातक हो सकता है। यदि बोतल को हर बार शिशु को दूध पिलाने से पहले उबले हुए पानी से साफ किया जाए और स्‍तनाग्र भी साफ हों, तो बीमारी का खतरा कम हो सकता है, लेकिन बोतल से पीने वाले शिशु स्‍तनपान कर रहे शिशुओं की अपेक्षा हैजा और अन्‍य सामान्‍य संक्रमणों के खतरे के प्रति ज्यादा अरक्षित होते हैं।

जो शिशु स्‍तनपान नहीं कर सकता उसके लिए सर्वोत्‍तम भोजन मां के स्‍तन से निकाला हुआ दूध या किसी अन्‍य स्‍वस्‍थ माता का दूध है। मां का दूध साफ और खुले कप में दिया जाना चाहिए।

यहां तक कि नवजात शिशु को भी खुले कप से पिलाया जा सकता है जो आसानी से साफ भी हो सकता है।

किसी भी शिशु के लिए जिसकी अपनी मां का दूध उपलब्‍ध नहीं है, उसके लिए किसी अन्‍य माता का दूध सर्वोत्‍तम भोजन है।

यदि मां का दूध उपलब्‍ध नहीं है, मां के दूध का एक पौष्टिक और पर्याप्‍त विकल्‍प कप द्वारा दिया जाना चाहिए। नवजात जिन्‍हें मां के दूध का विकल्‍प दिया गया हो, उन्‍हें स्‍तनपान किए हुए नवजात की अपेक्षा बीमारी और मृत्‍यु का गंभीर खतरा होता है।

शिशु को मां के दूध का विकल्‍प देना कम वृद्धि और बीमारी का कारण हो सकता है, यदि अधिक पानी या बहुत कम पानी उसमें मिलाया जाता हो या पानी साफ न हो। पानी को उबालना और फिर पानी को ठंडा करना तथा मां के दूध के विकल्‍प में सावधानीपर्वूक मिश्रित करने के लिए निर्देशों का पालन करना महत्‍वपूर्ण है।

पशु का दूध और नवजात फॉर्मूला खराब हो सकता है यदि उसे कुछ घंटों के लिए कमरे के तापमान में छोड़ दिया जाए। मां का दूध बिना खराब हुए कमरे के तापमान में आठ घंटे तक रखा जा सकता है। उसे साफ और ढके हुए बर्तन में रखें।

स्‍तनपान मुख्‍य संदेश-७

छह महीने बाद शिशु को विभिन्‍न पूरक भोजन की आवश्‍यकता होती है, लेकिन जब तक बच्‍चा 2 साल या उससे अधिक का न हो जाए तब तक स्‍तनपान निरंतर करवाते रहना चाहिए।

बच्‍चों के छह महीने के हो जाने पर हालांकि उन्‍हें पूरक भोजन की आवश्‍यकता होती है, लेकिन तब भी मां का दूध उर्जा, प्रोटीन और विटामिन ए और लौह पदार्थ जैसे अन्‍य महत्‍वपूर्ण पोषक तत्‍वों का एक महत्‍वपूर्ण स्रोत होता है। बच्‍चा जब तक स्‍तनपान करता रहता है, तब तक मां का दूध बीमारियों से लड़ने में उसकी सहायता करता है।

छह महीने से लेकर 1 वर्ष तक अन्‍य भोजन देने से पहले स्‍तनपान करवाया जाना चाहिए ताकि बच्‍चा प्रत्‍येक दिन पहले मां के दूध की पर्याप्‍त मात्रा प्राप्‍त कर लें। बच्‍चे के भोजन में छिलके समेत पकाई हुई और कुचली हुई सब्जियां, अनाज, दालें और फल, कुछ तेल के साथ मछली, अण्‍डे, मुर्गा, मीट या विटामिन और खनिज पदार्थ उपलब्ध करवाने वाले डेयरी के उत्‍पाद शामिल होने चाहिए। दूसरे वर्ष में स्‍तनपान, भोजन के बाद और अलग समय पर भी करवाया जाना चाहिए। मां जब तक बच्‍चा और वह चाहे, तब तक स्‍तनपान करवाना जारी रख सकती है।

पूरक भोजन के लिए सामान्‍य निर्देश:

6 महीने से 12 महीनों तक:

  • स्‍तनपान थोड़े-थोड़े अंतराल पर और एक दिन में अन्‍य भोजन तीन से पांच बार तक दें।

12 से 24 महीनों तक :

  • स्‍तनपान थोड़े-थोड़े अंतराल पर और परिवार के लिए बनने वाले भोजन को दिन में पांच बार दें।

24 महीनों से बाद के लिए :

  • यदि मां और बच्‍चा दोनों चाहते हैं, तो स्‍तनपान करवाना जारी रखें और बच्चे को परिवार के लिए बनने वाले भोजन को दिन में पांच बार दें।
  • जब बच्‍चे घुटनों के बल चलना, पैरों पर चलना, खेलना और मां के दूध की अपेक्षा अन्‍य खाद्य पदार्थ खाना शुरू करते हैं तो वे जल्‍दी-जल्‍दी बीमार हो जाते हैं। एक बीमार बच्‍चे को पर्याप्‍त मात्रा में मां का दूध चाहिए होता है। जब बच्‍चे की अन्‍य भोजन लेने की इच्‍छा नहीं करती, मां का दूध पौष्टिक, आसानी से पचने वाला भोजन होता है। जो बच्‍चा परेशान है, स्‍तनपान उस बच्‍चे को आराम दे सकता है।

स्‍तनपान मुख्‍य संदेश-८

घर से दूर एक कामकाजी महिला अपने बच्‍चे को स्‍तनपान करवाना जारी रख सकती है यदि वह जब संभव हो और जब वह शिशु के साथ हो, तब स्‍तनपान करवा सकती है।

यदि मां काम के घंटों के दौरान अपने शिशु के साथ नहीं रह सकती, तो उसे जब वे साथ हो तो बीच-बीच में स्‍तनपान करवाना चाहिए। थोड़े-थोड़े अंतराल पर स्‍तनपान करवाने से दूध अच्‍छी तरह बनता रहेगा।

यदि कोई महिला कार्यस्‍थल पर स्‍तनपान नहीं करवा सकती, तो उसे दिन में दो-तीन बार अपने दूध को किसी साफ बर्तन में निकाल लेना चाहिए। मां के दूध को कमरे के तापमान पर बिना खराब हुए आठ घंटों तक रखा जा सकता है। निकाला हुआ दूध बच्‍चे को साफ कप में दिया जा सकता है।

मां के दूध का वैकल्पिक पेय पदार्थ नहीं देना चाहिए।

परिवार और समुदाय मालिक को बिना वेतन काटे मातृ अवकाश, क्रैश, और समय तथा जहां महिलाएं स्‍तनपान करवा सकें या अपने दूध को निकाल कर सुरक्षित रख सकें, ऐसे स्‍थान उपलब्‍ध करवाने के लिए प्रोत्‍साहित कर सकते हैं।

स्‍तनपान मुख्‍य संदेश-९

स्‍तनपान एक महिला को कम से कम छह महीनों के लिए गर्भव‍ती न होने की 98 फीसदी सुरक्षा प्रदान करता है- लेकिन यह केवल तब, जब उसका मासिक-धर्म दोबारा शुरू न हुआ हो, यदि शिशु सुबह-शाम स्‍तनपान कर रहा हो, और यदि शिशु को अन्‍य कोई खाद्य और पेय पदार्थ या वैकल्पिक पेय न दिया गया हो।

जब तक बच्‍चा स्‍तनपान करता रहेगा, माता के मासिक धर्म की दोबारा शरुआत में उतना ही वक्‍त लगेगा। यदि मां 24 घंटे में आठ बार से कम बार स्‍तनपान करवाती है या अन्‍य खाद्य या पेय देती है, या पेसिफियर या वैकल्पिक पेय देती है, तो बच्‍चा कम मात्रा में दूध प्राप्‍त करेगा जो मां के मासिक धर्म को जल्‍द शुरुआत का कारण हो सकता है। यह संभव है कि उसके मासिक-चक्र के वापस आने से पहले ही वह फिर गर्भवती हो जाए। इसका खतरा जन्‍म के छह महीनों के बाद बढ़ता है।

एक महिला जो अगला बच्‍चा देरी से करने की इच्‍छा रखती है, उसे परिवार नियोजन का कोई अन्‍य तरीका चुनना चाहिए अगर निम्‍न में से कुछ भी हो गया हो:

  • उसके मासिक धर्म की दोबारा शुरुआत हो गई हो।
  • उसका बच्‍चा अन्‍य खाद्य या पेय ले रहा हो या पेसिफियर या वैकल्पिक पेय का इस्‍तेमाल कर रहा हो।
  • उसका बच्‍चा छह महीने का हो गया हो।

जब तक बच्‍चा दो साल या उससे अधिक का न हो जाए, तब तक महिला को दोबारा गर्भवती होने से बचना चाहिए, यह मां और बच्‍चे दोनों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए अच्‍छा है। सभी नये माता-पिता को स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता या प्रशिक्षित दाई द्वारा परिवार नियोजन की सलाह लेनी चाहिए।

गर्भावस्‍था को रोकने के अधिकतर उपाय मां के दूध की गुणवत्‍ता पर कोई प्रभाव नहीं डालते। हालांकि, कुछ ओस्‍ट्रेजन सहित कुछ गर्भनिरोधक गोलियां मां के दूध की मात्रा को घटा सकती हैं। प्रशिक्षित स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता स्‍तनपान करवा रही महिला के लिए सबसे अच्‍छी गर्भ-निरोधक के तरीके की सलाह उपलब्‍ध करवा सकता है।

Saturday, May 09, 2020

गर्भावस्था के दौरान स्वास्थ्य

गर्भावस्था के दौरान स्वास्थ्य

सुरक्षित मातृत्व सुनिश्चित करना

सुरक्षित मातृत्व का आशय यह सुनिश्चित करना है कि सभी महिलाओं को गर्भावस्था और बच्चा पैदा होने के दौरान आवश्यक जानकारी की सुविधा प्रदान की जाए। आई एस पी डी में उल्लिखित मातृत्व स्वास्थ्य सेवाएं इस प्रकार हैं:

