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Tuesday, May 12, 2020

बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास एवं गर्भावस्था के दौरान भोजन

बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास

बच्चे के विकास की गति
  • विकास की  गति जन्म  लेने के बाद शरू हो जाती है
  • उम्र के अनुसार ही शरीर और दिमाग का विकास होता है
  • बच्चे के विकास की  शुरुआत तो माँ के पेट से होने लगता है, गर्भ टिकने के बाद शुरू के तीन महीनों में बच्चे का तेजी से विकास होता है।
  • जन्म  से लेकर तीन साल तक बच्चे का विकास होता है
  • बच्चे के विकास पर ध्यान देने के लिए जरूरी है की  हर महीने उसका वजन लिया जाय ।
  • वजन अगर बढ़ रहा है तो ठीक है अगर नहीं तो उसके खान-पान पर अधिक ध्यान देने की  जरूरत पड़ेगी।
  • विकास की  गति का अपना ढंग है।

हम देखें के विकास की  यह गति कैसे होती है

एक

औसत उम्र एक महीना

शारीरिक विकास थोड़ी देर के लिए पेट के बल बैठता है और सिर उपर की  ओर उठता है

मानसिक विकास की सी तरफ ऑंखें घुमा कर देखता है, थोड़ा-थोड़ा मुस्कुराता है

 

 

दो  महीना

हाथ पैर थोड़ा-थोड़ा हिलाता है

मुस्कुराता है अपनी माँ को पहचानता है

 

 

तीन  महीना

अपना सिर उपर की ओर उठा पता है

की सी खास चीज को देख कर हिलने डुलने लगता है बोलने की कोशिश हुंकारी भरता है

 

दो

औसत उम्र पांच से छ महीना

शारीरिक विकास करवट लेता है सिर की घुमाता है सहारा पाकर बैठना पेट के बल घिसकना

भाषा का विकास जोर जोर से आवाज निकालता है

सामाजिक विकास परिवार के सदस्यों को पहचानना नये व्यक्ति को देख कर रोना

तीन

औसत उम्र छ से नवां महीना

शारीरिक विकास बिना समझे बैठ पाता है घुटने के बल चलता है दो तीन दांत निकल आते हैं

भाषा का विकास बिना समझे कुछ जाने शब्दों को बोलता है उसके सामने बोलने से वह भी कह शब्द निकाल देता है

सामाजिक विकास पहचान और बिना जाने पहचान व्यक्तियों में फरक करना

 

नवां से बारह महीना

खड़ा हो पाता है पांच-छ दांत निकल आती है चलने की कोशिश करना

बोलने की कोशिश में गति

चीजों को गौर से देखना

 

बारह से अठारह महीना

बिना सहारे के चल पाता है बारह से अठारह दांत निकल आती हैं

बोलने पर समझना जैसे माँ, दूध, बाबा, दीदी

चीजों को हाथों से पकड़ता है कोई उससे चीजें चीन नहीं सकता

 

डेढ़ से दो साल

दौड़ सकता है सोलह–अठारह दांत निकल आती है

कई बार शब्द बोल पाता है। छोटे-छोटे वाक्य भी

बच्चों का ध्यान अपनी तरफ ही ज्यादा रहता है खेलने के लिए साथी खिलौना

 

दो से तीन साल

खेलना-कूदना सीढ़ियां चढ़ लेना

बातचीत कर लेना पूरा वाक्य बोल पाता है

दूसरों के साथ खेलना चीजों को समझने कई कोशिश करना

 

ध्यान दें: सभी बच्चों का विकास एक समान नहीं होता है। उपर दी गयी बातें सामान्य है, एक तरह से विकास गति को जानने में मदद मिलेगा।

बच्चों के विकास पर ध्यान दिए जाने वाले बिंदु

बच्चों के विकास के लिए नीचे दी गयी बातों पर ध्यान देना होता है

(क) खान – पान

  • जब बच्चा माँ के पेट में पल रहा होता है तो अपना भोजन माँ के शरीर से पाता है
  • माँ के लिए जरूरी है की  वह सेहत ठीक रखने वाली पौष्टिक आहार ले, नहीं तो बीमार बच्चा पैदा होगा जिसका वजन भी कम होगा।
  • हमारी सामाजिक रीतियाँ इतनी बुरी है की  महिलाओं, की शोरियों ओर लड़की यों को सही भोजन नहीं मिलता है, इसलिए हमारे बच्चे-लड़के-लड़की यां और बीमार रहते हैं।
  • अच्छे भोजन की  कमी से की शोरियों और महिलाओं में खून की कमी रहती है
  • जरूरी है की  लड़का-लड़की में भेद भाव न रखा जाय सबको बराबर ढंग से पौष्टिक भोजन मिले ताकी  परिवार के सभी लोग स्वस्थ्य रहें।
  • गर्भावस्था में तो महिलाएं सही भोजन मिलना चाहिए ताकी  वह स्वस्थ्य बच्चा पैदा कर सके।
  • बच्चे का जन्म  के तुरत बाद स्तनपान कराना चाहिए। माँ के स्तनों में खूब दूध आए इसके लिए जरूरी है की  माँ का भोजन सही हो
  • बच्चे का स्वस्थ्य माँ के भोजन पर ही टिका रहता है।

