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Thursday, May 07, 2020

आपकी भक्ति कहीं सौदा तो नहीं है?

आपकी भक्ति कहीं सौदा तो नहीं है?

जरा सोच कर देखिए कि आप कब और किसलिए अपने भगवान या इष्ट को याद करते हैं? जब आपको कुछ मांगना होता है या जब कोई परेशानी या तकलीफ आन पड़ती है तभी न? तो फिर यह भक्ति है या एक तरह का सौदा?
आपकी भक्ति भी एक सौदा तो नहीं?
जरा सोच कर देखिए कि आप कब और किसलिए अपने भगवान या इष्ट को याद करते हैं? जब आपको कुछ मांगना होता है या जब कोई परेशानी या तकलीफ आन पड़ती है तभी न? तो फिर यह भक्ति है या एक तरह का सौदा?

अंग्रेजी में 'डिवोशन' (भक्ति) शब्द 'डिसोल्यूशन' शब्द से बना है जिसका अर्थ है: विसर्जन। जब हम भक्त कहते हैं, तो भक्त का अपना कोई मकसद नहीं होता। उसका एकमात्र मकसद उस चीज में विसर्जित हो जाना होता है जिसकी वह भक्ति कर रहा है, बस। वह अच्छी तरह से रहने के बारे में नहीं सोच रहा है। वह धनी होने के बारे में भी नहीं सोच रहा है। वह स्वर्ग जाने के बारे में भी नहीं सोच रहा है।

 

मान लीजिए वह भगवान शिव का भक्त है। इसका मतलब है कि वह बस शिव में ही विलीन हो जाना चाहता है, वह शिव में ही समाप्त हो जाना चाहता है। बस यही है, जो वह जानता है। क्या आप ऐसे हैं? आपके लिए तो भक्ति एक मुद्रा यानी 'करेंसी' की तरह है। भक्ति आसान जीवन जीने के लिए एक मुद्रा की तरह है। इस दुनिया में होने वाली प्रार्थनाओं को देखिए। निन्यानवे फीसदी प्रार्थनाओं में क्या होता है? मुझे यह दे दो, मुझे वह दे दो। मुझे बचा लो, मेरी रक्षा करो। यह भक्ति नहीं है, यह सौदा है। आप एक मूर्खतापूर्ण सौदा करने की कोशिश में लगे हैं।

 

तो अगर आप वास्तव में भक्त बनना चाहते हैं और भक्ति के जरिये उस परम चेतना तक पहुंचना चाहते हैं तो आपका अपना कोई मकसद नहीं होगा, कोई एजेंडा नहीं होगा। आप नहीं चाहेंगे कि जीवन वैसे चले जैसा आप चाहते हैं। आप उसके साथ विलीन हो जाना चाहेंगे, बस। अगर आप ऐसे हैं तो भक्ति आत्म-ज्ञान प्राप्त करने का सबसे तेज तरीका है।

अगर आप वास्तव में भक्त बनना चाहते हैं और भक्ति के जरिये उस परम चेतना तक पहुंचना चाहते हैं तो आपका अपना कोई मकसद नहीं होगा, कोई एजेंडा नहीं होगा। आप नहीं चाहेंगे कि जीवन वैसे चले जैसा आप चाहते हैं। आप उसके साथ विलीन हो जाना चाहेंगे, बस।

वास्तव में यह बहुत तीव्र है लेकिन आज जिस तरह की शिक्षा व्यवस्था है और जिस तरह के तार्किक दिमाग लोगों के पास हैं, भक्ति का तो सवाल ही नहीं उठता। क्या आपको लगता है कि आप किसी के प्रति पूरी तरह से समर्पित होने में सक्षम हैं? नहीं न? तो इस बारे में बात मत कीजिए। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आपमें भक्ति का अंश बिल्कुल है ही नहीं। आपके भीतर जितनी भक्ति है उससे हो सकता है कुछ मकसद हल हो जाए, लेकिन यह आपको उस परम अवस्था तक नहीं पहुंचा सकती। आप ऐसी भक्ति से छोटे-मोटे काम कर सकते हैं, बस।

 