  • सुरक्षित मातृत्व की शिक्षा
  • गर्भावस्था के दौरान विशेष ध्यान एवं प्रसव पूर्व देख-भाल और परामर्श देना
  • मातृत्व के लिए पौष्टिक आहार में वृद्धि करना
  • सभी मामलों में प्रसव के दौरान पर्याप्त सहायता
  • गर्भावस्था में निर्णय के लिए भेजे मामलों, बच्चा जन्म और गर्भपात की जटिलताओं सहित गर्भ विमोचन की आपात स्तिथि में सुविधा उपलब्ध कराना
  • बच्चे के जन्म से पूर्व सावधानियां

माताओं की मृत्यु के सामान्य कारण

मातृत्व मृत्यु के प्रमुख कारणों को तीन कोटियों में विभाजित किया जा सकता है-सामाजिक, चिकित्सकीय और स्वास्थ्य सावधानी सुविधाएं :

सामाजिक कारण

चिकित्सकीय

स्वास्थ्य सावधानी सुविधाओं की उपलब्धता

  • विवाह और गर्भधारण जल्दी होना
  • बार-बार बच्चा होना
  • बेटों को प्राथमिकता देना
  • रक्त की कमी
  • खतरों के संकेत और लक्षणों की जानकारी की कमी
  • विशेषज्ञों के पास भेजने में विलंब
  • प्रसव वेदना में रूकावट
  • रक्त स्राव (प्रसव से पूर्व और प्रसव के बाद)
  • टोक्सेमिया
  • संक्रमण या सेप्सिस
  • केंद्र में आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई और प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मचारियों की कमी
  • स्वास्थ्य-कर्मियों में सद्भाव की कमी
  • जटिलताओं की चिकित्सा में कमी
  • चिकित्सा-कर्मियों द्वारा अपर्याप्त कार्रवाई करना

प्रसव पूर्व सावधानी


प्रसव पूर्व देखभाल का संबंध गर्भवती महिलाओं को दी जाने वाली स्वास्थ्य की जानकारी और नियमित चिकित्सा जांच से होता है जिससे कि प्रसव सुरक्षित हो सके। मातृत्व अस्वस्थता और मातृ मृत्यु के मामलों की पहले ही जांच और चिकित्सा कर इन मामलों में कमी लायी जा सकती है। गंभीर खतरों वाली गर्भावस्था और उच्च प्रसव वेदना की छानबीन के लिए प्रसब पूर्ब जाँच (ए एन सी) भी आवश्यक है। प्रसव पूर्व सावधानी के महत्वपूर्ण अंगों पर आगे विचार किया जा रहा हैः

समय-पूर्व पंजीकरण
जैसे ही गर्भाधान की संभावना का पता चले, गर्भवती महिला को प्रसव पूर्व देखभाल के लिए पहली बार जाकर नाम दर्ज कराना चाहिए। प्रजनन आयु की प्रत्येक विवाहित महिला को स्वास्थ्य केन्द्र में जाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए अथवा महिला के स्वयं गर्भवती महसूस करने पर इसकी सूचना देनी चाहिए। आदर्श रूप में पहली बार गर्भाधान की प्रथम तिमाही (गर्भाधान की प्रथम तिमाही) अथवा 12 सप्ताह से पहले स्वास्थ्य केन्द्र पर जाना चाहिए। तथापि, यदि कोई महिला गर्भाधान की आखिरी अवधि में केंद्र पर आती है तो उसको पंजीकरण कर लेना चाहिए और गर्भाधान की आयु के अनुसार सहायता मुहैया करानी चाहिए।

समय-पूर्व पंजीकरण का महत्व

  • मां के स्वास्थ्य का आकलन तथा रक्तचाप और वजन आदि के संबंध में आधारभूत जानकारी प्राप्त की जा सके।
  • जटिलताओं से शीघ्र निपटा जा सके तथा आवश्यक होने पर निर्णय के लिए भेजकर समुचित प्रबंध किया जा सके।
  • महिला को अपने मासिक-धर्म की अवधि की तारीख याद करने में सहायता करनी  चाहिए।
  • महिला को टी टी इंजेक्शन की पहली खुराक समय के अंदर ही देनी चाहिए (गर्भाधान के 12 सप्ताह के अंदर)
  • शीघ्र और सुरक्षित गर्भपात की सुविधाओं के लिए सहायता करें (यदि महिला गर्भ नहीं रखना चाहती हो)

स्वास्थ्य परीक्षा

वजनः

जब भी गर्भवती महिला स्वास्थ्य परीक्षा के लिए जाती है तो उसके वजन की जांच करनी चाहिए। सामान्यतया गर्भवती महिला का वजन 9 से 11 कि. ग्राम तक बढ़ जाना चाहिए। पहली तिमाही के पश्चात गर्भवती महिला का वजन 2 किलो ग्राम प्रति माह अथवा 0.5 प्रति सप्ताह बढ़ना चाहिए। यदि आवश्यक कैलोरी की मात्रा से खुराक पर्याप्त नहीं हो तो महिला अपनी गर्भावस्था के दौरान 5 से 6 किलो ग्राम वजन ही बढ़ा सकती है।  यदि महिला का वजन प्रतिमाह 2 किलो ग्राम से कम बढ़ता हो, तो अपर्याप्त खुराक समझनी चाहिए। उसके लिए अतिरिक्त खाद्य आवश्यक होता है। वजन कम बढ़ने से गर्भाशय के अंदर गड़बड़ी का अंदेशा होता है और वह कम वजन वाले बच्चे के जन्म में परिणत होता है। अधिक वजन बढ़ने (> 3 किलो ग्राम प्रतिमाह) से प्री एक्लेम्पसिया/जुड़वां बच्चों की संभावना समझनी चाहिए। उसको चिकित्सा अधिकारी के पास जाँच के लिए भेजना चाहिए।

ऊंचाईः
मातृवंश और प्रसव परिणाम के बीच संबंध है, कम से कम कुछ अंश तक क्योंकि बहुत ही कम ऊंचाई वाली स्त्री की श्रोणि (पेल्विस) छोटी होने के कारण इसका जोखिम बढ़ जाता है। ऐसी स्त्रियां जिनकी ऊंचाई 145 सेंटी मीटर से कम होती है, उनमें प्रसव के समय असामान्यता होने की अधिक संभावना होती है और अति खतरा संवेदी महिला समझी जाती है तथा उसके लिए अस्पताल में ही प्रसव की सिफारिश की जाती है।

रक्त चापः
गर्भवती महिला के रक्तचाप की जाँच बहुत ही महत्वपूर्ण होता है जिससे कि गर्भाधान के दौरान अति तनाव का विकार न होने पाए। यदि रक्तचाप उच्च हो (140-90 से अधिक अथवा 90 एमएम से अधिक डायलेटेशन) और मूत्र में अल्बूमिन की मात्रा पाई जाए तो महिला को प्री-एक्लेम्पसिया कोटि में मान लेना चाहिए। यदि डायास्टोलिक की मात्रा 110 एम एम एच जी से अधिक हो तो उसे तत्काल गंभीर बीमारी की निशानी माना जाएगा। इस प्रकार की महिला को तत्काल सीएचसी/एफ आर यू में जाँच के लिए भेज देना चाहिए। गर्भवती महिला जो कि तनाव (पी आई एच) / पी एकलेम्पसिया से प्रभावित हो उसको अस्पताल में प्रवेश कराने की आवश्यकता होती है।

पैलोरः
यदि महिला के निचले पलक की जोड़, हथेली और नाखून, मुंह का कफ और जीभ पीले हों तो उससे यह संकेत मिलता है कि महिला में खून की कमी है।

श्वसन क्रिया की दर (आर आर):
विशेषरूप से यदि महिला सांस न ले सकने की शिकायत करती हो तो श्वसन क्रिया की जांच करना अति महत्वपूर्ण है। यदि श्वसन क्रिया 30 सांस प्रति मिनट से अधिक हो और कफ उत्पन्न होता हो तो यह संकेत मिलता है कि महिला को खून की भारी कमी है तथा उसे डॉक्टर के पास जांच के लिए भेजना अत्यावश्यक है।

सामान्य सूजनः
चेहरे पर सांस फूलने को सामान्य सूजन होना माना जाता है तथा इससे प्री एक्लेम्पसिया होने की संभावना समझनी चाहिए।

उदरीय परीक्षाः
गर्भ और भ्रूण में वृद्धि और भ्रूण न होने तथा होने पर निगरानी रखने के लिए उदरीय परीक्षा करनी चाहिए।

लौह फोलिक अम्ल (आई एफ ए) की आपूर्तिः
गर्भवती महिलाओं को खून की कमी के खतरों से बचाने के लिए गर्भावस्था के दौरान अधिकाधिक लौह की आवश्यकता पर जोर डालें। सभी गर्भवती महिलाओं को गर्भाधान के बाद की पहली तिमाही अर्थात 14 से 16 सप्ताह से प्रतिदिन आई एफ ए (100 एम जी मौलिक लौह और 0.5 एम जी फोलिक एसिड) की एक गोली 100 दिन तक देने की आवश्यकता होती है। आई एफ ए की यह मात्रा (प्रोफाइलेक्टिक खुराक) खून की कमी को रोकने के लिए दी जाती है। यदि किसी महिला में खून की कमी हो (एच बी<जी/डीएल) या उसको पैलोर हो तो उसे तीन माह तक आई एफ ए की 2 गोलियों की मात्रा प्रतिदिन देते रहें। इसका यह आशय हुआ कि गर्भवती महिला को गर्भावस्था के दौरान आई एफ ए की कम से कम 200 गोलियां देने की आवश्यकता होती है। आई एफ ए गोलियों की यह मात्रा अत्यधिक खून की कमी वाली(एच बी<7जी/डीएल) अथवा सांस न ले सकने वाली और खून की कमी के कारण चिड़-चिड़ाहट महसूस करने वाली महिलाओं को (स्वास्थ्यकर मात्रा) स्वस्थ बनाने के लिए आवश्यक होती है। इन महिलाओं को आई एफ ए की स्वास्थकर मात्रा आरंभ कर और आगे अगली देखभाल के लिए संबद्ध डॉक्टर के पास सलाह के लिए भेजना चाहिए।