(ख)  लाड-दुलार

  • अगर परिवार के सभी लोग और आस-पडोस के लोग अगर बच्चे को पूरा लाड़-प्यार देते हैं तो उसका सामाजिक विकास ठीक ढंग से होगा।
  • अगर उसे लाड़-दुलार नहीं मिलता तो वह दुखी महसूस करता है, कुछ भी उत्साह से नहीं करता है।

(ग़) सुरक्षा

  • बच्चे के सही विकास के लिए जरूरी है की  वह अपने को सुरक्षित महसूस करें
  • वह महसूस करे की  लोग उसका ध्यान रखते हैं
  • उसके पुकारने पर लोग जवाब देते है
  • उसको लगे की  लोग उससे प्यार करते हैं।

बच्चे को परिवार और समाज का एक व्यक्ति समझना

  • उसकी पसंद और नपसंद का ख्याल रखना
  • उसे दूसरे बच्चों से उंचा या नीचा नहीं समझना
  • जब वह कोई नयी चीज समझता है या करता है तो उसे शाबासी देना, उसकी तारीफ करना।
  • तारीफ करने से उसका उत्साह बढ़ता है
  • उसकी आवश्यकता को पूरा करना
  • बच्चों को स्वाभाविक रूप से काम करने देना
  • उस पर की सी तरह का दबाव न पड़े
  • उससे यह न कहना की  यह करना यह न करना
  • हाँ, खतरे में न पड़े इसका ध्यान देना
  • बच्चे का स्वाभविक विकास रहे इसके लिए जरूरी है की  बच्चा खेल-कूद में भाग लें
  • खेल –खेल में बच्चा नयी चीजें सीखता है।
  • उसे समाज का एक जवाबदेह सदस्य बनने में मदद मिलती है
  • उनका दूसरों के साथ मेल-जोल बढ़ता है
  • उसके बोलचाल और भाषा में विकास होता है।

हमारा विश्वास, हमारी परंपरा और माँ-बच्चे का स्वास्थ्य

  • सभी समाज में कुछ मान्यताएं होती हैं, कुछ संस्कार, कुछ विश्वास।
  • उनमे से कुछ अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे और हानिकारक भी।
  • यह बातें माँ और बच्चे की  देख भाल, सेहत और स्वास्थ्य पर भी लागु होती है।
  • हमारे विश्वाश,हमारे संस्कार चार तरह के होते हैं
  • वे जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है
  • वे जो न लाभदायक हैं न हानिकारक  
  • वे जो खतरनाक और हानिकारक है
  • ऐसे विश्वास जो अब तक साबित नहीं हुए हैं वे हमारे लिए लाभदायक हैं या हानिकारक
  • हमारे लिए जरूरी है कि  हम पहचाने और जाने की  कौन से विश्वास लाभदायक है।
  • हमें लोगों के साथ लाभदायक विश्वाशों के साथ काम शुरू करना है ।
  • अंध विश्वास एक दिन में खतम नहीं होता, समाज के लोगों के साथ उनपर काफी चर्चा करनी पड्ती है।

गर्भवती महिला का खान-पान

  • कुछ लोगों का विश्वास है कि  जब बच्चा पेट में पल रहा हो तो गर्भ के समय अधिक मात्रा में भोजन लेने से पेट का बच्चा बहुत बड़ा और भारी हो जाएगा जिससे प्रसव के समय कठिनाई होगी।
  • कुछ लोगों का यह बिश्वास है की  ज्यादा भोजन से पेट पर दबाव पड़ेगा इसलिए पेट में पल रहे बच्चे का विकास नहीं होगा।

सच तो यह है कि पेट में पल रहे बच्चे का विकास माँ के भोजन पर ही टिका रहता है

  • अगर माँ अधिक मात्रा में भोजन नहीं लेगी तो बच्चे का विकास नहीं होगा
  • केवल भोजन का अधिक होना ही ज्रिरी नहीं है। जरूरी है की  भोजन में अनाज के साथ-साथ दालें, मूंगफली, दूसरी तरह की  फलियाँ जैसे – सोयाबीन, दूध, दही, अंडा वगैरह भी लें।
  • भोजन अगर पोषण देने वाला नहीं होगा तो जन्म ने के समय के समय बच्चे का वजन कम होगा। वह बराबर बीमार रहेगा।