आप मंदिर में दस मिनट के लिए बैठते हैं और प्रार्थना करते हैं - हे शिव मुझे बचाइए। इसके बाद आपको अपने भीतर इतना भरोसा आ जाता है कि आप अगले चौबीस घंटे आराम के साथ बिता सकें। ऐसी भक्ति आपका इतना काम कर सकती है, लेकिन यह आपको उस परम तक नहीं ले जा सकती, क्योंकि आपकी बुद्धि पूरी तरह से किसी के सामने झुकने को तैयार नहीं है। आप तब तक किसी के सामने पूरी तरह झुकने को तैयार नहीं होते जब तक आप अनुभव के एक खास स्तर तक नहीं पहुंचते, एक ऐसा स्तर जहां आप स्वाभाविक रूप से एक भक्त के रूप में निखर जाते हैं।


Thursday, May 07, 2020

अगर बॉस हमसे कम काबिल हो तो आप क्या करें

अगर बॉस हमसे कम काबिल हो तो क्या करें?

अगर बॉस हमसे कम काबिल हो तो क्या करें?

कभी कभी हम ऐसी स्थिति में फंस जाते हैं, जहां हमारे बॉस हमसे कम काबिल लगने लगते हैं। पर हमें उनक प्लान के हिसाब से चलना पड़ता है। ऐसी स्थति में क्या करना चाहिए?

किसी संस्था के एक असिस्टंट डायरेक्टर मुझसे मिलने आए। उन्होंने बड़ी मायूसी के साथ पूछा, ‘‘मेरे अंदर जितनी काबिलियत है उसका चौथाई अंश भी कंपनी के डायरेक्टर में नहीं है। यह मेरी बदकिस्मती है कि मुझे उनके अधीन काम करना पड़ रहा है। यह बदहाली कब बदलेगी?’’

किसी न किसी गुण के कारण बॉस वहां पहुंचे हैं

आप में से कई लोगों के मन में अपने ‘बॉस’ के बारे में कहने के लिए ऐसी ही कुछ फरियाद होगी।

जरा सोचकर देखिए, इसका मतलब यही तो निकला कि अगर कोई व्यक्ति आप से ऊँचे पद पर बैठा है तो उसके अंदर आपकी तुलना में कोई न कोई गुण या योग्यता है... तभी तो वह वहाँ तक पहुँच गया है। भले ही वह उसकी क्षमता हो सकती है... पैसे की ताकत हो सकती है... धाक या लोकप्रियता हो सकती है... घूस देकर ओहदा पाने की होशियारी भी हो सकती है।

जीवन में जिन लोगों ने प्रगति की है, उनमें से किसी ने दूसरों की शिकायत करने में अपना वक्त बरबाद नहीं किया, बल्कि अपनी पूरी क्षमता के साथ लगन से काम किया और बुलंदियाँ छू गए।

जो भी हो, इतना तो मानना पड़ेगा कि वह गुण आपके अंदर नहीं है, है न?

आपसे ऊँचे ओहदे पर बैठने के एकमात्र कारण से यह जरूरी नहीं है कि उसके सारे काम, सभी निर्णय ठीक ही होंगे।

इस बात की क्या कोई गारंटी है कि उनकी जगह आप बैेठे होते तो आप हर काम को सही ढंग से कर दिखाते? नहीं न?

इसी सिलसिले में मुझे एक मजेदार किस्सा याद आ रहा है।

एक बार की बात है, पोप अमेरिका पधारे थे। उनका स्वागत करके शहर में ले जाने के लिए एक बहुत ही शानदार गाड़ी हवाई अड्डे पर तैयार खड़ी थी।

पोप ने अभी तक ऐसी एक विलासिता पूर्ण गाड़ी में यात्रा नहीं की थी। शानदार अंदाज में खड़ी उस गाड़ी को देखते ही पोप के मन में उसे चलाकर देखने की ललक पैदा हो गई।

ड्राइवर पहले तो हिचका मगर खुद पोप ऐसी इच्छा जाहिर कर रहे हैं, वह मना नहीं कर पाया।