टेटनस टोक्साईड का इंजेक्शन देनाः
नवजात शिशु की टेटनस से रोकथाम के लिए टी टी इंजेक्शन की 2 मात्रा देना बहुत ही महत्वपूर्ण है। टी-टी इंजेक्शन की पहली खुराक पहली तिमाही के ठीक बाद में या जैसे ही कोई महिला ए एन सी के लिए अपना नाम दर्ज कराए, जो भी बाद में हो, देनी चाहिए।  गर्भाधान की पहली तिमाही के दौरान टी टी इंजेक्शन नहीं देना चाहिए। पहली खुराक के एक माह बाद ही अगली इंजेक्शन की खुराक देनी चाहिए किंतु ई डी डी से एक माह पहले ही।

गर्भावस्था के दौरान पौष्टिक भोजन

गर्भावस्था के दौरान महिला की खुराक इस प्रकार होनी चाहिए, जिससे बढ़ रहे भ्रूण, मां के स्वास्थ्य का रख - रखाव, प्रसव के दौरान आवश्यक शारीरिक स्वास्थ्य और सफल स्तन-पान कराने की क्रिया के लिए आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकेः

  • भ्रूण के लिए प्रोटीनयुक्त आहार अनिवार्य होता है। यदि संभव हो तो गर्भवती महिला को पर्याप्त मात्रा में दूध, अंडे, मछली, पॉल्ट्री उत्पाद और मांस का सेवन करना चाहिए। यदि वह शाकाहारी हो तो उसे विभिन्न अनाजों तथा दालों का प्रयोग करना होगा।
  • खून की कमी न होने पाए, इसलिए शिशु में रक्त वृद्धि के लिए लौह अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मां को चीनी के स्थान पर गुड़ का प्रयोग करना चाहिए, बाजरे से बने खाद्यों को खाना चाहिए, साथ ही तिल के बीज और गहरी हरी पत्तियों वाली सब्जी का भरपूर प्रयोग करना चाहिए।
  • शिशु की हड्डियों और दांतो की वृद्धि के लिए कैल्सियम आवश्यक है। दूध कैल्सियम का अति उत्तम स्रोत है। रागी और बाजरे में भी कैल्सियम उपलब्ध होता है। उसको छोटी सूखी मछली खाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
  • गर्भवती महिलाओं के लिए विटामिन महत्वपूर्ण होती है। उसको साग-सब्जियों का भरपूर प्रयोग (विशेष रूप से गहरी हरी पत्तियों वाली) करना चाहिए और खट्टे प्रकार के फलों सहित फलों का प्रयोग करना चाहिए।

संशोधित भोजनः
1. सूजन में कमी लाने के लिए कम नमक वाले भोजन लेने चाहिए। महिला सामान्य भोजन खा सकती है किंतु नमकीन या नमक रहित पकाना चाहिए।
2. प्री एक्लेम्पसिया, विशेष रूप से मूत्र में अलबूमिन पाए जाने पर उच्च प्रोटीन युक्त खुराक लेनी चाहिए।  गर्भवती महिला को अपनी प्रोटीनयुक्त खुराक बढ़ाने की सलाह देनी चाहिए।

कार्यभार, विश्राम और नींद

बहुत सी महिलाएं गर्भवती होने पर कड़ी मेहनत या पहले से भी अधिक कड़ी मेहनत से काम करना जारी रखती है। अत्यधिक शारीरिक श्रम के वजह से गर्भपात, अपरिपक्व प्रसूति या कम वजन वाले शिशु (विशेष रूप से जबकि महिला पर्याप्त भोजन न कर रही हो) पैदा होने की संभावना रहती है। गर्भवती महिला को यथासंभव भरपूर विश्राम करना चाहिए। दिन के समय उसको लेटकर कम से कम एक घंटे का विश्राम करना चाहिए तथा प्रत्येक रात में 6 से 10 घंटे सोना चाहिए। करवट के बल सोना हमेशा आरामदायक होता है तथा इससे पल रहे शिशु को रक्त की आपूर्ति में वृद्धि होती है।

गर्भावस्था के दौरान उत्पन्न होने वाले लक्षण

निम्नलिखित लक्षणों से असुविधा होती है और जटिलताओं के संकेत हैं:

असुविधा सूचक लक्षण

जटिलता सूचक लक्षण

  • मिचली और उल्टी होना
  • हृदय में जलन
  • कब्ज
  • बार बार पेशाब आना
  • बुखार
  • योनि से स्राव
  • धड़कन तेज होना, आराम के दौरान भी थकावट होना या सांस तेज चलना
  • सामान्य रूप से शरीर फूल जाना, चेहरा फूल जाना
  • पेशाब कम मात्रा में आना
  • योनि से रक्त स्राव होना
  • भ्रूण की गति कम होना अथवा नहीं होना
  • योनि द्वार से तरल पदार्थ का रिसाव

बीमारी

गर्भावस्था के दौरान बीमार पड़ना असुविधाजनक और अरुचिकर होता है क्योंकि गर्भावस्था अपने आप में असुविधाजनक होता है और गर्भावस्था के दौरान कुछ दवाइयां वर्जित होती है। इसके अतिरिक्त मलेरिया जैसी कुछ बीमारियां गर्भावस्था के दौरान गंभीर समस्याएं पैदा कर देती है। इन्हीं कारणों से गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को बीमारियों और संक्रमण से बचने के लिए विशेष सावधान रहने की आवश्यकता होती है। उदारहण के लिए उन्हें सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए तथा ऐसे पानी का उपयोग नहीं करना चाहिए जिससे सिस्टोसोमियासिस जैसी बीमारी होती हो।

व्यक्तिगत साफ-सफाई

प्रतिदिन स्नान करने से ताजगी आती है तथा इससे संक्रमित होने अथवा बीमार पड़ने से बचा जा सकता है। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि स्तनों और जननेंन्द्रिय गुप्तांगों की स्वच्छ पानी से बार-बार सफाई की जाए। रुक्ष रासायनिकों तथा प्रक्षालकों  की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि वे हानि कारक भी हो सकते हैं। सूती हल्के फुल्के ढीले-ढाले कपड़ों का प्रयोग उचित होता है। सही आकार की चोलियां स्तनों को सहारा पहुंचाती हैं, क्योंकि स्तन बड़े और मुलायम हो जाते हैं।

गर्भावस्था के दौरान संभोग

संपूर्ण गर्भावस्था के दौरान संभोग सुरक्षित होता है बशर्तें कि गर्भावस्था सामान्य हो।  गर्भावस्था के दौरान संभोग से तब बचकर रहना चाहिए जबकि गर्भपात होने का खतरा हो (पहले लगातार गर्भपात हो चुके हों) या समय से पूर्व प्रसव होने की संभावना हो (अर्थात पहले समय से पूर्व प्रसव हो चुके हों)।

प्रसव पूर्व तथा जटिलता के लिए तैयारी

प्रसव के दौरान होने वाली अधिकांश जटिलताओं के विषय में पहले से ही कुछ कहा नहीं जा सकता है। अतः प्रत्येक गर्भावस्था में किसी भी संभावित आपात स्थिति के लिए तैयारी की आवश्यकता होती है।

प्रसव की तैयारी

सभी गर्भिणी महिलाओं को किसी संस्थागत प्रसव के लिए ही प्रोत्साहित करना चाहिए।  प्रसव के दौरान कोई भी जटिलता हो सकती है, जटिलताओं के विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता, उनसे जच्चा और/या बच्चा दोनों की जान जा सकती है।

प्रसव के संकेतः
निम्नलिखित संकेतों में से कोई भी संकेत मिलने पर महिला को स्वास्थ्य सुविधा यूनिट में जाने की सलाह देनी चाहिए क्योंकि इनसे प्रसव आरंभ होने का संकेत मिलता है -

  • जननेंन्द्रिय मार्ग से खून मिला द्रव आना
  • 20 मिनट अथवा इससे कम समय पर आंतों में दर्द से संकुचन
  • पानी की थैली फट चुकी हो तथा योनि मार्ग से साफ द्रव बह रहा हो।

जोखिम से निपटने की लिए तैयारी

खतरे के संकेतः
महिला को निम्नलिखित में से कोई भी स्थिति होने पर एफ आर यू में जाना चाहिएः

  • गर्भावस्था के दौरान योनि मार्ग से किसी तरह का रक्त स्राव तथा प्रसव के दौरान और प्रसव के बाद भारी रक्त स्राव (>500 एम एल)
  • धुंधला दिखाई देने के साथ-साथ तेज सिर दर्द
  • ऐंठन होना अथवा होश खो बैठना
  • प्रसव में 12 घंटे से अधिक समय लगना
  • प्रसव उपरान्त 30 मिनट के अंदर पुरइन बाहर न आना
  • समय से पूर्व प्रसव (8 महीने से पहले प्रसव आरंभ होना)
  • अपरिपक्व अथवा प्रसव पूर्व झिल्ली का फटना
  • उदर में लगातार तेज दर्द होना

पी.एच.सी.