यही बात प्रसव के बाद भी लागू होगा। माँ के स्तनों में पूरा दूध बने इसके लिए जरूरी है की  माँ के भोजन में पोषण हों और उसकी मात्रा भी अधिक हो।

*कुछ और लोगों का विश्वास है कि प्रसव के बाद माँ को पानी पिलाने घाव सुखने में देर लगती है।

यह सब खतरनाक अन्धविश्वास है

  • माँ को पानी नहीं मिलने पर उसे तकलीफ होती है
  • पानी की  कमी से स्तनों में दूध नहीं बनता
  • चाहिए तो यह की  माँ का पानी के साथ दूसरी तरल चीजें भी पिलानी चाहिए जैसे फलों और सब्जियों का जूस (रस), दूध छाछ इत्यदि।
  • कुछ लोगों का विश्वास है की  बच्चे को खीस (कोलेस्ताम) पिलाने बच्चा बीमार हो जाएगा।
  • खीस प्रसव के बाद स्तनों से पीला, चिपचिपा बहाव होता है।
  • सच तो यह है कि खीस अमृत समान है। यह बच्चों को बहुत सारी बीमारियों से बचाता है।
  • हर माँ का प्रसव के तुरत बाद अपना स्तन बच्चे के मुंह से लगा दें ताकी  वह जी भर कर खीस पीए और रोगों से बचें।
  • हमारे समाज में अन्न प्राशन का रिवाज है।  यह बहुत अच्छा रिवाज है।  अक्सरहां पांच से सात महीने पर पूजा-पाठ के साथ बच्चे को अन्न खिलाया जाता है।
  • लेकिन कभी-कभी काफी लोग एक दिन अनाज खिलाने के बाद एक साल या उससे ज्यादा समय तक कुछ नहीं खिलते हैं, केवल दूध देते हैं।
  • उनका विश्वास है कि छोटा बच्चा अनाज नहीं पचा पाएगा
  • सच तो यह कि बच्चे के चार महीना को होते ही पतला दाल, उबला आलू या दूसरी सब्जी को मसल कर खिलाना चाहिए।
  • धीरे-धीरे छ महीने पर उसे खिचड़ी जैसी चीज खिलानी चाहिए
  • हाँ दूध तो दो साल तक नियमित रूप से पिलानी चाहिए, केवल माँ का दूध-बोतल या डिब्बा का दूध नहीं।
  • यदि बाहर के दूध पिलाने की आवश्यकता पढ़े तब गाय या बकरी का दूध पिलाना चाहिए।

दस्त के समय खाना और पानी देने से दस्त बन्द हो जाएगा

  • सच तो यह है कि  दस्त में शरीर में पानी की  कमी होती है उसे पूरा करने हेतु ओ.आर.एस. का घोल पिलाएं।  हल्का खाना दें।
  • कहीं-कहीं अपच या पेट की  गड़बड़ी की  हालत में माँ बच्चे को स्तन पान नहीं करती-यह गलत विचार है

सच तो यह है कि  स्तनपान के जरिए बच्चे माँ की  बीमारी से प्रभावित नहीं होते।

-बीमारी की  अवस्था में सावधानी से स्तन पान कराएं

  • बुखार के दौरान शिशु को नहलाया नहीं जाता – यह भी हानिकारक अंध विश्वास है

बुखार से शिशु के शरीर का तापमान बढ़ जाता है, सिर धोने और भींगे कपड़े से बदन पोंछने से बुखार कम होता है।

यदि बुखार में कंपकपी हो टब शरीर पर पानी देना ठीक नहीं है। हानि हो सकती है।

बुखार होने पर कमरा की  खिड़की को खोल कर रखें

  • बुखार होने पर खाने पर रोक नहीं लगाना चाहिए आसानी से पचने वाला भोजन – रोटी, दाल, फल, दूध दिया जाना चाहिए।  भोजन कमजोरी को कम करेगा।