पोप गाड़ी चलाने लगे। उनके अंग-अंग में खुशी की लहर दौड़ रही थी। शक्तिशाली इंजन और कल-पुर्जों से लैस वह गाड़ी सडक़ पर पहुँचते ही धड़ाधड़ गति पकडऩे लगी।

‘हाइवे’ में गाड़ी चलाने के लिए निश्चित गति सीमा से कहीं अधिक तेजी से भाग रही उस गाड़ी को देखते ही पुलिस सतर्क हो गई। पुलिस की गाडिय़ाँ उस कार का पीछा करने लगीं।

हो सकता है, कोई सुपरवाइजर कारीगरों द्वारा किये जा रहे किसी काम में अपनी हुनर नहीं दिखा सकता। लेकिन अपनी टीम के सभी कारीगरों के हुनर को, उनकी क्षमता को बाहर लाने में उसे महारत हासिल है।

एक मुकाम पर पहुँचकर पुलिस की गाडिय़ों ने पोप द्वारा चलाई जा रही गाड़ी को रोक ही लिया।

जो अफसर पूछताछ करने आया, पोप को देख, सहमकर पीछे हट गया। उसने अपने आला अफसर को फोन किया।

‘‘सर... ओवर स्पीड का एक मामला है... लेकिन गाड़ी में जो बैेठे हैं उन्हें बुक करते हुए डर लग रहा है।’’

‘‘क्यों? क्या वे केनडी परिवार के कोई सदस्य हैं?’’

‘‘नहीं सर।’’

‘‘तो जॉर्ज बुश की जान-पहचान का कोई है?’’

‘‘जी नहीं... पता नहीं चल रहा है, पीछे की सीट पर बैेठे वी.आई.पी. कौन हैं। मगर उन्होंने स्वयं पोप को अपनी गाड़ी का ड्राइवर बना रखा है!’’

हो सकता है उसमें गुण परखने का हुनर हो

इसी तरह देखिए न, कौन-सा व्यक्ति किस पद पर बैठा है, उसी के आधार पर उसकी हैसियत बन जाती है। काबिलियत के बिना संयोग से कोई आदमी ऊँचे पद पर पहुँच जाए तो वह ज्यादा समय तक उस पद पर टिक नहीं पाएगा। इसलिए आप उस बात की परवाह न करें।

मान लीजिए कि आप कोई स्टेनो हैं। ऐसे में क्या आप प्रलाप कर सकते हैं,

‘‘देखिए, मेरे बॉस को इतना भी पता नहीं है कि टाइपराइटर पर कौन-सा अक्षर कहाँ है। मेरा दुर्भाग्य यह है कि मुझे ऐसे व्यक्ति के अधीन काम करना पड़ रहा है।’’

जीवन में जिन लोगों ने प्रगति की है, उनमें से किसी ने दूसरों की शिकायत करने में अपना वक्त बरबाद नहीं किया, बल्कि अपनी पूरी क्षमता के साथ लगन से काम किया और बुलंदियाँ छू गए।

हो सकता है, कोई सुपरवाइजर कारीगरों द्वारा किये जा रहे किसी काम में अपनी हुनर नहीं दिखा सकता। लेकिन अपनी टीम के सभी कारीगरों के हुनर को, उनकी क्षमता को बाहर लाने में उसे महारत हासिल है।

मुमकिन है, आपके कुछ कौशल आपके बॉस में न हों। लेकिन क्या आपके अंदर उनकी तरह सभी कर्मचारियों को संभालने की क्षमता है?

अगर आपके अंदर वैसी क्षमता है तो आपकी तरक्की को कोई नहीं रोक सकता। भले ही मौजूदा कंपनी में फौरन तरक्की न मिले, किसी और कंपनी का ऊँचा पद आपका इंतजार कर रहा होगा।

बस पूरी क्षमता से काम करते रहिये

इसलिए आपके ऊपर चाहे कोई भी बैठा हो, बड़बड़ाना छोड़ दीजिए। पूरी लगन और क्षमता के साथ काम करते रहिए।

ऐसी स्थिति बन जाए कि आपका बॉस आपकी सहायता के बिना काम संभाल न पाए या आपके बिना कंपनी चल न पाए। फिर हुकूमत की बागडोर आपके हाथ में आकर रहेगी।