महिला को निम्नलिखित में से कोई भी स्थिति होने पर उसे 24 घंटे सेवा पी.एच.सी में ले जाना चाहिए

  • पेट दर्द सहित या रहित तेज बुखार होने तथा पलंग से उठने में बहुत ही कमजोरी महसूस करना
  • सांसों का तेजी से आना या उसमें कठिनाई होना
  • भ्रूण संचरण में कमी होना या न होना
  • अधिक मात्रा में उल्टियां होना जिससे कि महिला कुछ भी खाने में असमर्थ हो जिसके परिणामस्वरूप पेशाब कम हो।

रक्तदान के लिए तैयारी

माता की मृत्यु में प्रसव पूर्व और प्रसवोत्तर रक्तस्राव एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारण है। ऐसे मामलों में रक्त संचारण कराना जीवन रक्षक साबित हो सकता है। रक्त खरीदा नहीं जा सकता है। रक्त संचारण के लिए रक्त जारी करने से पूर्व स्वैच्छिक रक्तदानकर्ता की आवश्यकता होती है जिससे कि आवश्यकता पड़ने पर उसका रक्त दिया जा सके। इस प्रकार के रक्तदानकर्ता (2 या 3 संख्या) तैयार होने चाहिए जिससे कि आवश्यकता की पूर्ति की जा सके।

प्रजननोत्तर सावधानीः
अनुसंधान से मालूम हुआ है कि 50 प्रतिशत से अधिक माता की मृत्यु प्रसवोत्तर काल में ही होती है। परंपरागत रूप से प्रसव के उपरांत पहले 42 दिन ( 6 सप्ताह) को प्रसवोत्तर काल माना जाता है। इसमें से पहले 48 घंटे तथा बाद का एक सप्ताह मां तथा उसके नवजात शिशु के स्वास्थ्य तथा जीवन के लिए अत्यंत संकटकालीन होता है। इसी अवधि में माता और नवजात शिशु के लिए प्राण-घातक तथा मरणासन्न जटिलताएं उत्पन्न होती है। माता और शिशु स्वास्थ्य रख-रखाव के सभी अवयवों में से प्रसवोत्तर देखभाल तथा नवजात शिशु की देखभाल में अत्यंत अवहेलना होती है। भारत में प्रसवोत्तर अवधि के दौरान 6 में से केवल 1 महिला को ही देखभाल की सुविधा उपलब्ध हो पाती है। (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एन.एफ.एच.एस.) के आंकड़ों से यह संकेत मिलता है कि घर पर ही प्रसव करने वाली महिलाओं में से केवल 17 प्रतिशत की प्रसवोत्तर जांच दो माह के अंदर हो पाती है। इसके अतिरिक्त घर पर ही प्रसव करने वाली महिलाओं में केवल 2 प्रतिशत को ही प्रसवोपरांत दो दिन के अंदर प्रसवोत्तर देखभाल की सुविधा सुलभ हो सकी है तथा 5 प्रतिशत को 7 दिन के अंदर यह सुविधा उपलब्ध हो सकी है। साथ ही, महिलाओं के इस न्यून भाग से भी अधिकांश महिलाओं को ऐसी समूची सूचना तथा सेवाएँ उपलब्ध नहीं करायी जा सकी थी जो कि प्रसवोतर जांच के दौरान आने वाली महिलाओं को उपलब्ध कराना अनिवार्य था।

प्रसव के पश्चात महिला को शारीरिक और भावनात्मक समंजन करना पड़ता है और इसके लिए सहारे तथा समझ की आवश्यकता होती है। इस प्रकार के प्रसव प्यूरपरल सेपासिस अथवा गर्भाशय के आस-पास ऊतक (टिश्यू) के खराब होने, मूत्र संक्रमण, श्रोणि में चोट लगना तथा प्रसवोत्तर मनोविकारी बीमारी के कुछ चिकित्सीय रोग के मामले सामने आये हैं। यह महत्वपूर्ण है कि इन रोगों की शीघ्रता-शीघ्र जांच-परख कर उनका इलाज किया जाए क्योंकि इनमें से कुछेक जटिलताएं अधिक जानलेवा हो सकती है।

प्रसवोपरान्त-शारीरिक और भावनात्मक परिवर्तन

प्रसवोपरान्त 6 सप्ताह के दौरान मां को अनेक शारीरिक और भावनात्मक परिवर्तनों का अनुभव होता है

  • गर्भाधारण और दर्द के तनाव के बाद मां को उदासी तथा आंसू आ सकते हैं।
  • उसके आन्तरिक अंग विशेषकर बच्चादानी सामान्य आकार में आना।
  • प्रसव के बाद लगभग चार सप्ताह के बाद बच्चादानी से रिसने वाले रक्त तथा अन्य द्रवों का रंग धीरे धीरे लाल रंग से पीले क्रीम के समान होने लगे अथवा बिल्कुल ही बंद हो जाए।
  • यदि माँ स्तनपान नहीं कराती है तो 4 से 6 सप्ताह के अंदर माहवारी फिर से आरंभ होती है-अथवा मां के स्तनपान कराने पर कई और माह के बाद।

संभावित ज़ोखिम :
प्रसव उपरान्त की अवधि में तीन प्रकार की गंभीर जटिलताएं पैदा हो सकती है:
एक्लेम्पसिया (प्रसव के बाद पहले दो दिन या 48 घंटे के अंदर) संक्रमण और रक्त स्राव (तेज रक्त स्राव)। संक्रमण, प्रायः दीर्घकालीन प्रसव वेदना या कोशिकाओं के समय से पहले भंग होने के परिणामस्वरूप होता है। प्रसव के दौरान साफ-सफाई की कमी के परिणामस्वरूप भी ऐसा हो सकता है (जैसा कि प्रसूति परिचर के हाथ अथवा उपकरण साफ न हो) या सीजेरियन सेक्शन के बाद भी ऐसा हो सकता है। गंभीर संक्रमण के चिह्न बुखार, सिरदर्द, पेट के निचले हिस्से में दर्द होना, योनि के रिसाव से बदबू आना तथा उल्टी व दस्त होना। ये खतरनाक चिह्न होते हैं। यदि किसी महिला में ये लक्षण हों तो उसे तुरंत क्लिनिक या अस्पताल में जाना चाहिए। रक्तस्राव प्रसव के बाद दस या इससे अधिक दिनों के बाद हो सकता है। प्रसव के बाद यदि पुरइन संपूर्ण रूप से बाहर नहीं आती है तो रक्तस्राव जारी रह सकता है तथा भारी मात्रा में हो सकता है। लोचिया जननेंद्रिया से होने वाला रक्तस्राव होता है। पहले यह शुद्ध रक्त होता है, बाद में पीलापन आता है, कम होने लगता है और अंत में जोखिम पैदा करता है जो कि प्रसव के उपरांत पैदा होती है, जैसे कि खून की कमी और नासूर पैदा हो जाना। नासूर के रूप में छिद्र होते हैं जो कि जननेंद्रिय और पेशाब के रास्ते अथवा मलाशय के बीच होते हैं।

गंभीर जटिलताएं, प्रसवोत्तर खतरा चिह्नः
बच्चे के जन्म के पश्चात किसी महिला को यदि निम्नलिखित खतरे का चिह्न दिखाई दे तो उसे शीघ्र ही देखभाल करानी चाहिएः

  • बेहोश होना, दौरा पड़ना या ऐंठन होना
  • रक्त-स्राव घटने के स्थान पर बढ़ता हो या उसके अंदर बड़ी-बड़ी गांठे या कोशिकाएं आती हो
  • बुखार
  • उदर में तेज दर्द या बढ़ने वाला दर्द हो
  • उल्टी और अतिसार
  • रक्तस्राव या जननेंद्रिय से तरल पदार्थ आना, जिससे बदबू आती हो
  • छाती में तेज दर्द अथवा सांस लेने में तकलीफ हो
  • पैर या स्तनों में दर्द, सूजन और/या लाल होना
  • दर्द, सूजन, लाली और /या कटान के स्थान पर रक्तस्राव (यदि किसी महिला को कटान या सीजेरियन ऑपरेशन हुआ हो)
  • मूत्र या मल जननेंद्रिय के मार्ग से निकलना (मल विसर्जन के समय)
  • मूत्र विसर्जन के समय दर्द होना
  • मसूड़ों, पलकों, जीभ या हथेलियों में पीलापन

प्रसवोत्तर क्लिनिक में जाना

नयी मां को अपने प्रथम प्रसवोत्तर जांच के लिए प्रसवोपरांत 7 से 10 दिन के अंदर स्वास्थ्य सुविधा क्लिनिक में जाना चाहिए अथवा किसी स्वास्थ्य कार्यकर्ता को घर पर ही आना चाहिए। यदि उसका प्रसव घर पर ही हुआ हो तो यही सही रहता है। पहली जांच के लिए जाना इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मां और शिशु दोनों (जच्चा- बच्चा) प्रसव और पीड़ा से उबर रहे हैं।  यदि सभी कुछ ठीक-ठाक हो तो अगली जांच बच्चा पैदा होने से 6 सप्ताह बाद होनी चाहिए। जच्चा-बच्चा दोनों की पूरी तरह शारीरिक स्वास्थ्य परीक्षा करनी चाहिए और बच्चे का असंक्रमीकरण कराना चाहिए।  इसके अतिरिक्त स्तनपान, संभोग संबंध, परिवार नियोजन और बच्चे के असंक्रमीकरण या अन्य विषयों के संबंध में महिला द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने का यह एक अति उत्तम अवसर होता है।