शिशुओं का वजन नहीं कराने का रिवाज गलत है

- यह मानना भी गलत है की  वजन कराने से शिशु का बढ़ना रुक जाएगा।

- सच तो यह है की  समय-समय पर शिशु का वजन कराना आवश्यक है।

- इससे शिशु के बढ़ने या कमजोर होने की  जानकारी मिलती है।

- यदि वजन घटता है तब डाक्टर से सलाह लें

- रोग होने पर झाड-फूंक कराने या ताबीज बांधने के विश्वास का कोई माने नहीं है।

- झाड-फूंक कराने या ताबीज बांधने के साथ पर रोग का इलाज आवश्यक है

- रोग होने पर डाक्टर की  सलाह के अनुसार परहेज कराएं तथा दवा खिलाएं। बच्चे को पीलिया होने पर गले में काठ की  माला पहनाना भी एक विश्वास या अंध विश्वास है।

- सच तो यह है की  लीवर की  गडबडी से पीलिया रोग होता है।  एस रोग में काठ की  माला पहलाने से कोई लाभ नहीं होता।

- बीमारी के इलाज कराने पर ही बीमारी दूर होगी। विभिन्न प्रकार की  बिमारियों में शिशु के शरीर को दागना एक हानिकारक अंध विश्वास है।  जिसका पालन ठीक नहीं है।

- कुछ जगहों में एक प्रकार की  पत्ती को पीस कर शरीर के विभिन्न स्थानों पर लगाया जाता है जिससे चमड़ा जल जाता है।

इससे शिशु को कष्ट के सिवाय लाभ नहीं होता है। कुछ लोगों का मानना है की  कुछ खाने के पदार्थ गरम तथा कुछ ठंढा होता है। बीमारी में दोनों प्रकार चीजों से शिशु को रोका जाता है। यह गलत मानना है।

- आम खाने से फोड़े नहीं होते हैं

- दही को ठंडा मानते हैं।  और खाने से परहेज करते है – बात ऐसी नहीं है।  दही का सम्बन्ध सर्दी जुकाम से नहीं रहता है।

- विटामिन सी के ली खट्टे फल या फलों का रस का सेवन करना आवश्यक है इन सब को खाने से रोकना नहीं चाहिए।

- सावधानी इस बात की  रहे की  खाने में अधिक तेल/घी, मिर्च एवं मसाले का व्यवहार नहीं हो।  आहार पोष्टिक तथा शीघ्र पचने वाला हो।  ध्यान रहे संस्कार एवं विश्वास का प्रभाव जीवन पर पड़ता है।  हमारा व्यवहार बदल जाता है।  अंध विश्वाश को दूर करने का प्रयास होना चाहिए।

संतान यदि बेटा-बेटी दोनों है तब

  • बेटी को भी बेटा की  तरह प्यार दें।
  • दोनों के खान-पान में भेद भाव नहीं करें।
  • दोनों को शिक्षा का समान अवसर प्रदान करें। 
Sunday, May 10, 2020

सुरक्षित मातृत्व के मुख्य सन्देश

सुरक्षित मातृत्व के मुख्य संदेश

हर साल कोई 1,400 महिलाएं गर्भधारण और प्रसव से जुड़ी दिक्कतों के कारण मर जाती हैं। गर्भावस्था के दौरान हजारों हजार दूसरी महिलाएं पेचदिगियों का शिकार हो जाती हैं, इनमें से कई महिलाओं और उनके बच्चों के लिए जानलेवा होती हैं, या उन्हें गम्भीर रूप से अक्षम बना कर छोड़ देती हैं।

प्रसव के खतरों को बहुत घटाया जा सकता है, अगर महिला गर्भावस्था से पहले स्वस्थ हो और पोषण से भरपूर हो, अगर हरेक गर्भधारण के दौरान कम से कम चार बार प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ता से उसकी जांच हो, और अगर डॉक्टर, नर्स, या दाई जैसे प्रशिक्षित के जरिये उसका प्रसव कराया गया हो। बच्चे की पैदाइश के 12 घंटे बाद और प्रसव के छह सप्ताह बाद भी महिला की जांच की जानी चाहिए।

प्रसव से पहले और प्रसव बाद की सेवाएं उपलब्ध कराने, प्रसव में मदद के लिए स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने, और गर्भावस्था और प्रसव के दौरान गम्भीर दिक्कतों से घिरी महिलाओं के लिए देखभाल और आगे बढ़ी स्वास्थ्य सेवाओं का खास इंतजाम करने की मुख्य जिम्मेदारी सरकारों की है।

ज्यादातर सरकारों ने महिलाओं के खिलाफ किसी भी तरह के भेदभाव के खात्मे के सम्मेलन के अंतरराष्ट्रीय समझौते को अपनी मंजूरी दी है, जिसमें जरूरतमंद गर्भवती महिलाओं के लिए सेवाएं उपलब्ध कराने की कानूनी बाध्यता शामिल है।