अगर कंपनी के प्रबंधन को पता है कि आपके काम करने का ढंग आपके बॉस से बढिया किस्म का है तो प्रबंधन क्यों उसे वहाँ रखता? आप को ही न उस जगह पर बिठाता? ऐसा काम करना छोडक़र मन ही मन कुढ़ते रहेंगे तो आप पूरी लगन से काम नहीं कर पाएँगे।

यदि आप ऐसी स्थिति पैदा कर दें कि आपके बिना कंपनी नहीं चल सकती, तो आपका बॉस आपको तंग करके भगाने की कोशिश क्यों करेगा?

यदि आप ऐसी स्थिति पैदा कर दें कि आपके बिना कंपनी नहीं चल सकती, तो आपका बॉस आपको तंग करके भगाने की कोशिश क्यों करेगा?

जीवन में जिन लोगों ने प्रगति की है, उनमें से किसी ने दूसरों की शिकायत करने में अपना वक्त बरबाद नहीं किया, बल्कि अपनी पूरी क्षमता के साथ लगन से काम किया और बुलंदियाँ छू गए।

चाहे किसी भी तरह का माहौल हो, हर परिस्थिति में आप पूर्ण रूप से मौजूद रहिए। आपके अंदर जितनी योग्यता है, जैसी क्षमता है उसके अनुपात में जरूर आप तरक्की पाएँगे। आपकी उन्नति को कोई नहीं रोक सकता।

Monday, May 04, 2020

जीवन में कष्ट का कारण क्या है?

जीवन में कष्ट का कारण क्या है?

कहना गलत नहीं होगा कि आज पूरी मानव जाति किसी न किसी तरह के कष्टों से पीड़ित है। तो क्या कहीं से बरस रहे हैं कष्ट? कहां से आते हैं ये कष्ट और क्या है उपाय इनसे बचने का?

लोग दो तरह के कष्टों को सहते हैं। आमतौर पर लोग सोचते हैं कि कष्ट या तो शारीरिक होते हैं या मानसिक। शारीरिक पीड़ा कई कारणों से हो सकती है, पर 90 प्रतिशत मानवीय कष्ट, मानसिक होते हैं, जिसका कारण हमारे भीतर ही होता है। लोग हर रोज़ अपने लिए कष्ट पैदा करते हैं - वे गुस्सा, डरए नफरत, ईर्ष्या और असुरक्षा आदि से ग्रस्त हैं। यही दुनिया में अधिकतर लोगों के लिए पीड़ा का कारण है।

कष्ट की प्रक्रिया को समझना होगा

आखिर मानवता क्यों पीड़ित है? हमें इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए कष्ट की प्रक्रिया को देखना होगा।

हमारे ऊपर कष्ट कहीं से बरसते नहीं हैं, इन्हें हम तैयार करते हैं। और कष्टों के निर्माण की फैक्ट्री आपके मन में है।
आज सुबह, क्या आपने देखा कि सूरज अपनी पूरी आभा के साथ उदित हुआ, फूल खिले, कोई भी सितारा नहीं टूटा, सारे तारामंडल अपना काम सही तरह से कर रहे हैं। सब कुछ व्यवस्थित रूप में, अपने क्रमानुसार चल रहा है। यानी सारा ब्रह्माण्ड बहुत अच्छी तरह कार्य कर रहा है पर कोई एक विचार दिमाग़ में आते ही आपको लगने लगता है कि आपका पूरा दिन बरबाद हो गया।

विचार या भाव जीवन का अनुभव तय करने लगते हैं

कष्ट इसलिए हो रहा है क्योंकि अधिकतर लोग यह नज़रिया ही खो बैठे हैं कि जीवन कहते किसे हैं? उनकी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया, अस्तित्व संबंधी प्रक्रिया से कहीं बड़ी है।