खान-पान और विश्राम

बच्चे के जन्म के पश्चात, महिलाओं को उनकी शक्ति पुनः प्राप्त करने और प्रसव पीड़ा तथा प्रसव से उबरने के लिए अच्छे खान-पान की आवश्यकता होती है। खून की कमी न होने पाए इसलिए उनको लौह (आयरन) गोलियां लेते रहना चाहिए, विशेषकर जबकि प्रसव के दौरान खून बह गया हो। यदि कोई महिला स्तन पान कराती है तो उसके भोजन में अतिरिक्त खाद्य और पीने की व्यवस्था होनी चाहिए। स्तन-पान कराने वाली महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान खाने से भी कहीं अधिक भोजन की आवश्यकता होती है क्योंकि स्तन-पान कराने से स्वास्थ्य-वर्धक(मातृ-शिशु रक्षा कार्ड) संचयन की मांग होती है। कैलोरी, प्रोटीन, लौह, विटामिन तथा अन्य सूक्ष्म पौष्टिक पदार्थों से युक्त भोजन खाना चाहिए। उदाहरण के लिए दालें, दूध तथा दूध से बने पदार्थ हरी पत्तियों वाली सब्जियां तथा अन्य सब्जियां, फल, मुर्ग उत्पाद, मांस, अंडा और मछली। प्रसव के तुरंत बाद तथा पुरइन गिरने के दौरान वर्जित भोजन पदार्थों की संख्या गर्भावस्था के दौरान से कहीं अधिक होती है। इनको प्रोत्साहन नहीं देना चाहिए। उनको यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वे तरल पदार्थ अधिक मात्रा में लें। महिलाओं को प्रसवोत्तर अवधि में पर्याप्त विश्राम की आवश्यकता होती है जिससे कि वे अपनी शक्ति पुनः प्राप्त कर सके।  उसको, उसके पति तथा परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा यह परामर्श देना चाहिए कि उसको अपना तथा बच्चे की देखभाल के अतिरिक्त कोई अन्य भारी कार्य नहीं करना है।

साफ-सफाई

महिला को सलाह दें तथा स्पष्ट करें कि जननेंद्रिय में कोई वस्तु न डालें तथा मल निकलने के पश्चात मूलाधार को प्रतिदिन अच्छी तरह साफ करें। यदि पुरइन अधिक आ रही हो तो मूलाधार पैड को प्रति 4 से 6 घंटे के अंदर बदल देना चाहिए। यदि कपड़े के पैड का प्रयोग किया जाए तो पैड को पर्याप्त साबुन पानी से साफ करना चाहिए तथा धूप में सुखाया जाना चाहिए। उसको नियमित स्नान करने की सलाह दी जाए तथा बच्चे को हाथों में लेने से पहले साबुन से हाथ धो लिया जाए।

Friday, May 08, 2020

गर्भधारण, प्रसव और प्रसव बाद माँ-बच्चे का स्वस्थ्य

गर्भधारण, प्रसव और प्रसव बाद माँ-बच्चे का स्वास्थ्य
माहवारी
  • ज्यादातर लड़कीयों को ग्यारह – सोलह साल के बीच मासिक धर्म शुरू हो जाता है
  • मासिक धर्म शुरू होने का मतलब है की वह लड़की अब माँ बन सकती है
  • मासिक धर्म सामान्य तौर पर करीब अठाईस दिनों के बाद आता है
  • यह अवधि बैएस दिनों या पैंतीस दिनों की भी हो सकती है|
  • मासिक धरम में खून का बहाव तीन से छ दिनों तक रहता है|  करीब आधा कप खून का बहाव होता है|

मासिक धरम कैसे होता है

  • मासिक धरम एक चक्र है
  • गर्भाशय के अन्दर गर्भधारण के लिए अंडा आकर गर्भाशय की दीवार से चिपक जाता है|
  • अगर यह गर्भधारण करने लायक होता है तो विकसित होकर नौ महीने में बच्चा बन जाता है
  • और अगर गर्भ धरण नहीं करता है तो दीवार पर जमें खून और बिना गर्भ धरण की ए अंडा सहित बेकार होकर योनी के रास्ते बाहर आ जाता है|
  • यह अंडा तीन – चार दिनों बाद खतम हो जाता है
  • यह एक सामान्य तरीका है जो लड़की यों और महिलाओं में हर महीने होता है|
  • मासिक धर्म के दौरान अलग-अलग तरह के हार्मोन्स अलग-अलग तरह के बदलाव लाते हैं
  • यह बदलाव दिमाग द्वारा गर्भाशय और अंडाशय में होते हैं|

अंडाशय पर असर डालने वाले हार्मोन्स

  • हार्मोन्स के कारण ही अंडाशय में अंड या विंव विकसित होते हैं
  • बहुत सारे अंडे बनते हैं लेकी न एक ही गर्भाशय तक पहुंचता है| इसे अन्दोगर्ग यानि बच्चा बनाने लायक होता है|
  • यह क्रिया मासिक धरम शुरू होने के चौदह दिनों पहले होता है
  • जब अंडा विकसित होता है तो संभोग के दौरान लड़की या महिला गर्भ धारण कर सकती है|
  • अंडा के विकसित होने के समय कुछ लडकी यां या महिलाओं में पेट के नीचे दर्द होता है|  हालांकी यह दर्द बहुत देर तक नहीं रहता है|

गर्भाशय में हार्मोन्स का असर

  • हार्मोन्स के कारण दीवार पर जमने वाली परत मोटी हो जाती है
  • खून की नालियां भी मोटी और दोहरी हो जाती हैं
  • दीवारें मोटी होने से गर्भाशय इस लायक हो जाता है की बच्चा ठीक से पले, बढे|
  • अगर गर्भ नहीं होता है तो खून की नालियां और शिराएँ अपनी जगह से हटने लगती है और योनी से खून निकलता है जिसे महावारी या मासिक धरम कहते हैं|

मासिक धरम के समय अपनी देखभाल

  • सफाई रखना, साफ पैड या कपड़े का इस्तेमाल
  • खूब सोना
  • सेहतमंद भोजन
  • रोज नहाना
  • घर का काम करते रहना
  • मासिक धरम कोई गन्दी प्रक्रिया नहीं है, पूरी सफाई की जरूरत होती है|

मासिक धरम के समय बदलाव

भावनात्मक                           शारीरिक

- चिडचिडापन                               - पेट के निचले भाग में असुविधा होना

- जल्दी उत्तेजना में आना                     - सूजन या दर्द

- ढीला पड़ जाना                            - स्तनों पर सूजन या दरद

- दुखी रहना                                - ऐसा लगना की वजन बढ़ गया है

- कमजोरी                                  - चक्कर

- थकावट                                  - सिर का दरद

- भोजन अच्छा न लगना                     - पीठ और कमर का दरद

- उल्टी जैसा महसूस

मेनोपॉज (मासिक धरम बन्द होने के बाद)

  • मेनोपॉज जीवन का वह समय है जब स्त्रियों में मासिक धरम बन्द हो जाता है
  • मेनोपॉज के बाद स्त्री गर्भवती नहीं हो सकती है
  • सामान्य रूप से मेनोपॉज चालीस-पचास की आयु के बीच होता है
  • पूरी तरह बन्द होने के पहले मासिक धरम कभी जल्दी और कभी देर से आता है
  • वह नियमित नही रहता है
  • मेनोपॉज के दौरान या बाद में यौन संबंध में की सी तरह के रोक की जरूरत नहीं है
  • हाँ गर्भ ठहर सकता है, अगर बच्चे की जरूरत नहीं है तो गर्भ निरोधक अपनाएं
  • मासिक धरम बन्द होने के बाद एक साल तक गर्भ निरोधक अपनाने की जरूरत पड्ती है| उसके बाद नहीं
  • मेनोपॉज के समय स्त्रियों में वेचैने होती है
  • चिंता लगने लगती है
  • उदास रहती है
  • गर्मी लगती है
  • दुखी रहती है
  • बदन में दरद रहता है- कभी यहाँ, कभी वहां
  • मेनोपॉज खतम होने के बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है
  • अगर इन दिनों योनी से ज्यादा खून भे, काफी दिनों तक बढ़ता रहे और साथ में पीड़ा भी हो तो डाक्टर की सलाह लें
  • मेनोपॉज के बाद हड्डियां कमजोर हो जाती है, जल्दी ही टूट सकती है|  सावधानी बरतें|

गर्भ का ठहरना

जब स्त्री का अंड और पुरुष का शुक्राणु आपस में मिलते हैं तो गर्भ ठहरता है गर्भ को पूरी तरह विकसित होने में अड़तीस-चालीस हफ्ते लगते हैं|

लड़की या लड़का

  • गर्भ ठहरने के समय ही यह तय हो जाता है की लड़की होगा या लड़का
  • स्त्री के अंड कोशिका में दो एक्स गुण सूत्र होते हैं
  • पुरुष के शुक्राणु में दो गुण एक्स और बाई होते हैं
  • अगर संभोग के समय पुरुष का शुक्राणु गुण सूत्र के साथ स्त्री के अंडे से मिलता है तो लड़की पैदा होती है|
  • लेकीन पुरुष का शुक्राणु वाई लद्द गुण सूत्र के साथ स्त्री के साथ अंड से मिलता है तो लड़का पैदा होता है|
  • यह स्त्रियों के बस की बात नहीं है की वह निश्चित करे की लड़का पैदा होगा या लड़की|
  • पुरुष का शुक्राणु ही तय करता है की पैदा होने वाला बच्चा लड़का होगा या लड़की प्रकृति नए यह क्षमता केवल पुरुषों को दी है| हमरे देश में लड़का न होने पर ऑंखें को दोषी माना जाता है| यह अज्ञानता है| वह दोषी नहीं है|  यह पुरुषों के शुक्राणु में पाए जाने के सूत्र पर निर्भर करता है की लड़की पैदा होती या लड़का|

गर्भवस्था के लक्षण

  • स्त्री का मासिक धरम रुक जाता है
  • सुबह-सुबह चक्कर का आना
  • उल्टी होने जैसा महसूस करना
  • दूसरे या तीसरे महीने तकलीफ बढ़ जाती है
  • स्तर भारी होने लगता है, उसकी चमड़ी पर लाली आ जाती है और चमक बढ़ जाती है
  • बार बार पेशाब लगती है
  • पैर बड़ा हो जाता है
  • चेहरे, छाती और पेट पर गहरे रंग की झैएयाँ या धब्बे निकल आते हैं|
  • पांचवे महीने बच्चा गर्भाशय में हिलने डुलने लगता है
  • छठे महीने बच्चे के अंग सही हालत में हो जाते है|