सुरक्षित मातृत्व मुख्य संदेश-१

सभी परिवारों के लिए गर्भावस्था और प्रसव के खतरों के निशान की पहचान करने में सक्षम होना और अगर समस्या उठती है तो तुरंत प्रशिक्षित लोगों से मदद हासिल करने के लिए योजना और संसाधनों का होना महत्वपूर्ण है।

हरेक गर्भावस्था में कुछ गड़बड़ हो जाने का खतरा रहता है। इन कई पेचीदगियों से बचा जा सकता है। मां और बच्चे दोनों के लिए पहला प्रसव सबसे ज्यादा खतरनाक होता है।

गर्भवती महिला को हरेक गर्भधारण के दौरान क्लीनिक या स्वास्थ्य केंद्रों पर कम से कम चार बार जांचे जाने की जरूरत होती है। इस बारे में कि बच्चा कहां पैदा होना चाहिए, प्रसव के लिए प्रशिक्षित कर्मियों की सलाह लेना भी महत्वपूर्ण है ;जैसे डॉक्टर, नर्स या दाई।

चूंकि गर्भावस्था के दौरान बिना चेतावनी के खतरनाक दिक्कत खड़ी हो सकती है, इसलिए प्रसव के पहले या प्रसव के तुरंत बाद परिवार के सभी सदस्यों को यह जानने कि जरूरत हों कि नजदीकी अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र कहां है, और किसी भी समय महिला को वहां तक ले जाने के लिए योजना और धन का इंतजाम करने की जरूरत है। अगर संभव है तो मां बनने वाली महिला को फौरी तौरपर स्वास्थ्य केंद्र या अस्पताल के नजदीक ले जाना चाहिए, ताकि वह चिकित्सकीय मदद की पहुंच में रहे।

परिवार को अगर पता हो कि प्रसव मुश्किल या खतरनाक हो सकता है तो प्रसव को अस्पताल या जच्चा-बच्चा केंद्र में होना चाहिए। सभी प्रसव, खासकर पहला प्रसव, जच्चा-बच्चा केंद्र या अस्पताल में ज्यादा सुरक्षित होता है।

सभी परिवारों को खास खतरों के बारे में जानने और कभी भी आने वाली दिक्कतों के खतरों के निशानों की पहचान में सक्षम होने की जरूरत है।

गर्भावस्था से पहले के खतरों के कारक

  • पिछले प्रसव के बाद दो साल से भी कम का समय का अंतर हो।
  • लड़की की उम्र 18 साल से कम या महिला की उम्र 35 साल से ज्यादा हो।
  • महिला के पहले से ही चार या उससे अधिक बच्चे हों।
  • महिला का पिछला प्रसव समय से पहले हुआ हो या उसका बच्चा जन्म के समय 2 किलोग्राम से भी कम वजन का रहा हो।
  • महिला को पिछले प्रसव में भी दिक्कत आयी हो या ऑपरेशन से प्रसव हुआ हो।
  • पिछली बार गर्भ गिर चुका हो या महिला को मरा बच्चा हुआ हो।
  • महिला का वजन 38 किलोग्राम से कम हो।
  • महिला का खतना हुआ हो या उसके यौन अंग काटे गये हों।

गर्भावस्था के दौरान खतरे के निशान

  • वजन का न बढ़ना; गर्भावस्था के दौरान कम से कम 6 किलोग्राम बढ़ना चाहिए।
  • खून की कमी, पलकों के भीतर पीलापन; स्वस्थ पलें लाल या गुलाबी होती हैं, बहुत थकान या सांस फूलना।
  • पैर, हाथ या चेहरे पर गैर मामूली सूजन।
  • गर्भ का चलना बहुत कम या बिल्कुल नहीं।

मदद की तुरंत जरूरत वाले निशान

  • गर्भावस्था के दौरान योनि से खून या उसके थक्के आना या प्रसव के बाद खून का ज्यादा या लगातार आना।
  • सिर या पेट में जबरदस्त दर्द होना।
  • गंभीर रूप से या लगातार उल्टियां होना।
  • तेज बुखार आना।
  • बच्चे की पैदाइश के तयशुदा समय से पहले पानी आना।
  • ऐंठन होना।
  • तेज दर्द होना।
  • प्रसव का लंबा खिंचना।

सुरक्षित मातृत्व मुख्य संदेश-२

डॉक्टर, नर्स या प्रशिक्षित दाई जैसे प्रसव के लिए प्रशिक्षित लोगों से गर्भावस्था के दौरान कम से कम चार बार महिला की जांच करानी चाहिए और हरेक प्रसव में सहयोग करनी चाहिए।