अगर आप मनोवैज्ञानिक स्तर से अस्तित्वगत वास्तविकता में जाना चाहते हैं, तो आपको देखना होगा कि आप जो सोचते, या महसूस करते हैं; वह कोई मायने नहीं रखता।
या अगर सीधे सीधे शब्दों में कहें तो आपने अपनी तुच्छ सृश्टि को उस ईश्वर की सृष्टि से भी महान मान लिया है। यही सारे कष्टों की बुनियादी जड़ है। हमने यहां जीवित रहने का अर्थ ही खो दिया है। आपके दिमाग में आया कोई विचार या कोई भाव आपके अनुभव को तय करने लगता है। सारी सृश्टि बहुत अच्छी तरह चल रही है, पर कोई एक भाव या विचार सब कुछ नष्ट कर सकता है। जबकि हो सकता है आपकी भावनाओं और विचारों का आपके जीवन की सीमित वास्तविकता से भी कोई लेना-देना न हो।

मन आपका है ही नहीं

जिसे आप ‘मेरा मन’ कहते हैं, दरअसल वह आपका है ही नहीं। आपका अपना कोई मन ही नहीं है। ज़रा इसे गौर से देखिए। आप जिसे अपना मन कहते हैं, वह तो समाज का कूड़ेदान है।

या अगर सीधे सीधे शब्दों में कहें तो आपने अपनी तुच्छ सृश्टि को उस ईश्वर की सृष्टि से भी महान मान लिया है। यही सारे कष्टों की बुनियादी जड़ है।
आपके मन में, कोई भी जो आपके पास से गुज़रता है, कचरा डाल जाता है। आपके पास यह चुनने की सुविधा भी नहीं है कि आपको किसका कचरा लेना है और किसका लेने से मना करना है। अगर आप किसी व्यक्ति को पसंद नहीं करते तो आपको उस व्यक्ति से दूसरों की तुलना में कहीं अधिक कचरा मिलेगा। आपके पास समचुच चयन नहीं है। अगर आपको कचरे की सामग्री का सही प्रयोग करना आता है तो यह आपके काम आ सकता है। स्मृतियों और सूचनाओं का यह जो ढेर आपने इकट्ठा कर रखा है, यह केवल जीवन-यापन के काम आ सकता है। इसका इस बात से कोई लेना-देना नहीं कि आप कौन हैं।

अपने विचारों और भावों की अहमियत घटा दें

जब हम आध्यात्मिक प्रक्रिया की बात करते हैं, तो हम मनोवैज्ञानिक स्तर से अस्तित्वगत स्तर पर जाने की बात करते हैं। जीवन इस सृष्टि के बारे में है, जो कि यहां उपस्थित है। इसे पूरी तरह जानने और इसके असली रूप में अनुभव करने के बारे में है। इसे अपने मनचाहे रूप में बिगाड़ना जीवन नहीं हैे।

आपके मन में, कोई भी जो आपके पास से गुज़रता है, कचरा डाल जाता है। आपके पास यह चुनने की सुविधा भी नहीं है कि आपको किसका कचरा लेना है और किसका लेने से मना करना है।
अगर आप मनोवैज्ञानिक स्तर से अस्तित्वगत वास्तविकता में जाना चाहते हैं, तो आपको देखना होगा कि आप जो सोचते, या महसूस करते हैं; वह कोई मायने नहीं रखता। आपके विचारों का वास्तविकता से कोई लेना.देना नहीं है। जीवन में इसका कोई ख़ास महत्व नहीं है। यह व्यर्थ की बातों के सिवा कुछ नहीं, जिसे आपने यहां-वहां से बटोर रखा है। अगर आपको यह सब महत्वपूर्ण लगता है, तो आप इससे परे कभी देख ही नहीं सकते। आपका ध्यान स्वाभाविक तौर पर उसी ओर जाता है, जिसे आप अहमियत देते हैं। अगर आपके लिए आपके विचार और भाव महत्वपूर्ण होंगे तो आपका सारा ध्यान उनकी ओर ही होगा। पर यह सिर्फ एक मनोवैज्ञानिक वास्तविकता है। इसका अस्तित्व से कोई लेना-देना नहीं है।

हमारे ऊपर कष्ट कहीं से बरसते नहीं हैं, इन्हें हम तैयार करते हैं। और कष्टों के निर्माण की फैक्ट्री आपके मन में है। अब समय आ गया है आप इस फैक्ट्री को बंद कर दें।