गर्भावस्था में स्वस्थ कैसे रहें

  • यह बहुत जरूरी है की वजन बढ़ाया जाए, इसके लिए सेहतमन्द भोजन की जरूरत है|
  • आप के भोजन में पूरी मात्रा में साग-सब्जी, दाल, अंडा, मांस, मछली, दूध, घी हो|
  • गर्भावस्था के छठे महीने के बाद आपको आराम की जरूरत होगी|  रात में कम से कम आठ घंटे सोएं| दोपहर में भी दो घंटे सो लें|
  • वैसे नमक का इस्तेमाल करें जिसमें आयोडिन मिला है|  नहीं तो बच्चे के जीवन पर खतरा हो सकता है|
  • साफ-सुथरा रहें| रोज नहाएं| दांतों को साफ रखें|
  • आखिरी महीने में मैथुन न करें| छूत लग सकता है
  • कोशिश करें की कोई दवा लेने की जरूरत न पड़े कुछ दवाईयां पेट में पल रहे बच्चे को नुकसान पहुंचा सकती है|
  • डाक्टर की सलाह पर ही कोई दवा लें
  • विटामिन की गोलियां और खून में लौह तत्व, फालिक एसिड की गोलियां लेनी चाहिए|
  • आरामदेह कपड़े पहने
  • बीड़ी,हुक्का या सिगरेट न पिएं
  • शराब भी न पिएं 
  • उन बच्चों से दूर रहें जिन्हें खसरा हो गया है
  • घर का काम करते रहना चाहिए, लेकी न ध्यान रहे की थकावट न हो
  • जहरीली चीजों और रसायन से बचें
  • कीटनाशक दवाओं से भी बचें|

गर्भावस्था की छोटी-छोटी परेशानियाँ

  • चक्कर आना या उल्टियां-यह सुबह के समय अधिक महसूस होता है
  • दूसरे-तीसरे महीने असर ज्यादा होता है|
  • सुबह के समय एक आधा रोटी खा लेने से आराम मिलता| एक ही समय अधिक भोजन करने से ज्यादा जरूरत है, थोड़ी-थोड़ी देर बाद थोड़ा भोजन लेना|
  • अगर मामला खतरनाक हो तो उल्टी रोकने वाली दवा ले लेनी चाहिए|
  • अक्सरहाँ तीसरे महीने के बाद उल्टियां आना रुक जाती है|  अगर आती है और पांव में सूजन भी हो जाती है तो डाक्टरी सलाह लेनी चाहिए|
  • कभी-कभी नाभि या छाती में जलन होती है| अच्छा है की उस समय थोड़ा दूध पी लें|
  • दिन में पावों को ऊपर रख कर बैठें, नही तो सूजन हो सकती है|
  • नमक का इस्तेमाल कम कर दें
  • ज्यादा सूजन हो जाने पर डाक्टर की सलह लें
  • सूजन होने का कारण खून की कमी भी हो सकती है|  नियम से फालिक एसिड की गोलियां लें|
  • कमर के निचले हिस्से में भी दरद हो सकता है सपाट बिस्तर या चौकी पर ही सोना चाहिए|
  • खून की कमी एक आम समस्या है
  • हरी पत्तियों वाले सागों का खूब इस्तेमाल करना चाहिए
  • साथ में फलियां, दूध, अंडा के भी सेवन करना चाहिए
  • आपके स्वास्थ्य से ही बच्चे का स्वास्थ्य ठीक रहता है आप गर्भावस्था में बच्चे के स्वास्थ्य रहने के लिए भी भोजन लेती है|
  • पैरों में खून की नालियां मोटी हो जाती है, क्योंकी उस पर बच्चे का वजन पड़ता है
  • सूजन से आराम पाने के लिए पैरों में पट्टियाँ बांधे| रात के समय पट्टियाँ हटा दें
  • गर्भवस्थ में बवासीर भी एक समस्या बन जाती है| 
  • अगर बहुत दरद होता है तो टब में पानी भर दें उसमें लाल दवा (पोटेशियम पर मैगनेट) मिला दें और करीब आधा घंटा दिन में तीन बार बैठें| आराम मिलेगा|
  • कब्ज भी हो जाता है| चोकर वाली रोटियां खाएं| दिन भर खूब पानी पिएं|
  • योनि से पानी बहने लगता है| कभी-कभी यह पीला ओर बदबूदार भी होता है|  योनि वाले हिस्से को कई बार साफ पानी से धोएँ|
  • बदन में अकड़न या ऐंठन भी हो जाती है| आराम के लिए मालिस करें|

गर्भावस्था के खतरनाक लक्षण

  • योनि से थोड़ा भी खून निकले तो खतरे का लक्षण होता है
  • गर्भ गिर भी सकता है, डाक्टर से सलाह कर दवा लें
  • खून कई भारी कमी हो सकती है
  • आप कमजोर हो जाती हैं, काफी थकान लगता है|
  • तुरत इलाज कई जरूरत है, भोजन पौष्टिक चीजें लें, खून कई कमी दूर करने वाली दवाएं भी लें|
  • पावों, हाथों और चेहरे कई सूजन के साथ-साथ अगर सिर दरद और चक्कर भी आवे तो तुरत डाक्टरी इलाज करावें|
  • जरूरी है पौष्टिक भोजन, खून बढ़ाने वाली दवाइयाँ और आराम
  • स्वास्थ्य केन्द्र में हर महीने जांच करावें
  • प्रशिक्षित दाई कई सलाह लेती रहें
  • आखिरी महीने में हर हफते जांच करवाएं|

खुद जाने, जानकारियों को बांटे

  • ढंग का खाना
  • पोषण देने वाला खाना, अनाज, दालें, हरी पीली सब्जियां और पफल, अंडा दूध|
  • खून कई कमी दूर करने वाली हरी साग, पालक, मूली का पत्ता, लाल साग-चौलाई| साथ ही साथ फौलिक एसिड कई गोलियां|
  • अगर गर्भावस्था में आपका वजन बढ़ रहा है तो समझें अच्छा भोजन मिल रहा है
  • आपका वजन नौ महीने में आठ से दस की लो बढ़ना चाहिए
  • अगर अंतिम महीने में ही एक-एक बहुत वजन बढ़ जाए तो यह खतरे कई निशानी है|
  • दवाओं का बिलकुल नहीं या कम इस्तेमाल करें विटामिन और खून बढानें वाली दवाएं लेती रहें
  • हुक्का-बीड़ी, सिगरेट, शराब बिलकुल ही न लें|
  • टेटनस के टीके जरूर लें:

-          पहला टीका      - चौथे से छठे महीने के बीच

-          दूसरा टीका      -पहले टीके के चार हपते बाद

-          तीसरा टीका     - दूसरे टीके के छ महीने बाद

-          चौथा टीका       - तीसरे टीका में एक साल बाद

-          पांचवा टीका     - चौथे टीके के एक साल बाद

खतरे के लक्षण

-          पेशाब करने में जलन

-          जल्दी-जल्दी पेशाब आना

-          पेशाब के साथ खून या पीब आना

-          एकाएक वजन बढ़ना

-          हाथों और चेहरे कई सूजन

-          रक्त चाप (ब्लड प्रेशर) का बढ़ना

-          खून कई बहुत ज्यादा कमी

-          योनि से खून का बहाव

-          पेशाब में चीनी का होना

-          पेशाब में प्रोटीन

हर हालत में डाक्टरी सहायता लें

गर्भाशय (बच्चे दानी)में बच्चे कई हालत

  • हर माह यह देखें की बच्चा की तना बढ़ रहा है, नाभि से ऊपर की  तरफ की तना और नीचे की तरफ की तना बढा|

महिला को प्रसव के लिए तैयार करना

  • जैसे-जैसे बच्चा पैदा होने का समय नजदीक आए, महिला की जांच हर हपते करवाएं
  • अगर महिला इसके पहले भी बच्चा हुआ हो तो पता कर लें की इसके पहले प्रसव के समय की तना दरद हुआ था|
  • हर रोज उसे दिन में दो बार पावों को उंचा करके लेटने को कहें – एक बार में कम से कम एक घंटा|
  • उससे कहें की लेटने के बाद धीरे-धीरे गहरी साँस लें|

प्रसव के लिए तैयार

  • माँ का बच्चे को जनम देना प्रकृति की सामान्य घटना है
  • हां, कई बार कुछ समस्यांए आ जाती हैं, कुछेक खतरनाक लक्षणों पर खास ध्यान देना चाहिए| जैसे –

-          बच्चे के पैदा होने कई तारीख से तीन हपते पहले दरद शुरू हो जाए

-          प्रसव पीड़ा के पहले खून का बहाव होने लगे

-          बच्चा पैदा करने वाली महिला को लम्बी या खतरनाक बीमारी हो

-          उसकी उम्र बीस साल से कम और चालीस साल से अधिक है

-          पैंतीस साल उम्र के बाद गर्भवती हुई है

-          उसके पांच ले अधिक बच्चे हैं

-          उसकी ऊंचाई बहुत कम है

-          उसमें खून कई कमी ज्यादा है

-          पहले भी प्रसव के समय तकलीफ हो चुकी है

-          उसे हर्निया हो

-          ऐसा लगे की जुड़वाँ बच्चा होने वाला है

-          बच्चेदानी में बच्चे की स्थिति ठीक नहीं है

-          पानी की थैली फट गयी हो

-          नाव महीने पूरा करने के दो हपते बाद प्रसव की पीड़ा शुरू हुई है|

ऐसे लक्षण जो बताते हैं की प्रसव की घड़ी नजदीक है 

  • बच्चा पेट में नीचे की तरफ खसक आता है इससे में को साँस लेने में आसानी होती| बार-बार पेशाब करना पड़ता है|
  • पहला बच्चा पैदा होने के समय यह लक्षण दो हपते पहले दिखने लगता है
  • प्रसव के पहले योनि से बलगम जैसी चीज निकलती है, कभी-कभी थोड़ा खून भी बलगम के साथ निकल आता है| इसमें घबड़ाना नहीं चाहिए|
  • गर्भाशय में सिकुड़न मह्सुस होता है, खींचा-खींचा सा लगता है
  • शुरू में सिकुड़न काफी देर या कुछ मिनटों तक रहता है
  • बाद में सिकुड़न हर दस मिनट में होने लगता है, अब दरद भी शुरू हो जाता है, समझना चाहिए की प्रसव की घड़ी नजदीक है|
  • प्रसव नजदीक आने के समय पानी की थैली फट जाती है, योनि से काफी पानी निकले लगता है|
  • अगर सिकुड़ने के पहले ही पानी की थैली फट जाती है तो समझना चाहिए की प्रसव होने ही वाला है|
  • पानी का रंग सफेद होता है, यदि यह हरे रंग का हो तो समझना चाहिए की बच्चे को खतरा है|
  • ऐसी हालत में तुरत प्रसव कराना चाहिए|ज्यादा अच्छा होगा की डाक्टर की देख भाल में प्रसव हों|