हरेक गर्भावस्था ध्यान दिये जाने की मांग करती है, इसलिए कि कुछ गड़बड़ हो जाने का खतरा हमेशा बना रहता है। कई खतरों को टाला जा सकता है, अगर महिला को गर्भ ठहरने का अंदेशा हो तो उसे जल्द स्वास्थ्य केंद्र या प्रसव के लिए प्रशिक्षित लोगों से मदद लेनी चाहिए। इसके बाद हरेक गर्भावस्था के दौरान उसकी कम से कम चार बार जांच होनी चाहिए और हर प्रसव के 12 घंटे बाद और छह सप्ताह बाद भी जांच करायी जानी चाहिए।

गर्भावस्था के दौरान अगर खून रिस रहा हो या पेट में दर्द हो या ऊपर दर्ज किये गये खतरे का कोई भी निशान हो, तो तुरंत स्वास्थ्य कार्यकर्ता या लोगों से संपर्क करनी चाहिए।

प्रसव के समय प्रशिक्षित कर्मियों का सहयोग और प्रसव के 12 घंटे बाद हुई मां की जांच, मां या बच्चे के बीमार पड़ने या मर जाने की संभावना घटा देती है।

प्रशिक्षित कर्मियों, जैसे डॉक्टर- नर्स या प्रशिक्षित दाई सुरक्षित गर्भावस्था और शिशु के स्वस्थ होने में इस तरह मदद करेगा-

  • गर्भावस्था प्रगति की जांच, ताकि कोई समस्या आने पर प्रसव के लिए महिला को अस्पताल पहुंचाया जा सके।
  • उच्च रक्तचाप की जांच, जो मां और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है।
  • नियमित रूप से खून कमी की जांच और आयरन/फोलिक पूरक देकर उसकी पूर्ति।
  • मां और नवजात शिशु को संक्रमण से बचाने के लिए विटामिन की पर्याप्त खुराक का नुस्खा देकर; विटामिन ए की कमी वाले इलाकों में।
  • गर्भावस्था के दौरान किसी भी संक्रमण, खास कर पेशाब के रास्ते के संक्रमण की जांच और एंटीबायोटिक से उसका इलाज करके।
  • मां और नवजात शिशु को टिटनेस से बचाव के लिए गर्भवती महिला को टिटनेस का दो इंजेक्शन देकर।
  • घेंघा रोग से खुद को और अपने बच्चे को संभावित दिमागी और शारीरिक अपंगता से बचाने में मदद के लिए सभी गर्भवती महिलाओं को भोजन में केवल आयोडीन नमक के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर।
  • यह जांच करके कि गर्भ की बढ़त ठीक है या नहीं।
  • अगर जरूरी हो तो मलेरिया रोधी गोली देना।
  • प्रसव के अनुभवों के लिए मां को तैयार करना और उसे स्वयं तथा अपने बच्चे की देखभाल करने और अपना दूध पिलाने के बारे में सलाह देकर तैयार करना।
  • गर्भवती महिला और उसके परिवार को सलाह देकर कि बच्चा कहां पैदा हो और अगर प्रसव या प्रसव के तुरंत बाद कोई दिक्कत आये तो मदद कैसे हासिल की जाये।
  • यह सलाह देकर कि यौन-जनित संक्रमणों से कैसे बचा जा सकता है।
  • एच.आई.वी की स्वैच्छिक और गोपनीय जांच और सलाह उपलब्ध करा कर। सभी महिलाओं को एच.आई.वी की स्वैच्छिक और गोपनीय जांच और सलाह का अधिकार है। जो गर्भवती और नयी माताएं संक्रमण का शिकार हैं या उन्हें अंदेशा रहता कि वे कहीं संक्रमण का शिकार तो नहीं हैं। उन्हें प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ता से सलाह लेनी चाहिए कि अपने शिशुओं को संक्रमण के खतरों से कैसे बचाया जा सकता है, और कैसे अपनी देखभाल की जा सकती है।

प्रशिक्षित व्यक्ति जानता है कि प्रसव के दौरान-

  • प्रसव काल लंबा खिंच रहा है (12 घंटे से अधिक) तो उसे कब अस्पताल ले जाने की जरूरत है।
  • चिकित्सीय मदद की कब जरूरत है और उसे कैसे हासिल किया जाये।
  • संक्रमण के खतरों को कैसे कम किया जाये; साफ-सुथरे हाथ, साफ-सुथरे औजार और प्रसव की साफ-सुथरी जगह।
  • अगर बच्चे की स्थिति सही नहीं है तो क्या किया जाये।
  • अगर मां को बहुत खून आ रहा है तो क्या किया जाये।
  • नाभि नाल कब काटी जाये और उसकी देखभाल कैसे की जाये।
  • अगर सही तरीके से बच्चा सांस लेना शुरू नहीं करता तो क्या किया जाये।
  • जन्म के बाद बच्चे को सूखा और गर्म कैसे रखा जाये।
  • जन्म के तुरन्त बाद बच्चे को मां का दूध कैसे पिलाया जाये।
  • जन्म के बाद कौन सी सावधानी बरती जाये और मां की देखभाल कैसे की जाये।
  • अंधेपन से बचाने के लिए सुझायी गयी बूंदें नवजात शिशु की आंख में कैसे डाली जायें।