प्रसव के तीन भाग होते हैं

पहला भाग

  • दरद के साथ सिकुड़न, बच्चा नीचे के तरफ सरक जाता है
  • इसकी अवधि पहले प्रसव में दस से बीस घंटे रहती है, बाद के प्रसवों में छ से दस घंटे
  • पहले प्रसव के समय जल्दीबाजी नहीं करनी चाहिए
  • बच्चे को खुद नीचे खसकने दीजिए| की सी तरह जोर जबरदस्ती न करें| नली बच्चे को नीचे सरकने के बाद ही माँ को जोर देना चाहिए|
  • माँ को चाहिए की प्रसव के पहले पेशाब पखाना कर लें|  उसे बार-बार पेशाब करना चाहिए|
  • पानी और तरल चीजें पीने के लिए दीजिए
  • अगर प्रसव की पीड़ा लम्बे समय तक खींचे तो थोड़ा जलपान कर लेना चाहिए
  • अगर उल्टियां आवे तो पानी, चाय, शरबत का दो चार घूंट ले लें
  • थोड़ी-थोड़ी देर पर चल फिर लें
  • प्रसव कराने वाली महिला या दाई को चाहिए की वह पेट, जनन वाली जगह, पिछला हिस्सा और टांगों को साबुन और गुनगुने पानी से धोएं
  • बिस्तर साफ रखें
  • ऐसे कमरे में लिटाएं जहां रौशनी हो
  • नया ब्लेड अपने पास रखें, जिससे नाल काटा जा सके
  • उबला पानी तैयार रखें
  • अगर कैंची की जरूरत हो तो उसे भी उबलते पानी में रख दें
  • पेट पर की सी तरह की मालिश न करें, की सी तरह की जोर जबरदस्ती भी न करें
  • सिकुड़न के समय धीमी पर नियमित साँस लें
  • माँ को ढाढस दें की प्रसव का दरद जरूरी है, उससे वह घबराएं नहीं

दूसरा भाग

  • पानी की थैली फूटना शुरू हो जाता है
  • सिकुड़न के समय अन्दर ही अन्दर जोड़ लगा कर बच्चे को बाहर की तरफ ढकेलती है
  • ढकेलने की जरूरी हा की फेफड़ों में पूरी हवा भरी रहे ताकी माँ को ढकेलने में आसानी हो
  • जब बच्चा धीरे-धीरे बाहर निकल रहा हो तो तकी या का सहारा लेकर बैठ जाना चाहिए|
  • जब नली के पास बच्चा का सिर दिखने लगे तो दाई को चाहिए को वह प्रसव कराने की सभी चीजें तैयार कर लें
  • एस समय माँ को अन्दर से जोर लगाने की जरूरत नहीं है
  • दाई को में के योनि के आस-पास की उंगली या हाथ लगाने की जरूरत नहीं है| इससे छूत लग सकता है|
  • हाथ लगाने के लिए हाथों में रबड़ के दस्ताने पहन लेने चाहिए|

प्रसव का तीसरा भाग

  • इस भाग में बच्चे की पैदाइस शुरू हो जाती है
  • आवला (प्लासेन्टा, बिजान्दसन बाहर निकलने लगता है)
  • आवला पांच मिनट से एक घंटे के बीच समय लगता है| यह अपने आप बाहर निकल आता है
  • अगर बहुत खून का बहाव हो तो डाक्टर की मदद लें
  • बच्चे के बाहर निकलने के तुरत बाद
  • बच्चे का सिर नीचा करें ताकी उसके मुंह में लगी लसलसी चीज साफ की या जा सके
  • सिर तबतक नीचा रखें जबतक बच्चा सांस लेना नहीं शुरू कर देता है
  • जबतक नाभि – नल कट न जाए, बंध न जाए तबतक बच्चे को माँ के बगल में नीचा करके लिटाएं ताकी उसे माँ का खून मिलता रहे|
  • अगर बच्चा तुरत सांस नहीं लेता है तो बच्चे के पीठ को साफ कपड़े से मलें
  • यदि फिर भी सांस नहीं लेता है तो समझना चाहिए की उसके नाक-मुंह में अभी लसलसी चीज फंसी है|
  • साफ कपड़े को अंगुली में लपेट कर मुंह नाक साफ करें
  • तुरत पैदा बच्चे को साफ कपड़े में लपेट दें, नहीं तो ठंड लग सकती है|

नाभि-नाल को कैसे काटें

  • बच्चा जब जनम लेता है तो उसके नाभि-नाल में धडकन होती है
  • यह नाल मोटी और नीले रंग की होती है
  • थोड़ा इन्तजार करना पड़ता है
  • थोड़ी देर बाद नाभि-नाल सफेद रंग की हो जाती है
  • वह धड़कना भी बन्द कर देती है
  • अब इसे दो जगहों पर साफ-सुथरे कपड़े की पट्टी से बांध देना चाहिए| जड़ों को कस कर बांधना चाहिए|
  • इसके बाद इसे गाठों के बीच से काटिए
  • काटने के लिए बिलकुल नए ब्लेड का इस्तेमाल करें
  • ब्लेड के उपर कागज हटाने के पहले अपने हाथों को गरम पानी और साबुन से धो लें|
  • अगर ब्लेड न हो तो ऐसी कैंची का इस्तेमाल करें जिसे उबले पानी में देर तक खौलाया गया है|
  • नाभि से एक-दो अंगुल हट कर नाल-नाभि को काटें
  • अगर आपने यह सावधानी नहीं बरती तो बच्चे की टेटनस हो जा सकता, वह में जा सकता है|
  • ताजी कटी नाल-नाभि को सूखा रखें| उसे खुला रखें ताकी उसे हवा लग सके और जल्दी सूख जाए|
  • ध्यान रखें की उसपर मक्खी न लगे
  • धूल-मक्खी से बचाने के लिए कपड़े में लिपटा दवाई की दूकान से खरीदी रुई रख दें
  • नए पैदा बच्चे पर मोम जैसी चीज लगी होती है
  • यह तह बच्चे को छूत से बचाती है, इसे हटाना नहीं चाहिए, हल्के साफ कपड़े हल्के हाथों से पोछना ताकी खून या कोई अन्य तरह की चीज पूंछ जाए|

नाल-नाभि काटने तथा बच्चे को पोछने का तुरत बच्चे को माँ का दूध पीने दें|  इसी समय उसे स्तन से निकला गाढ़ा पीला खीस (कोलस्ट्रम) पीने को मिलेगा|  यह खीस उसे बहुत सारी बीमारियों से बचाएगा|

आंवला या नाड़ (प्लासेन्टा) निकालना

  • आंवला बच्चे के जनम के बाद करीब पांच मिनट से एक घंटे की बीच बाहर आ जाता है|
  • लेकी न कभी-कभी काफी समय भी लग सकता है
  • निकलने के पहले गर्भाशय कड़ा हो जाता है
  • पेट का निचला भाग उठ जाता है
  • थोड़ा खून भी निकल सकता है
  • निकल आने के बाद नाड़ को अच्छी तरह देखें
  • देखें की कहीं टुटा हुआ तो नहीं है
  • कुछ भाग अन्दर रह जाने पर खून का बहाव होगा|
  • ऐसी हालत में डाक्टरी मदद लेनी पड़ेगी
  • नाल को कभी भी खींचे नहीं
  • खून के अधिक बहने पर चिंता होता है
  • तुरत डाक्टरी सहायता लें|

कठिन प्रसव में

  • सिकुड़ना होने में बाद और पानी थैली फटने के बाद भी अगर लम्बे समय तक दरद होता है तो समस्या गम्भीर हो जाती है|
  • अगर बच्चा पैदा करने वाली महिला बहुत उमर की है, या
  • पहली बार गर्भवती हुई है तो परेशानी हो सकती है
  • हो सकता है पेट में बच्चा सही स्थिति में नहीं है
  • वह चित या पट हो सकता है
  • बच्चे को मुंह नाभि की तरफ हो सकता है
  • बच्चे का सिर जरूरत से ज्यादा बड़ा हो सकता है
  • जिन महिलाओं के नितम्ब छोटे होते हैं उन्हें भी बच्चा जनने में तकलीफ होती है|
  • अगर माँ उल्टियां करती है उपर से पानी नहीं पीती तब भी गम्भीर हालत हो सकती है|
  • पेट में बच्चा उल्टा भी हो सकता है सर ऊपर और पैर नीचे
  • ऐसी सभी समस्याओं में अस्पताल की देख-रेख में प्रसव कराएं|