प्रसव के बाद प्रशिक्षित कर्मियों को चाहिए कि -

  • जन्म के 12 घंटे के अंदर और छह सप्ताह के बाद, महिला के स्वास्थ्य की जांच करें।
  • अगले गर्भधारण को रोकने या टालने के लिए महिला को सलाह दें।
  • महिला को सलाह दें कि एच.आई.वी जैसे यौन जनित संक्रमण से बचाव कैसे किया जा सकता या शिशुओं के संक्रमण का शिकार हो जाने के खतरों को कैसे कम किया जा सकता है।

सुरक्षित मातृत्व मुख्य संदेश-३

सभी गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान आम दिनों से कहीं ज्यादा खास कर पौष्टिक भोजन और आराम की जरूरत होती है।

गर्भवती महिला को परिवार में उपलब्ध बेहतर भोजन की जरूरत होती है - दूध, फल, सब्जियां, गोश्त, मछली, अंडा, अनाज, मटर और फलियां। गर्भावस्था के दौरान यह सभी भोजन सुरक्षित होते हैं।

अगर महिलाएँ आयरन, विटामिन ए और फॉलिक एसिड से भरपूर भोजन करती हैं तो वे गर्भावस्था के दौरान स्वयं को ताकतवर और सेहतमंद महसूस करेंगी। इस भोजन में शामिल है- माँस, मछली, अंडा, पत्तेदार हरी सब्जियां और नारंगी या पीले फल और सब्जियां। स्वास्थ्य कार्यकर्ता खून की कमी से बचने या उसका इलाज करने के लिए गर्भवती महिलाओं को आयरन की गोलियां, और विटामिन ए की कमी वाले इलाकों में संक्रमण की रोकथाम के लिए विटामिन ए की पर्याप्त खुराक दे सकता है।

गर्भवती महिलाओं को विटामिन ए की रोजाना 10,000 अंतर्राष्ट्रीय इकाइयां (आईयू) या सप्ताह में 25,000 आईयू से ज्यादा नहीं लेनी चाहिए।

इस्तेमाल किया जा रहा नमक आयोडीन वाला होना चाहिए। जिन महिलाओं के भोजन में पर्याप्त आयोडीन नहीं होता, उन्हें बच्चा गिर जाने और शिशु के दिमागी या शारीरिक तौर पर अक्षम हो जाने का खतरा रहता है। घेंघा (गले के सामने सूजन) साफ कर देता है कि महिला को पर्याप्त आयोडीन नहीं मिल रहा है।

अगर खून की कमी, मलेरिया या हुकवर्म होने का अंदेशा है तो गर्भवती महिला को स्वास्थ्य कार्यकर्ता से सलाह लेनी चाहिए।

सुरक्षित मातृत्व मुख्य संदेश-४

बीड़ी-सिगरेट, शराब, नशीली दवाएं, जहरीले पदार्थ आदि गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों के लिए नुकसानदायक होते हैं।

तंबाकू पी कर या ऐसे वातावरण में रह कर जहां दूसरे लोग तंबाकू पीते हों, या शराब पी कर या नशीली दवाएं ले कर गर्भवती महिला खुद अपने स्वास्थ्य को और भ्रूण के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती है। यह महत्वपूर्ण है कि जब तक एकदम जरूरी न हो जाये और प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ता के नुस्खे में शामिल न हों, गर्भावस्था के दौरान दवाएं न ली जाये।

गर्भवती महिला अगर तंबाकू पीती हैं तो उसका बच्चा कम वजन का पैदा हो सकता है और उसके खांसी, सर्दी, गले में सूजन, निमोनिया या सांस से जुड़ी दूसरी दिक्कतों के घेरे में आ जाने का अंदेशा ज्यादा हो सकता है।

बच्चे की शारीरिक बढ़त और दिमागी विकास को तय करने के लिए गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों को तंबाकू या भोजन पकाने की आग के धुएं से, कीटनाशकों, खर-पतवार नाशकों और दूसरे जहर से, और सीसा; जो सीसे से बने पानी की आपूर्ति वाले पाइप में मिलता है, गाड़ियों के धुएं और कुछ पेंट आदि अशुद्धिकारकों से बचाये जाने की जरूरत है।