तुरंत पैदा हुए बच्चे की देखभाल

  • ध्यान रहे की ताजी कटी नाभि-नाल को हाथ न लगाएं| छूत लग सकती है
  • उसे साफ और सूखा रखें
  • बदन, मुंह, नाक, कान, आंख को सूखे साफ पतले कपड़े से हल्के हाथों से पोछें
  • बच्चे को साफ कपड़े में लपेट कर रखें
  • ठंड से बचाएं
  • माँ के स्तन में उसका मुंह लगा दें
  • बच्चे जैसे पखाना पेशाब करे उसका पोतड़ा बदल दें
  • बच्चे को नंगे ही रहने देना ठीक होगा, उपर से एक साफ कपड़ों से ढक दें
  • जब नाभि-नाल सूख कर गिर जाए तो बच्चे को हर रोज गुनगुने पानी और हल्के साबुन से नहाना चाहिए|
  • मच्छर-मक्खी से बचाएं| हल्के जालीदार कपड़े से ढके रखें
  • छुतहा रोगी को उसके नजदीक न जाने दें
  • धुआं-धूल से भी बच्चों को बचा कर रखें
  • माँ का अपना दूध दुनिया में सबसे अच्छा भोजन है
  • वे स्वस्थ्य और निरोग रहते हैं
  • जरूरी है बच्चे के जनम में बाद माँ के स्तन से निकला पीला-गाढ़ा खीस वह जरूर पीए
  • खीस (कोलेस्ट्राल) बच्चे को बहुत सारी बीमारियों से बचाता है|
  • माँ का दूध पीने वाला बच्चा अपने को हर तरह से सुरक्षित महसूस करता है
  • उसे ममता, स्नेह, सूख मिलता है
  • चार महीने तक बच्चे को माँ के दूध पर ही जीना चाहिए ऊपर से उसे कुछ भी नहीं चाहिए|
  • बच्चे को थोड़ी-थोड़ी पर दूध पिलाती रहें-कम निकले या ज्यादा
  • काफी मात्रा में तरल चीजें पिएं – दाल, सब्जी, फल का रस, दूध
  • खाने-पीने खूब पोषण रहना चाहिए
  • थकान से बचना चाहिए, अच्छी नींद सोना चाहिए
  • हर माँ अपने बच्चे को पूरा दूध पिला सकती है
  • जरूरत है इच्छा शक्ति की , खुद के खान-पान को ठीक से रखने की
  • बहुत मजबूती में गाय या बकरी का दूध देना चाहिए, डिब्बा वाला दूध बोतल पर बहुत सारी बीमारियां हो सकती है|

हाल में जनमें बच्चों की बीमारियां 

  • कुछ ऐसे रोग हैं जो उनमें जनम से शुरू हो जाते हैं
  • ये समस्याएं इसलिए भी हो सकती है की

-          गर्भाशय में पलने बढने के समय ही कोई खराबी आ गयी है

-          जनम लेते ही वह अच्छी तरह सांस नहीं ले पा रहा है

-          उसके नबज को महसूस न की या जा सके या

-          उसके नबज की गति एक मिनट में सौ से अधिक हो

-          सांस लेने के बाद बच्चे का बदन सफेद, नीला या पीला हो जाए

-          बच्चे की टांगों में कोई जान न हो, चुट्की काटने पर भी बच्चा कुछ महसूस नहीं करता है

-          उसके गले में घरघराहट को

-          ऐसी सभी समस्याओं में डाक्टर की देखरेख में इलाज करावें  

जन्म के बाद पैदा होने वाली समस्याएं

  • शुरू के पहले दो हफ्तों में ऐसी समस्याएं अधिक दिखती हैं
  • नाभि से पीब निकलता है या फूट कर बदबूदार बहाव होता है
  • कम तापमान या अधिक तापमान वाला बुखार आता है
  • तेज बुखार बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है
  • कम बुखार में बच्चे के बदन को ठंडे पानी से हल्के हल्के पोंछे
  • अगर की सी प्रकार का दौरा पड़ता  है तो यह हानिकारक हो सकता है| डाक्टर को दिखाएँ
  • बच्चे का जनम के बाद वजन थोड़ा घट जाता है लेकी न दो हपते में कम से कम दो सौ ग्राम वजन बढ़ना चाहिए|
  • बच्चा दूध पीने के बाद उल्टी कर देता है| पीठ को थपथपाएं| पेट से हवा निकल जाएगा| उसे आराम मिलेगा| तब उल्टियां कम हो जाएगी|
  • बच्चा माँ का दूध पीना बन्द करता है, वैसे तो उसे हर चार घंटे पर माँ इ स्तनों की खोज न करता है, लेकी न कभी-कभी ऐसा नहीं करता है|
  • वह हमेशा सोता रहता है, जगे रहने पर पलके झपकती रहती है| वह बीमार दिखता है
  • ऐसी हालत में ध्यान दें की कहीं  बच्चे को सांस लेने में तकलीफ तो नहीं हो रही है
  • नाक तो बन्द नहीं हो गया है
  • बदन का रंग तो नीला नहीं हो रहा है
  • होंठों के रंग तो नहीं बदल रहे हैं
  • उसके सर के कोमल भाग (तालु को छूकर  देखें)
  • अगर धंस गया है तो भी खतरा,अगर उभर गया है तो भी खतरा
  • यह भी ध्यान दें की कहीं बच्चे का बदन या उसके हाथों, टागों में अकडन या ऐंठन तो नहीं है|
  • वह अपने बदन और अंगों को सामान्य रूप से हिला-डुला रहा है
  • खून की जांच करावें कोई दूत तो नहीं लग गया
  • अगर हाँ, तो डाक्टरी इलाज की जरूरत है|

प्रसव के बाद माँ का स्वास्थ्य

  • बच्चे के प्रसव के बाद माँ का शरीर थोड़ा गरम हो जाता है|
  • लेकी न दूसरे दिन इसे पहले की हालत में आ जाना चाहिए
  • उसे अब अधिक पौष्टिक भोजन चाहिए, अब उसे अपने बच्चे को भोजन भी अपने शरीर में ही पैदा करना है|
  • इसके लिए अब फल,सब्जी, फलियों वाली सब्जियां पीले फल और सब्जियां मूगफली, दूध, अंडा, मुर्गी चाहिए|
  • ऐसे ही भोजन खा कर वह अपने बच्चे का सही ढंग से दूध पिला पाएगी
  • दूध और पानी
  • दूध और पनीर के सेवन ससे उसके स्तनों में अधिक दूध बन जाता है
  • प्रसव के कुछ दिनों के बाद उसे नहाना शुरू कर देना चाहिए
  • वह साफ कपड़ा पहने, नहीं तो उसका बच्चा बीमार पड़ सकता है
  • कभी-कभी प्रसव के बाद बुखार ठहर जाता है|  ऐसा दाई या की सी अन्य व्यक्ति से छूत का लगना हो सकता है|
  • योनि से खून या बदबूदार बहाव हो सकता है
  • ऐसी हालत में योनि और जनन अंगों को गुनगुने पानी में थोड़ा सिरका या पोटाशियम परमेगनेट मिलाकर धोना चाहिए|
  • अगर बुखार बना रहे तो डाक्टर की देख-रेख में इलाज कराएं
  • कुछ स्त्रियाँ मानसिक रूप से निराश हो जाती हैं, उनमे डर समा जाता है|

स्तनों की देखभाल

  • ऐसी हालत में परिवार के लोगों का स्नेह उसे चाहिए|
  • यह माँ और बच्चा दोनों के हित में है की स्तनों की देख भाल ठीक ढंग से हो
  • बच्चा के पैदा होते ही उसे स्तनपान कराना शुरू कर दें
  • शुरू में बच्चा शायद स्तनों को ठीक दंग से न चूस सके लेकी न जल्दी ही वह सीख लेगा
  • पहले दो दिन स्तनों से दूध निकलता है, उसे खीस कहते है
  • खीस पानी की तरह पतला होता है
  • माताएं समझती हा की खीस बच्चे को नुकसान पहुंचाता है, और खीस नहीं पिलाना चाहती हैं|
  • सच तो यह है की खीस अमृत समान है
  • खीस में सेहत ठीक करने वाली चीजें होती हैं
  • पहले दिन दूध पिलाने से यह फायदा है की स्तनों से ज्यादा दूध मिलेगा
  • आमतौर से स्तनों में इतना दूध बनता है जितना की बच्चे को जरूरत है
  • बच्चा जितना ज्यादा दूध पिएगा, उतना ज्यादा दूध स्तनों में बनेगा
  • अगर बच्चा बीमार पड़ता है और दूध नहीं पीता है तो स्तनों में दूध बनना बन्द हो जाता है|
  • ऐसी हालत में माँ को चाहिए की वह बच्चे को दूध पिलाती रहें|
  • अगर फिर बच्चा दूध न पीए तो माँ को चाहिए की एक-एक स्तन को बारी-बारी जड़ के पास दोनों हाथों से निचोड़ती रहे और दूध बाहर निकाल दें|
  • इस क्रिया से स्तनों में दूध बनना बन्द नहीं होगा
  • बीमार बच्चे को निचोड़ने से निकले दूध को चम्मच से पिलाएं
  • अपने स्तनों को हमेशा साफ रखें, बच्चे को दूध पिलाने के पहले धो लें|  इससे बच्चा छूत से बचेगा
  • धोते समय ध्यान रखें की चूची पर पानी न लगे, चूची से कुछ ऐसी चीजें निकलती है, जो बच्चे को रोगों से सुरक्षा दिलाता है|
  • अगर चूची में सूजन आ जाए या दरद हो तो दूध पिलाना बंद कर दें| एक दो दिन ऊपरी उबला दूध पिलाएं|

कम वजन के बच्चे की देखभाल

  • कुछ बच्चों का वजन जनमने के समय दो से पांच की लोग्राम से कम होता है
  • ऐसे बच्चों की खास देखभाल की जरूरत होती है
  • ज्यादा अच्छा होगा की ऐसे बच्चे की देखभाल अस्पताल में हो
  • सम्भव न होने पर ऐसे बच्चों को छाती से चिपका कर रखें
  • उसे जरूरत मुताबिक स्तनों से दूध पिलाती रहे
  • हर रोज बच्चे का चेहरा और निचला भाग साफ करें
  • बदन से चिपके रहने से उसको बराबर गरमी मिलते रहेगी
  • जब आप आराम करना चाहें या नहाना चाहें तो घर का कोई अन्य व्यक्ति उसे अपने से चिपका कर बैठें या लेटें
  • ऐसे बच्चे को टीके समय से लगवाएं
  • बच्चे को पिलाने वाला विटामिन और खून बढ़ाने वाली दवाइयां दें| ऐसे बच्चों के लिए खास ताकत की दवाइयां आती हैं|

नवजात की सुरक्षा