सुरक्षित मातृत्व मुख्य संदेश-५

कई समुदायों में महिलाओं और बच्चों के साथ शारीरिक बदसलूकी सार्वजनिक स्वास्थ्य की गम्भीर समस्या है। गर्भावस्था के दौरान हुई बदसलूकी महिला और भ्रूण दोनों के लिए खतरनाक होती है।

अगर गर्भवती महिला के साथ शारीरिक बदसलूकी हुई है तो उसे और उसके गर्भ को भारी नुकसान पहुंच सकता है। शारीरिक बदसलूकी की शिकार महिलाएं बच्चा पैदा करने में नाकाबिल हो सकती हैं। घर के लोगों को इन खतरों से खबरदार रहना चाहिए और बदसलूकी करने वाले से बचा कर रखनी चाहिए।

सुरक्षित मातृत्व मुख्य संदेश-६

जो लड़कियां शिक्षित व स्वस्थ हैं और जिन्हें बचपन और किशोर उम्र में अच्छा भोजन मिलता रहा है, उन्हें गर्भावस्था और प्रसव के दौरान परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता।

पढ़ने और लिखने की क्षमता महिलाओं को अपने और उनके परिवारों के स्वास्थ्य की हिफाजत करने में मदद करता है। कम से कम सात साल की स्कूली पढ़ाई करने वाली लड़कियों के किशोर उम्र में गर्भवती हो जाने का खतरा, कम पढ़ी-लिखी या एकदम अनपढ़ लड़कियों के मुकाबले काफी कम होता और उनकी देर से शादी होने की उम्मीद ज्यादा होती है।

बचपन और किशोर उम्र में मिला पौष्टिक भोजन गर्भावस्था और प्रसव में आने वाली दिक्कतें घटा देती है। पौष्टिक भोजन में शामिल हैं- फलियां और दूसरी दालें, अनाज, पत्तेदार हरी सब्जियां, और लाल/पीले/नारंगी सब्जियां और फल। जब भी संभव हो, दूध और दूध से बनी चीजें, अंडा, मछली, मुर्गा और गोश्त भी भोजन में शामिल होनी चाहिए।

महिलाओं और लड़कियों का खतना योनि और पेशाब के रास्ते के गम्भीर संक्रमण का कारण बन सकता है, जिसका नतीजा बांझपन या मौत हो सकती है। महिलाओं का खतना प्रसव के दौरान खतरनाक परेशानी पैदा कर सकता है और लड़कियों और महिलाओं के दिमागी स्वास्थ्य के लिए बड़ी दिक्कतें खड़ी कर सकता है।

सुरक्षित मातृत्व मुख्य संदेश-७

हरेक महिला को स्वास्थ्य की देखभाल का अधिकार है, खास कर गर्भावस्था और प्रसव के दौरान। स्वास्थ्य की देखभाल करने वालों को तकनीकी तौर पर प्रशिक्षित होना चाहिए और महिलाओं के साथ इज्जत से पेश आना चाहिए।

गर्भावस्था के दौरान, प्रसव के दौरान और जन्म के बाद अगर महिला की स्वास्थ्य देखभाल और पेशेवर सलाह तक पहुंच है तो गर्भावस्था और प्रसव के कई खतरों को टाला जा सकता है।

सभी महिलाओं को डॉक्टर, नर्स या दाई जैसे प्रसव के प्रशिक्षित लोगों की सेवाएं और जरूरत पड़ने पर प्रसव से जुड़ी आपात देखभाल की सेवाएं हासिल करने का अधिकार है।

जानकारी और सलाह के जरिये स्वास्थ्य की बेहतर देखभाल महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के बारे में फैसला लेने में सक्षम बनाती है। मातृत्व देखभाल की जरूरत वाली महिला के लिए स्वास्थ्य की सहूलियतों तक पहुंचना आसान होनी चाहिए, और इसका खर्च इन सेवाओं के इस्तेमाल से उसे रोकने वाला नहीं होना चाहिए। स्वास्थ्य की देखभाल में लगे लोगों को गुणवत्तापरक देखभाल के कौशल में दक्ष होना चाहिए। उन्हें प्रशिक्षित किया जाना चाहिए कि महिलाओं के साथ इज्जत से पेश आयें, सांस्कृतिक तौर-तरीकों के प्रति संवेदनशील हों, और गोपनीयता और निजता के महिला अधिकारों को सम्मान दें।